भारत के सबसे महंगे मशरूम के लिए जीआई टैग की मांग उठी है. यह मशरूम जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में पैदा होता है. इसकी कीमत खुदरा बाजार में 20 हजार रुपए प्रति किलो से ज्यादा तक जाती है. इसकी मांग नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने अपने ट्वीट के जरिये की है. आइए जानते हैं इस टैग के बारे में, क्या होता है इसका फायदा, सबसे पहले किसे मिला था जीआई टैग.
इस सब्जी का नाम गुच्छी (Gucchi). यह हिमालय पर मिलने वाले जंगली मशरूम की प्रजाति है. बाजार में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए किलो है. अब ये टैग मिलने के बाद दूसरी खाद्य सामग्रियों की तरह क्या ये भी सस्ती हो सकती है. इसका कीमत पर नियंत्रण से क्या संबंध है. आगे जानिए..
GI tag sought for India’s costliest mushroom. The Gucchi mushroom grown in the wild in Doda district of J&K is an heirloom crop which retails for over ₹ 20,000 a kg. They are cherished for their antioxidant & anti microbial properties. Last year saffron was granted GI tag.
— Amitabh Kant (@amitabhk87) January 18, 2021GI टैग दिलाता है विशेषाधिकार
जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग (जीआई टैग) है जो किसी प्रांत को उसकी विशिष्टता के आधार पर तैयार उत्पाद पर मिलता है. मसलन दार्जिलिंग की चाय और मलिहाबाद के आम, चंदेरी की साड़ी जैसे करीब 300 से ज्यादा उत्पाद अपने क्षेत्र की पहचान से जुड़े हैं.
भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था. इसके आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग का काम उस खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाली चीजों का दूसरे स्थानों पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.
टैग को देने के लिए उस वस्तु की पूरी जानकारी के साथ उसकी भौगोलिक स्थिति को भी देखा जाता है कि कोई वस्तु उस क्षेत्र से संबंधित है कि नहीं. कई बार एक खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव होती है. इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का हाथ होता है.
इन्हें मिला है सम्मिलित टैग
बासमती चावल के साथ ऐसा हुआ है कि उसे मिला-जुला GI टैग दिया गया है. इस चावल पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की दावेदारी थी, तो सभी इलाकों के कुछ हिस्सों को इसका अधिकार दिया गया.
पहला GI टैग दार्जिलिंग चाय को
चेन्नई स्थित GI-डेटाबेस में आवेदन के बाद इसकी पुष्टि की जाती है. इसी के बाद ये अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को मिल सकते हैं. ये टैग 10 सालों तक मान्य होता है. पहली बार साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को ये टैग मिला.
ये हैं टैग के फायदे
इस टैग से अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में उस सामान की कीमत और उसका महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखने आते हैं इससे व्यापार और टूरिज्म दोनों से उस प्रांत को फायदा होता है.