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कौन हैं वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील, सरकार की साइंटिफिक एडवाइजरी कमेटी से इस्तीफा देकर चर्चा में

aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 17 मई 2021,
  • अपडेटेड 11:14 AM IST
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कोरोना संकट के बीच डॉ शाहिद जमील को सरकार की ओर से अहम जिम्मेदारी दी गई थी. उन्हें SARS-CoV-2 वायरस के जीनोम स्ट्रक्चर की पहचान करने वाले वैज्ञानिक सलाहकार ग्रुप का प्रमुख बनाया गया था. लेकिन रविवार को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद से लगातार वो चर्चा में हैं. अशोका विश्वविद्यालय में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक शाहिद जमील भारत सरकार की सर्वोच्च एजेंसी वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की ओर से उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भी सम्मान‍ित किया जा चुका है. आइए जानें - शाहिद जमील के बारे में ये खास बातें. 

 

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शाहिद जमील एक भारतीय वायरोलॉजिस्ट और अकादमिश‍ियन हैं. अशोका यूनिवर्सिटी से पहले वो वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे. हेपेटाइटिस ई वायरस में अपने शोध के लिए जाने जाने वाले जमील सभी तीन प्रमुख भारतीय विज्ञान अकादमियों राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत, भारतीय विज्ञान अकादमी और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के निर्वाचित सदस्य भी हैं. साल 2000 में चिकित्सा विज्ञान में उनके योगदान के लिए सर्वोच्च भारतीय विज्ञान पुरस्कारों में से एक शांति स्वरूप भटनागर सम्मान‍ से उन्हें नवाजा गया था. 

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शाहिद जमील का जन्म 8 अगस्त 1957 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अब्दुल मजीद सिद्दीकी और जमीला अलीम के घर हुआ. उनके पिता भी मेडिकल अकादमिक थे. शाहिद ने 1977 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री और 1979 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से केम‍िस्ट्री में एमएससी की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद 1984 में जमील ने वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की पढ़ाई की, जहां से बायोकेमेस्ट्री में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.  

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जमील ने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो हेल्थ साइंसेज सेंटर के माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी विभाग में आणविक वायरोलॉजी पर अपना पोस्टडॉक्टरल क‍िया. इसके तीन साल बाद, वह रुमेटोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में संस्थान में शामिल हुए. यहां वो एक वर्ष तक रहे और 1988 में भारत लौटकर इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB)में शामिल हो गए जहां उन्होंने वायरोलॉजी रिसर्च ग्रुप की स्थापना की.

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उन्होंने आईसीजीईबी में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और वायरोलॉजी अनुसंधान समूह के प्रमुख के रूप में लगभग 25 वर्षों तक अपना शोध जारी रखा. साल 2013 में, वे वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस में इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने. फिर जनवरी 2017 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के पद के लिए उन्हें पांच विकल्पों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. 

गौरतलब है कि हाल ही में, अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंस के डायरेक्टर शाहिद जमील ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था. जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में वैज्ञानिक "साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए जिद्दी प्रतिक्रिया" का सामना कर रहे हैं. उन्होंने लेख में मोदी सरकार को यह भी सलाह दी थी कि वो वैज्ञानिकों की बात सुने. पॉलिसी बनाने में जिद्दी रवैया छोड़ें.

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कोरोना में नये वारियंट के बारे में शाहिद जमील लगातार चेता रहे हैं. जमील ने कोरोना के नए वैरिएंट की तरफ ध्यान दिलाते हुए ये भी लिखा है कि मेरा मानना है कि कोरोना के कई वैरिएंट्स फैल रहे हैं और ये वैरिएंट्स ही कोरोना की अगली लहर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. अगर उनके वायरोलॉजिस्ट के तौर पर करियर की बात करें तो सबसे पहले उन्होंने 1984 में हेपेटाइटिस बी वायरस पर काम शुरू किया था. कोलाराडो यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान उन्होंने हेपेटाइटिस ई वायरस की मॉल्यूकुलर बायोलॉजी पर स्टडी करके साइंस क्षेत्र के लोगों का ध्यान आकर्ष‍ित क‍िया था. 

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