
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार दे दिया है. 19 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार और न्यायमूर्ति पीपी साहू की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण में 58% की सीमा को रद्द कर दिया. उन्होंने इस जारी अभ्यास को असंवैधानिक बताया और कहा कि आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता.
भाजपा के नेतृत्व वाली डॉ रमन सिंह सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 58% कर दिया था. इसके तहत अनुसूचित जाति का आरक्षण (SC) 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति और (ST) के लिए इसे 32 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए कोटा 14 प्रतिशत कर दिया गया था. राज्य में हंगामा हुआ जिसके बाद राज्य सरकार के फैसले को बिलासपुर उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. एक दशक के बाद ही, छत्तीसगढ़ HC ने इस फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया.
58 प्रतिशत हो गया था आरक्षण
मामले में एक याचिकाकर्ता, छत्तीसगढ़ HC के वकील मतीन सिद्दीकी ने कहा, 'अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए आरक्षण तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को छत्तीसगढ़ की नियुक्तियों में संशोधन किया गया जिसमें कुल आरक्षण 58 प्रतिशत कर दिया गया था. कैटेगरी के अनुसार आरक्षण इस प्रकार रखा गया कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण 30 प्रतिशत से 32 प्रतिशत हो गया. SC के लिए 16 प्रतिशत से 12 प्रतिशत हो गया तथा OBC के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण मान्य हो गया.'
इससे नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सीमा 50 फीसदी, से अधिक हो गया. इन याचिकाओं पर 2012 से लगातार सुनवाई चली जिसका फैसला अब आया है. कोर्ट ने सरकार के नोटिफिकेशन को खारिज कर नियम को खत्म कर दिया.
यथावत रहेंगी नियुक्तियां
बढ़े आरक्षण के तहत जिन उम्मीदवारों को नियुक्तियां मिल गई हैं वे बरकरार रहेंगी. हालांकि, आगे आने वाली भर्तियों में कोर्ट द्वारा तय नियमानुसार ही नियुक्तियां की जाएंगी. मगर पहले से नौकरी पा चुके उम्मीदवारों की नौकरी बरकरार रहेगी.