विपक्षी दलों का दावा है कि 2017 से लेकर 2021 तक 11000 ओबीसी छात्रों को आरक्षण का फायदा नहीं मिला है. ये सभी सीटें सामान्य वर्ग के छात्रों को मिल रही हैं. विपक्षी दलों का ये भी कहना है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण दिया जा रहा है तो अन्य पिछड़ा वर्ग को ये आरक्षण क्यों नहीं मिल रहा है? आइए जानें कि क्या वाकई ओबीसी को मिलने वाला 27 फीसदी का कोटा नीट में नहीं दिया जा रहा. पूरा मामला यहां समझें...
बता दें कि देश में NEET के जरिए चिकित्सा शिक्षा में दाखिले होते हैं. इस परीक्षा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को आरक्षण मिलता है. लेकिन, परीक्षा में ओबीसी आरक्षण न दिए जाने को लेकर सवाल उठते रहे हैं. कई छात्र संगठन इसे लेकर देशव्यापी हड़ताल की धमकी दे चुके हैं. फिलहाल ये मामला प्रधानमंत्री के पास भी है, मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट नीट में ओबीसी का ऑल इंडिया कोटा लागू करने को लेकर केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल और भूपेंद्र यादव ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन भी सौंपा था.
नीट में ओबीसी को 27 पर्सेंट आरक्षण मिलने या न मिलने की वजह जानने से पहले आपको ऑल इंडिया कोटे के बारे में समझना होगा. तो बता दें कि 1984 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देश के सभी राज्यों के मेडिकल संस्थानों में ऑल इंडिया कोटा (AIQ) लागू किया गया. ये कोटा राज्य के अधीन आने वाले मेडिकल कॉलेज में सीटों का वो हिस्सा है जो राज्य के कॉलेज, केंद्र सरकार को देते हैं.
यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था जहां सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में कहा कि सभी राज्य अपने मेडिकल कॉलेज की 15 फीसदी अंडर ग्रेजुएट सीटें और 50 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट सीटें केंद्र सरकार को देंगी. केंद्र सरकार के हिस्से में आने वाली इन सीटों को 'ऑल इंडिया कोटा' का नाम दिया गया. इन सीटों पर देश के किसी भी राज्य के छात्र दाखिला ले सकते हैं. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ज़्यादातर राज्य के कॉलेज में स्थानीय छात्रों को प्रमुखता दी जाती है.
अगर देखा जाए तो साल 2007 से ऑल इंडिया कोर्ट में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया कोटा में आरक्षण लागू किया और राज्य सरकार की तरह ही केंद्र सरकार के हिस्से की सीटों पर भी आरक्षण लागू करने के निर्देश दिए. इसमें 7.5 फ़ीसदी आरक्षण अनुसूचित जनजातियों के लिए और 15 फ़ीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति के लिए दिया गया. लेकिन यहां ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण का ज़िक्र नहीं किया गया.
फिर साल 2010 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) नीट परीक्षा का रेगुलेशन लेकर आई. इसमें नीट को देशभर में पूरी तरह लागू साल 2017 में किया गया. अब किसी भी छात्र को मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए नीट की परीक्षा देनी पड़ती है और इसके कटऑफ़ से ही ऑल इंडिया कोटा के तहत दाखिला मिलता है. लेकिन इसमें भी यदि कोई OBC छात्र राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज में ऑल इंडिया कोटा के तहत दाखिला लेता है जो उसे 27 फ़ीसदी आरक्षण का फ़ायदा नहीं मिलता है.
इस मामले में पिछले साल 2020 में विपक्ष की नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राज्यों के मेडिकल और डेंटल इंस्टीट्यूट्स में ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग की थी. उनकी मांग का समर्थन कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी किया था. प्रियंका ने कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने NEET से भरी जा रही सीटों में राष्ट्रीय कोटा के तहत राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों के चिकित्सा संस्थानों में ओबीसी वर्ग के छात्रों को आरक्षण देने की जायज मांग उठाई है. ये सामाजिक न्याय का तकाजा है. आशा है कि केंद्र सरकार इस पर अमल करेगी.
अब जब नीट परीक्षा की साल 2021परीक्षा का नोटिफ़िकेशन आ गया है तो ऐसे में एक बार फिर इस मामले ने तूल पकड़ा है. नोटिफिकेशन में केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि पांच सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी गई है और इसे सुप्रीम कोर्ट को सौंपने का फैसला लिया गया है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में 2015 के एक दूसरे मामले में सुनवाई चल रही है. इसमें ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण न मिलने को लेकर ही सवाल उठाया गया है. ऐसे केंद्र सरकार मान रही है कि इस वजह से ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण पर कोई निर्णय तब तक नहीं लिया जा सकता जब तक 2015 केस में सर्वोच्च न्यायालय कोई फैसला न कर दे.