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घरों से घसीटकर पीटा, दुकानें लूटीं, हत्या की...जान‍ें बांग्लादेश में पहले कब-कब न‍िशाने पर रहे ह‍ि‍ंदू?

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद एक बार फिर यहां हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुओं को घरों से निकालकर पीटा जा रहा है. उनकी दुकानों में लूटपाट की जा रही है. इन हमलों के कारण हिंदू डर के साये में रह रहे हैं.

बांग्लादेश में तख्तापलट बांग्लादेश में तख्तापलट
पल्लवी पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 06 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 1:43 PM IST

तख्तापलट और हिंसा के बाद बांग्लादेश सुर्खियों में बना हुआ है. बांग्लादेश में हिंसा और आगजनी के बीच अब उपद्रवियों ने अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. हिंदुओं के घर-दुकानों में आग लगाई जा रही है, यहां तक कि बांग्लादेश में बने हिंदू मंदिर भी अब इस हिंसा का शिकार हो गए हैं. बांग्लादेश के मेहरपुर इस्कॉन मंदिर में भी आग लगी दी गई है. यह पहली बार नहीं है, बांग्लादेश में हिंदुओं पर सालों से हमले होते आ रहे हैं. हिंदुओं के मंदिर, घर, दुकानों, पांडाल में तोड़फोड़ और लूटपाट की कई खबरें सामने आती रही हैं. इससे पहले भी बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर और हिंदुओं पर हमले के कई मामले सामने आ चुके हैं.

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साल 2022 में ढाका के इस्कॉन में हुई थी तोड़फोड़ और लूट

2021, 2022 और अब 2024, पिछले चार सालों में बांग्लादेश के इस्कॉन मंदिर पर तीन हमले हो चुके हैं. साल 2022 में ढाका के वारी में 222 लाल मोहन साहा स्ट्रीट में स्थित इस्कॉन राधाकांता मंदिर में शाम 7 बजे ये हमला हुआ था. ये हमला हाजी सैफुल्लाह की अगुआई में 200 से ज्यादा लोगों की भीड़ द्वारा किया गया था. अबकी तरह उस दौरान भी मंदिर में तोड़फोड़ और लूट की गई थी. हमले में सुमंत्रा चंद्र श्रवण, निहार हल्दार, राजीव भद्र और अन्य कई लोग भी जख्मी हुए थे. 

साल 2021 में इस्कॉन मंदिर के श्रद्धालुओं के साथ मारपीट

साल 2021 में बांग्लादेश के नोआखाली में भीड़ ने इस्कॉन मंदिर पर हमला किया गया था. उस वक्त भी मंदिर में जमकर तोड़फोड़ की गई थी. इतना ही नहीं मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं के साथ भी मारपीट की गई थी. इस हमले के बाद इस्कॉन की ओर से ट्वीट कर हमले की जानकारी दी गई थी. इस्कॉन ने हमले की तस्वीरें जारी कर कहा था कि ''बांग्लादेश के नोआखाली में आज इस्कॉन मंदिर और श्रद्धालुओं पर भीड़ ने हिंसक हमला किया. मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा है और कई श्रद्धालुओं की हालत गंभीर बनी हुई है. हम बांग्लादेश सरकार से हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों को न्याय के दायरे में लाने की मांग करते हैं. 

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13 अक्टूबर को दुर्गा पंडालों में हुआ हमला

बांग्लादेश में हिंदुओं पर आए दिन हमले से सभी वाकिफ हैं. ऐसा ही एक हमला नवरात्रि के दिनों में किया गया था. 13 अक्टूबर के दिन जब भारत समेत दुनियाभर में रह रहे हिंदू नवरात्रि की अष्ठमी को देवी दुर्गा की पूजा के उल्लास में डूबे हुए थे. ऐसे वक्त में बांग्लादेश की राजधानी ढाका से 100 किलोमीटर दूर स्थित कोमिल्ला में धर्म से जुड़े एक अफवाह का सहारा लेकर हिंदुओं के खिलाफ भीड़ को भड़काया गया और दुर्गा पूजा पंडालों, मंदिरों और हिंदू समुदाय के लोगों के घरों पर हमले किए गए, तोड़-फोड़ और आगजनी की गई. इससे पहले हमलावर दुर्गा पंडालों और मंदिरों पर कई हमले हो चुके थे. इन हमलों में तीन लोगों की मौत हो गई थी. जबकि 500 से ज्यादा हिंदू घायल हुए थे.

