
अशोका यूनिवर्सिटी से प्रो सब्यसाची के इस्तीफे का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. 16 अगस्त को इस्तीफे के विरोध में विश्वविद्यालय का पूरा इकोनॉमिक्स विभाग प्रो सब्यसाची के पक्ष में आ गया है. विभाग के फैकल्टी मेंबर्स की ओर से विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी को ओपन लेटर लिखकर प्रो सब्यसाची को वापस उनके पद पर लाने की मांग की है. वहीं प्रो. सब्यसाची के इस्तीफे के बाद एक और प्रोफेसर के इस्तीफे की खबर सामने आई है.
दरअसल, प्रोफेसर दास ने अपने हलिया रिसर्च पेपर लोकसभा चुनाव 2019 में 'धांधली' को लेकर राजनीतिक गलियारे में खलबली मचा दी थी, जिसकी वजह से एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था. अब इस मामले में नया मोड़ सामने आया है. प्रो. सब्यसाची के पक्ष में अर्थशास्त्री विभाग ने ये बातें कही हैं-
गवर्निंग बॉडी को ओपन लेटर-
हमारे सहयोगी प्रोफेसर सब्यसाची दास की ओर से इस्तीफे की पेशकश की गई और यूनिवर्सिर्टी ने जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया. इस तथ्य ने अर्थशास्त्र विभाग के संकाय के प्रति हमारे सहयोगियों, छात्रों और तमाम अशोक विश्वविद्यालय के शुभचिंतकों के विश्वविद्यालय लीडरशिप पर दोबारा उपजे विश्वास को गहराई से तोड़ दिया है.
प्रो. दास ने एकेडमिक प्रैक्टिस के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया. उनके अकादमिक शोध का पियर रीव्यू प्रक्रिया के माध्यम से प्रोफेशनल इवैल्यूएशन किया गया. इस प्रक्रिया में उनकी स्टडी की मेरिट्स जांचने के लिए गवर्निंग बॉडी का हस्तक्षेप संस्थागत उत्पीड़न जैसा है. यह सब एकेडमिक फ्रीडम को कम करता है, और विद्वानों को भय के माहौल में काम करने के लिए मजबूर करता है. हम सब इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और भविष्य में किसी भी प्रयास में गवर्निंग बॉडी की ओर से इनडिविजुअल अर्थशास्त्र संकाय सदस्यों के शोध का मूल्यांकन करने के लिए सामूहिक रूप से सहयोग करने से इनकार करते हैं.
अशोका के अर्थशास्त्र विभाग को बड़े परिश्रम से उस रूप में तैयार किया गया है, जिस पर व्यापक रूप से विचार किया जाता है. ये देश के प्रमुख अर्थशास्त्र विभागों में से एक ऐसे ही नहीं बना है. गवर्निंग बॉडी के एक्शंस से विभाग के अस्तित्व को खतरा है. इससे संकाय के पलायन की संभावना है, और यहां नए संकाय को आने की भावना को भी कम करती है. इसलिए, हम मांग करते हैं कि विश्वविद्यालय को स्पष्ट रूप से यहां नीचे दिए गए प्वाइंट्स के आधार पर कदम उठाकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिए.
• शैक्षणिक स्वतंत्रता बहाल करते हुए प्रोफेसर सब्यसाची दास को बिना शर्त अशोक में अपना पद प्रदान करें.
• साथ ही पुष्टि करें कि गवर्निंग बॉडी फैकल्टी किसी समिति या किसी अन्य स्ट्रक्चर बनाकर रिसर्च के इवैल्युएशन में कोई भूमिका नहीं निभाएगा.
इसके अलावा जब तक बुनियादी शैक्षणिक स्वतंत्रता से संबंधित इन सवालों का समाधान मानसून 2023 सेमेस्टर शुरू होने से पहले नहीं हो जाता, डिपार्टमेंट के फैकल्टी मेंबर्स स्वयं को शिक्षण दायित्यों को किसी आलोचनात्मक जांच और निडरता के बिना पूरा करने में असमर्थ पाएंगे. सच्चाई हमारी कक्षाओं की विशेषता है. हम गवर्निंग बॉडी से इस पर तुरंत ध्यान देने का आग्रह करते हैं, लेकिन 23 अगस्त, 2023 से पहले ऐसा करने में विफल रहने पर अशोका यूनिवर्सिटी देश के सबसे बड़े शैक्षणिक विभाग को व्यवस्थित रूप से बर्बाद कर देगी.
