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एजुकेशन न्यूज़

MRI क्‍या है, कोरोना मरीजों को कब दी जा सकती है इस जांच की इजाजत

aajtak.in
  • नई द‍िल्‍ली,
  • 06 मई 2021,
  • अपडेटेड 9:27 AM IST
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बीते साल चीन के शोधकर्ताओं ने वुहान शहर के रोगियों पर एक अध्ययन में पाया था कि कोरोना वायरस संक्रमण का असर लोगों के मस्तिष्क पर भी हुआ था. इसलिए दुनिया भर के डॉक्‍टर कोरोना के कुछ मरीजों को होने वाली न्‍यूरोलॉजिकल समस्‍याओं पर भी ध्‍यान रख रहे हैं. लेकिन कोरोना मरीजों को डॉक्‍टर ही इस जांच की इजाजत दे सकते हैं, अपनी तरफ से इस टेस्‍ट के लिए नहीं जाना चाहिए. जानिए क्‍या है एमआरआई, इसकी इजाजत कब मिलती है.

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MRI यानी ये मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन होता है. 15 से 90 मिनट की इस जांच में शरीर के एक हिस्से का स्कैन किया जाता है. ये रेडिएशन के बजाय मैग्नेटिक फील्ड पर काम करता है. ये एक्स रे और सीटी स्कैन से अलग है. रेडियोलॉजिस्ट डॉ संदीप ने बीबीसी को दिए बयान में कहा था कि पूरे शरीर में जहां-जहां हाइड्रोजन होता है, उसके स्पिन यानी घूमने से एक इमेज बनती है.

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आपको बता दें कि‍ इंसान के शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसलिए हाइड्रोजन स्पिन के जरिए बनने वाली इमेज से शरीर में होने वाले दुष्‍प्रभाव का पता लगाया जाता है. इससे दिमाग, घुटने, रीढ़ की हड्डी जैसे शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जहां सॉफ्ट टिशू होते हैं, उनका अगर एमआरआई स्कैन होता है तो हाइड्रोजन स्पिन से इमेज बनने के बाद ये पता लगाया जाता है कि शरीर के उन हिस्सों में कोई दिक्कत तो नहीं है.

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MRI स्कैनर एक मजबूत मैग्नेटिक फील्ड पैदा करता है. जब इंसान को मशीन के भीतर भेजा जाता है उस वक्‍त शरीर मेटल ऑब्जेक्ट जैसे घड़ी, विग, ज्‍वेलरी, पियर्सिंग, नकली दांत और सुनने की मशीन आदि हटा दिया जाता है.

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अमेरिका के मिशिगन में स्थित हेनरी फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ एलिसा फॉरी ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया कि वैज्ञानिक अभी तक नहीं जानते कि कोरोना वायरस अन्य वायरसों की तुलना में दिमाग के लिए कितना गंभीर है. उन्‍होंने कहा कि लेकिन मरीजों में ये लक्षण काफी देखे जा रहे हैं.

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बता दें क‍ि कुछ मरीजों में जब ये देखा जाता है क‍ि कोरोना वायरस संक्रमण का प्रभाव ज्‍यादा होने पर कोविड-19 के कितने मरीज़ो में न्यूरोलॉजिकल लक्षण दिखाई देते हैं. इसे लेकर भले ही अनुमान अलग-अलग हैं. लेकिन लगभग 50 प्रतिशत मरीज़ों में जो कोरोना संक्रमित पाए गए हैं, उनमें न्यूरोलॉजिकल परेशानियां देखी जा रही हैं.

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दुनिया भर के बहुत सारे शोधकर्ताओं का मानना है कि कोविड-19 के रोगियों में दिख रहे ये न्यूरोलॉजिकल लक्षण दिमाग में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण हैं. ये सांस की गंभीर समस्या होने पर आमतौर पर होती है. वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस सीधे तौर पर भी दिमाग़ पर हमला कर सकता है.

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जापान में शोधकर्ताओं ने 24 वर्ष के एक लड़के पर अध्ययन किया था. उसे फर्श पर बेहोश पाया गया था. वो अपनी ही उल्टी में औंधे मुंह पड़ा था. जब कुछ लोगों ने उसकी मदद के लिए डॉक्टर को फ़ोन किया, तब उसे दौरे पड़ रहे थे.

अस्पताल पहुंचने पर उसके दिमाग का एमआरआई किया गया जिससे पता चला कि उसे वायरल मेनिनजाइटिस (दिमाग में सूजन) है. लेकिन इस लड़के के सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूइड यानी मस्तिष्कमेरु द्रव्य में सार्स-कोव-2 यानी कोरोना वायरस के नमूने मिले.

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डॉक्‍टर का कहना है कि एमआरआई या सीटी स्‍कैन की जांच के लिए सिर्फ डॉक्‍टरों की सलाह पर ही फैसला लेना चाहिए. जब मरीज में गंध लंबे समय तक नहीं आती, या नींद न आने की समस्‍या लंबे समय तक चलती है या फिर सिरदर्द भी लंबे समय तक रहता है, तभी डॉक्‍टर ये फैसला लेते हैं क‍ि उन्‍हें मरीज के मस्‍त‍िष्‍क में कोरोना के प्रभाव का किस तरह पता लगाना है.

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