
History of Dhaka University: बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण चार बार प्रधानमंत्री पद पर रहने वाली शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा है. देश में पिछले एक महीने से छात्र सरकारी नौकरी में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. ढाका यूनिवर्सिटी के नाहिद इस्लाम और उनके साथी इस आंदोलन का मुख्य चेहरा हैं. इस विरोध की शुरुआत ढाका यूनिवर्सिटी से ही हुई है, हालांकि यह पहली बार नहीं है आंदोलन के मामले में यह यूनिवर्सिटी हमेशा से क्रांतिकारी रही है. आपको जानकारी हैरानी होगी बांग्लादेश की ढाका यूनिवर्सिटी की नींव आज से 103 साल पहले भारत में रखी गई थी.
भारत में रखी गई थी ढाका यूनिवर्सिटी की नींव
ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेश की सबसे बड़ी और मुख्य यूनिवर्सिटी है, लेकिन इसका इतिहास भारत से जुड़ा हुआ है. इस विश्वविद्यालय की कहानी तबकी है जब बांग्लादेश और बंगाल एक हुआ करता था. ढाका यूनिवर्सिटी की शुरुआत साल 1921 में भारतीय विधान परिषद के ढाका विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 के तहत की गई थी. उस दौरान यह विश्वविद्यालय हिंदुस्तान के बंगाल में था यानी कि यह एक भारतीय विश्वविद्यालय था. पूर्वी बंगाल के बहुसंख्यक मुस्लिम लोगों को खुश करने के लिए, लॉर्ड कर्जन ने ढाका में यूनिवर्सिटी बनाने पर सहमति दी थी. नवाब बहादुर सर ख्वाजा सलीमुल्लाह इस विश्वविद्यालय के लिए अपनी संपत्ति से 600 एकड़ ज़मीन दान की थी. यह विश्वविद्यालय उस दौरान भारत में ही चलाया जा रहा था, जहां अधिकतर शिक्षक हिंदू थे.
इसके बाद भारत की आजादी के साथ-साथ ढाका यूनिवर्सिटी का भी बंटवारा हो गया. ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बांट दिया गया और ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बांट दिया गया. जब बंगाल बंटा तो राजधानी ढाका पाकिस्तान के हिस्से में आई और इसी के साथ ढाका यूनिवर्सिटी भी पाकिस्तान की हो गई. अब इस यूनिवर्सिटी को पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाने लगा. बंटवारे के बाद पाकिस्तानी छात्र और शिक्षक इस विद्यालय में पढ़ने और पढ़ाने लगे लेकिन यह लम्बे समय तक नहीं चला.
पाकिस्तान बंटवारे में मिली असली जगह
आजादी के कुछ सालों में बाद पाकिस्तान में भी बंटवारे की बात होने लगी. मार्च 1971 में पाकिस्तान राष्ट्रपति याह्या खान ने ढाका में मुजीब के साथ लंबी बातचीत की, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान से सरकारी सेनाएं आ रही थीं. इसके बाद 25 मार्च को सेना ने हमला किया, इस हमले में कई छात्र भी मारे गए. इसके बाद ढाका के मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया और पश्चिमी पाकिस्तान ले जाया गया. इस घटना के बाद पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश का स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया. ढाका के पाकिस्तान से अलग होते ही ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेशी हो गई. तबसे लेकर अब तक ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेश में ही है और वहां की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी मानी जाती है.
क्रांतिकारी आंदोलन के लिए जानी जाती है ढाका यूनिवर्सिटी
ढाका यूनिवर्सिटी ने सिर्फ होनहार छात्र ही नहीं बनाए बल्कि कई आंदोलनों की शुरुआत इस विश्वविद्यालय से हुई. बौद्धिक स्वतंत्रता के लिए आंदोलन की शुरुआत 1926 में इसी विश्वविद्यालय से हुई थी. विश्वविद्यालय परिसर हमेशा से ही क्रांतिकारी प्रगतिशील आंदोलन, राष्ट्रवादी आंदोलन और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन का केंद्र रहा है. इसके अलावा 1952 के भाषा आंदोलन से लेकर 1962 के शिक्षा आंदोलन, 1967-69 के अयूब विरोधी आंदोलन और 1971 के मुक्ति संग्राम तक, ढाका विश्वविद्यालय ने जो भूमिकाएं निभाई हैं, उन्हें दुनिया में अद्वितीय माना जा सकता है.
ढाका यूनिवर्सिटी से हुई शेख हसीने के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत
बांग्लादेश की आजादी के बाद भी, 1990 के दशक के इरशाद विरोधी आंदोलन का नेतृत्व ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने ही किया था. ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने 2013 में एक बार फिर से मोर्चा संभाला और बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी पार्टी के सहायक महासचिव अब्दुल कादिर मुल्ला के लिए मृत्युदंड की मांग की. मुल्ला को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान एक कवि का सिर कलम करने, 11 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने तथा 344 लोगों को गोली मारने का दोषी ठहराया गया था, जिसके कारण उसे 'मीरपुर का कसाई' उपनाम दिया गया था. और अब आरक्षण के खिलाफ हुई लड़ाई भी ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों द्वारा ही कई गई है, जिसका अंजाम ये हुआ कि पीएम हसीना शेख को ही देश छोड़ना पड़ा गया.
अभी ढाका विश्वविद्यालय में वर्तमान में विश्वविद्यालय में 13 संकाय, 83 विभाग , 13 संस्थान, 20 आवासीय हॉल, 3 छात्रावास और 56 से अधिक अनुसंधान केंद्र हैं. इस विश्वविद्यालय में लगभग 39,496 छात्र नामांकित हैं और लगभग 1999 शिक्षक उन्हें पढ़ाते हैं.