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रामनाथ कोविंद: कानपुर की दलित बस्ती से राष्ट्रपत‍ि भवन तक, ऐसा है सफर

aajtak.in
  • 01 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 8:52 AM IST
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का बचपन गरीबी में गुजरा. इन सभी मुसीबतों को पार करते हुए कोविंद आज उस मुकाम पर खड़े हैं, जहां उनकी कलम से हिंदुस्तान की तकदीर लिखी जाती है. देश के 14वें राष्ट्रपति के जन्मदिन पर उनके पूरे जीवन के सफर पर नजर डालें तो एक ऐसी शख्सियत सामने आती है जिसने कठ‍िन संघर्ष से देश के सर्वोच्च नागरिक का पद पाया है. आज उनके 75वें जन्मदिन पर आइए जानें उनके बारे में. 

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रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे. ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई स्वयंसेवक देश का राष्ट्रपति बना. कोविंद के राजनीतिक सफर में कई मोड़ आए. उन्होंने कई तरह की भूमिका निभाई. इन्होंने एक समाज सेवी, एक वकील और एक राज्यसभा सांसद के तौर पर काम किया. लेकिन इनकी पिछली पृष्ठभूमि में जाए तो वो एक बहुत ही साधारण इंसान हैं.

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रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को हुआ था. उनका जन्म एक बहुत ही साधारण परिवार में हुआ. उस वक्त देश अंग्रेजों का गुलाम था. उस समय किसी भी दलित का सफर काफी मुश्किलों भरा होता था. लेकिन इन पर‍िस्थ‍ित‍ियों में भी उनके परिवार ने उन्हें पढ़ाया लिखाया.  

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इसका नतीजा ये रहा कि सारी दुश्वारियों को पीछे करके कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौंख में जन्मे रामनाथ कोविंद ने सर्वोच्च न्यायालय में वकालत से करियर की शुरुआत की थी. 

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वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वह तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के निजी सचिव बने थे, इसके बाद भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आए. कोविंद ने दिल्ली में रहकर IAS की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की. लेकिन मुख्य सेवा के बजाय एलायड सेवा में चयन होने पर नौकरी ठुकरा दी. 

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जून 1975 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर वे वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव रहे थे. जनता पार्टी की सरकार में सुप्रीम कोर्ट के जूनियर काउंसलर के पद पर कार्य किया. इससे पहले भी वो अपनी राह में आने वाले तमाम विरोधियों को पीछे छोड़ चुके हैं. सबसे पहले तो कोविंद ने अपने गांव की इस गरीबी को पछाड़ा.

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बता दें कि गरीबी की वजह से बचपन में रामनाथ कोविंद 6 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे और फिर पैदल ही 6 किलोमीटर वापस घर लौटते थे. गांव में रहने वाले रामनाथ कोविंद के साथियों को जहां उनकी काबिलियत पर नाज है. वहीं कोविंद की दरियादिली के भी वो कायल हैं. गरीबी में पैदा हुए रामनाथ कोविंद आगे चलकर एक नामी वकील हुए. वह बिहार के राज्यपाल भी बने, लेकिन जायदाद के नाम पर उनके पास आज भी कुछ नहीं है. एक घर था वो भी गांववालों को दान कर दिया. 

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आपको बता दें, केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद कोविंद उत्तर प्रदेश से राज्यपाल बनने वाले तीसरे व्यक्ति थे. मेंबर, पार्लियामेंट की SC/ST वेलफेयर कमेटी के सदस्य, गृह मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, सोशल जस्टिस, चेयरमैन राज्यसभा हाउसिंग कमेटी मेंबर, मैनेजमेंट बोर्ड ऑफ डॉ. बी.आर. अबेंडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ भी रहे. उनका गांव भी खुद को इतिहास के पन्नों में देख रहा है. बता दें, चुनाव जीतने के बाद अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा था, 'फूस की छत से पानी टपकता था. हम सभी भाई बहन दीवार के सहारे खड़े होकर बारिश बंद होने का इंतजार करते थे.'

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वर्ष 1994 से 2006 के बीच दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के कानपुर से हैं. पेशे से वकील कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रमुख भी रहे हैं.  वे 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी रहे चुके हैं. दो बार भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय प्रवक्ता ,उत्तर प्रदेश के महामंत्री रह चुके हैं. रामनाथ कोविंद ने 25 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. 

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