पीएम की शांति अपील के बाद भी नहीं थमे हमले

इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने लोगों से शांति की अपील की थी और कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए थे लेकिन हिंसा थमी नहीं. तीन दिन तक हिंसा का तांडव चलता रहा. कोमिल्ला से शुरू हुई हिंसा की ये आग नोआखली, फेनी सदर, चौमुहानी, रंगपुर, पीरगंज, चांदपुर, चटगांव, गाजीपुर, बंदरबन, चपैनवाबगंज और मौलवीबाजार समेत कई इलाकों में फैल गई. पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की गई थी. इस हिंसा में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई थी जबकि 60 पूजा मंडपों में हमले, तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी की घटनाएं भी हुईं थीं.

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एक दशक में हिंदुओं पर लगातार बढ़े हमले

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों पर काम कर रही संस्था AKS के अनुसार, साल 2021 से पिछले 9 साल में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को 3679 बार हमलों का सामना करना पड़ा. इस दौरान 1678 मामले धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ और हथियारबंद हमलों के सामने आए. इसके अलावा घरों-मकानों में तोड़-फोड़ और आगजनी समेत हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर लगातार हमले किए गए हैं. खासकर 2014 के चुनावों में अवामी लीग की जीत के बाद हिंसक घटनाएं बड़े पैमाने पर हुईं जिनमें हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया. 9 साल में हुए इन हमलों में हिंदू समुदाय के 11 लोगों की जान गई तो 862 लोग जख्मी हुए हैं.

अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी बने हैं निशाना

साल 2016 में भी हिंसा की वारदातें हुईं और 7 लोगों की जान गई. इन हमलों के पीछे आतंकी संगठनों का भी हाथ बताया गया था. केवल हिंदुओं को ही नहीं बाकी अल्पसंख्यक समुदायों को भी निशाना बनाकर पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में लगातार हमले हुए हैं. साल 2019 और 2020 में हिंदुओं के अलावा अहमदिया समुदाय को टारगेट करके भी हमले किए गए हैं. इनकी दुकानें-घर और बिजनेस में आगजनी की गई. पिछले आठ सालों में बौद्ध समुदाय को टारगेट करके भी चार हमलों को अंजाम दिया गया था.

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बांग्लादेश में कम हो गई हिंदुओं की आबादी

बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न सालों से होता आ रहा है. बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 1951 में 22 प्रतिशत से घटकर 2022 में 8 प्रतिशत से भी कम हो गई है. यह तब है जब मुसलमानों की आबादी 1951 में 76 प्रतिशत से बढ़कर 91 प्रतिशत से अधिक हो गई है. हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के अनुसार, 1964 से 2013 के बीच धार्मिक उत्पीड़न के कारण 11 मिलियन से अधिक हिंदू बांग्लादेश छोड़ चुके हैं. हर साल 230,000 हिंदू देश छोड़ रहे हैं. अगर संख्या के हिसाब से देखें तो बांग्लादेश में करीब 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़ जनसंख्या हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं. 2011 की जनगणना में यह संख्या केवल 8.5 प्रतिशत रह गई. 2022 में यह आठ प्रतिशत से भी कम हो गई है. 

देश छोड़ने को मजबूर हैं हिंदू

डीडब्ल्यू के अनुसार, 2011 की जनगणना से पता चला है कि 2000 से 2010 के बीच देश की आबादी से दस लाख हिंदू गायब हो गए हैं. बांग्लादेश से न केवल पलायन, बल्कि मुसलमानों में हाई बर्थ रेट की वजह से यह गिरावट आई थी. बांग्लादेश का राजकीय धर्म इस्लाम है, लेकिन अवामी लीग सरकार ने 2011 में प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्षता' को फिर से शामिल किया था. प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में एक 'धर्मनिरपेक्ष' अवामी लीग सरकार बनी हुई थी फिर भी पिछले 15 वर्षों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस तरह के हमलों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. 

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