एक तरफ बच्चे स्कूल बंद होने से पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ अभिभावकों को इस बात का डर है कि अगर त्योहार बाद कोरोना के केसेज बढ़ गए तो थर्ड वेव का खतरा आ जाएगा. ऐसे में अपने 18 साल से कम उम्र के बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर पेरेंट्स में एक अलग तरह का डर बैठ गया है. वहीं, इस मामले में एक्सपर्ट स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि बच्चों को स्कूल जरूर भेजना चाहिए. इसके पीछे उनके पुख्ता तर्क हैं, आइए जानते हैं एक्सपर्ट की राय...
पब्लिक पॉलिसी व हेल्थ एक्सपर्ट डॉ चंद्रकांत लहारिया ने aajtak.in से इस बारे में बातचीत करते हुए कहा कि अब माता-पिता को डरने की जरूरत नहीं है. अगर त्योहार के बाद कोरोना के मामले बढ़ते भी तो हैं तो भी नेशनल लेवल पर कोरोना की तीसरी वेव आने का खतरा न के बराबर है. वैसे भी बच्चों को कोरोना का संक्रमण बहुत कम होता है. अगर संक्रमण हुआ भी तो बच्चों में लांग टर्म इसका इफेक्ट नहीं होगा.
डॉ लहारिया ने कहा कि हालिया सीरो सर्वे में सामने आया था कि जून तक 67.6% को एंटीबॉडी बन गई थी. सीरो सर्वे में यह भी देखा गया था, बच्चों में भी एंटीबॉडी बने थे जो एडल्ट की रफ्तार में बने हैं. यही नहीं देश की 100 करोड़ जनता लोगों को कोरोना की एक डोज लग चुकी है. इन सब बातों को देखें तो पहली और दूसरी लहर की तरह बड़ी लहर आने की संभावना नहीं है.
डॉ लहारिया कहते हैं कि बच्चों में पहले भी कम गंभीर बीमारी हुई थी. बच्चों में इनफेक्शन होता भी है तो गंभीर बीमारी नहीं होती. अगर अगली लहर आई तो वैसे भी संख्या कम रहेगी, इसलिए बच्चों के स्कूल जरूर खुलने चाहिए. इसको लेकर माता-पिता को घबराने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि डेनमार्क-स्वीडन आदि देशों ने स्कूल बंद नहीं किए थे, यहां तक कि अब यूएस में भी लोग बच्चों को स्कूल भेजने लगे हैं.
विशेषज्ञ के अनुसार उपलब्ध आंकड़ें स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि भारत में अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड -19 मामलों में, दोनों वेव के दौरान ये देखा गया कि इनमें महज 2-5% ही 0-18 आयु वर्ग के बच्चे थे. वहीं आबादी में इनकी संख्या लगभग 40% के बराबर है. उनका कहना है कि बुजुर्गों और वयस्कों में बच्चों की तुलना में मॉडरेट से गंभीर बीमारी और मृत्यु का जोखिम 10-20 गुना अधिक होता है. वहीं दुनिया के किसी भी हिस्से से इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि तीसरी या कोई बाद की लहर बच्चों को असमान रूप से प्रभावित करेगी.
वहीं पेरेंट्स को इस बात का भी डर है कि स्कूलों में बच्चों को किस तरह पूरे कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए पढ़ाया जाएगा. दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की प्रेसीडेंट अपराजिता गौतम ने aajtak.in से कहा कि दशहरा के बाद डीडीएमए इस पर फैसला करेगा किस कक्षा को किस चरण से शुरू करना चाहिए. लेकिन इससे पहले पेरेंट्स का यही कन्सर्न है कि स्कूल किस तरह कोविड 19 प्रोटोकॉल का 100 फीसदी अनुपालन करेंगे. स्कूल में बच्चों को कोरोना संक्रमण न हो, इसके लिए सरकार किस तरह तैयारी और अपनी जवाबदेही को सुनिश्चित करेगी.
बता दें कि कोरोना की तीसरी लहर का खतरा, बच्चों का वैक्सीनेशन न होना, स्कूलों द्वारा कोविड 19 प्रोटोकॉल का पूर्णतया अनुपालन न हो पाना आदि ऐसे प्वाइंट हैं जिन्हें लेकर पेरेंट्स में डर है. वो बच्चों को इस पूरे साल तो स्कूल भेजने को तैयार नहीं दिख रहे. वहीं चिकित्सक और एक्सपर्ट लगातार कह रहे हैं कि बच्चों को जितना खतरा किसी वायरस से है, उससे कई गुना ज्यादा फायदा फिजिकल क्लासेज और स्कूल एजुकेशन से होगा.