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बिहार में पहली बार सरकारी स्कूलों में BPSC से चुनकर आए प्र‍िसिंपल की होगी नियुक्ति

शिक्षा मंत्री ने बताया कि 40 हजार शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हुई. बाकी बचे पदों पर पंचायत चुनाव के बाद प्रक्रिया पूरी होगी. इसके साथ ही बिहार के सवा लाख शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है.

प्रतीकात्मक फोटो (Getty) प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
जहांगीर आलम
  • समस्तीपुर ,
  • 23 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST

बिहार में सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए शिक्षा विभाग ने बड़ा फैसला लिया है.अब सरकारी स्कूलों में बीपीएससी से चुनकर आए शिक्षक ही प्रधानाध्यापक बन सकेंगे.इससे सरकार को उम्मीद है कि गांव से लेकर शहर तक के स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार होगी.

समस्तीपुर में बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए हमारी सरकार ने कई कदम उठाए है.बिहार में पहली बार प्रारंभिक विद्यालयों से लेकर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अब बिहार लोक सेवा आयोग से लिखित परीक्षा देकर जो मेघा सूची में आएंगे वही स्कूलों में प्रधानाध्यापक के रूप में नियुक्त होंगे.शिक्षा मंत्री ने कहा कि बीपीएससी से चुनकर बने प्रधानाध्यापकों को अनुशासनिक अधिकार भी देने जा रहे है. इस निर्णय से बिहार के दूर दराज के लगभग 70 हजार स्कूलों में पठन पाठन को लेकर गुणवत्तापूर्ण सुधार आने की उम्मीद है.

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शिक्षा मंत्री ने नियोजित शिक्षक शब्द को बेकार बताते हुए कहा कि अब सरकार नियोजित नहीं मानती है उन्हें सरकार विधिवत उनकी नियुक्ति करती है.अलग उनका वेतनमान है.शिक्षा मंत्री ने कहा कि सवा लाख शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है.पंचायत चुनाव के कारण बाधित है.लेकिन इसके बावजूद 40 हजार शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है.जैसे ही चुनाव खत्म होगा बांकी बचे पदों के नियुक्ति की प्रक्रिया पूरा कर लेंगे.

समस्तीपुर में बिहार के शिक्षा मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि बिल वापस लेने की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला किसानों के हित मे लिया गया फैसला है.उन्होंने कहा कि किसानों के हित मे बिल को वापस लेना प्रधानमंत्री का कदम क्रांतिकारी एवं स्वागत योग्य है.शिक्षा मंत्री ने कहा कि कृषि बिल पर विपक्षी दल राजनीति करने मे लगी है. कृषि कानून को यूपी चुनाव के कारण वापस करने को लेकर देखना विपक्षी की अपनी मानसिकता हो सकती है.क्योंकि जिस दिन कृषि कानून बना था उस समय भी यूपी का चुनाव होना तय था.

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