प्रो सब्यसाची के बाद अशोका यूनिवर्सिटी से एक और शिक्षक का इस्तीफा
रिसर्च पेपर विवाद के बीच प्रो सब्यसाची के इस्तीफे को लेकर अशोका यूनिवर्सिटी विवादों से जूझ रही है. बुधवार को अशोका यूनिवर्सिटी से एक और शिक्षक का इस्तीफे की खबर आ रही है. प्रोफेसर दास के बाद अशोका यूनिवर्सिटी में एक और प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने भी अपना इस्तीफा दे दिया है. हालांकि बालाकृष्णन के इस्तीफे की अभी तक अशोका यूनिवर्सिटी ने घोषणा नहीं की है और उनका त्याग-पत्र सार्वजनिक नहीं है, यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने कहा कि वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने सब्यसाची दास के साथ ‘एकजुटता दिखाते हुए’ इस्तीफा देने का फैसला किया है. बता दें कि 2021 में कमेंटेटर प्रताप भानु मेहता ने अशोक यूनिवर्सिटी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.
प्रो. बालाकृष्णन ने 2015 में इस प्राइवेट यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े थे. इससे पहले वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोझिकोड स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान और विश्व बैंक में काम कर चुके हैं. उन्होंने कई प्रसिद्ध किताबें भी लिखी हैं जिनमें इंडियाज़ इकोनॉमी फ्रॉम नेहरू टू मोदी बुक भी शामिल है. साल 2022 में अशोक यूनिवर्सिटी के सहयोग से परमानेंट ब्लैक द्वारा इस किताब को प्रकाशित किया गया था.
लोकसभा चुनाव 2019 पर क्या था विवाद?
प्रोफेसर सब्यसाची ने अपने एक 50 पेज के रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनावों में 'धांधली' की संभावना का आरोप लगाया था. रिसर्च पेपर में आरोप लगाया गया था कि बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान गड़बड़ी करवाई है जिसकी वजह से उसे बड़ी जीत मिली है. हालांकि यूनिवर्सिटी ने रिसर्च पेपर में किए गए दावे से पल्ला झाड़ लिया था. यूनिवर्सिटी ने एक बयान जारी कर कहा कि इस रिसर्च में पेपर किए गए दावे किसी स्टाफ या स्टूडेंट के निजी हो सकते हैं. इसका विश्वविद्यालय से कोई लेना देना नहीं, इसे विश्वविद्यालय के जनरल में इसे जगह नहीं दी गई है.
इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया भी सामने आई थी. इसपर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रायचौधरी ने कहा, ‘फैकल्टी के सदस्यों को अपने चुने हुए क्षेत्रों में पढ़ाने और रिसर्च करने की स्वतंत्रता है. यूनिवर्सिटी अपने फैकल्टी सदस्यों और छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थान में शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे सक्षम वातावरण प्रदान करता है. यह शैक्षणिक स्वतंत्रता सब्यसाची दास पर भी लागू होती है.’ हालांकि अशोक यूनिवर्सिटी ने 01 अगस्त को एक ट्वीट में सार्वजनिक रूप से खुद को प्रो. सब्यसाची दास के शोध पत्र से अलग कर लिया था. साथ ही इस आधार पर रिसर्च की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया था कि इसकी (Peer-Reviewed ∼ एक लेखक के विद्वतापूर्ण कार्य, शोध या विचारों की अन्य लोगों से जांच, जो उसी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं) समीक्षा नहीं की गई थी.
वहीं अशोक विश्वविद्यालय ने पुष्टि की है कि अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. सब्यसाची दास ने अपना इस्तीफा सौंप दिया है. डॉ. दास वर्तमान में अशोका से छुट्टी पर हैं और पुणे में गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (डीम्ड यूनिवर्सिटी) में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में कार्यरत हैं. उन्हें मनाने की व्यापक कोशिशों के बाद यूनिवर्सिटी ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है.