
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में गणित को आसान बनाने के लिए अब वैदिक गणित की कई तकनीकों का इस्तेमाल होगा. दिल्ली शिक्षा निदेशालय की ओर सर्कुलर जारी करके सरकारी स्कूल के बच्चों को एबेकस और वैदिक गणित सिखाने को कहा गया है. मैथ पढ़ाने वाले शिक्षकों की की इसमें अलग-अलग राय हैं. aajtak.in ने गणित शिक्षकों से इसके बारे में बातचीत करके वैदिक गणित पढ़ाने से होने वाले फायदों के बारे में जाना.
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज के मॉडर्न मैथमेटिक्स के शिक्षक डॉ रतन देव शर्मा ने वैदिक गणित पर लंबे समय तक काम किया है. उन्होंने कहा कि वैदिक गणित पूरी तरह लॉजिक पर आधारित है. बिना किसी तकनीक के इस्तेमाल के इंसान वैदिक गणित के 16 सूत्र जो असल में 16 श्लोक हैं, उनसे पूरी कैलकुलेशन सीख लेता है. बच्चों को अगर उनके किसी भी करियर में लीडर बनाना है तो उन्हें वैदिक गणित के लिए प्रेरित करना चाहिए.
डॉ शर्मा आगे कहते हैं कि वैदिक गणित असल में प्राचीन भारतीय गणित है जिसमें एल्जेब्रा (बीजगणित) अरिथमेटिक (अंक गणित) और टेक्नामेट्री (त्रिकोणमिति ) उपलब्ध है. एल्जेब्रा और खास तौर पर अंकगणित का कुछ पार्ट है जो वैदिक गणित के सूत्रों की मदद से बहुत अच्छा कर सकते हैं.
बोद्धायन सुलभा सूत्र बना पाइथागोरस थ्योरम
डॉ शर्मा कहते हैं कि भारतीय परंपरा में बोद्धायन सुलभा सूत्र था जिससे बाद में पाइथागोरस थ्योरम बन गया. इसमें तब सुलभा यानी रस्सी के जरिये नापजोख का काम होता था. इसी तरह ज्यामितिय की शुरुआत यज्ञ बेदी से शुरू हुई. इसमें पूरा सूत्र है कि किस तरह स्क्वेयर यानी वर्ग को सर्कल में वृत्त में बदला जा सकता था.
डॉ शर्मा कहते हैं कि आज तकनीकें आपको सब आसानी से हल करना सिखाती हैं. लेकिन अगर आप लीडर बनना चाहते हैं, लॉजिक जानना जरूरी है. वो आगे बताते हैं कि हमारे कई प्राचीन ऋषि जिनमें कात्यायन, बौद्धायन और अपस्तम्भ जैसे नाम थे. ये सभी अलग अलग गुरुकुल चलाते थे. इन्होंने अलग अलग फार्मूले तैयार किए जिसे सुलभा सूत्र में एक साथ संजोया गया.
टीचर्स को मिलेगी ट्रेनिंग
शिक्षा निदेशक ने सर्कुलर में कहा है कि कैलकुलेशन और नंबर हमारी रोजमर्रा की जिंगदी का हिस्सा हैं. जो बच्चे गणित में अच्छे बनना चाहते हैं वो वैदिक गणित और एबेकस के जरिये कैलकुलेशन में दक्ष हो सकते हैं. जो टीचर इन तकनीकों के एक्सपर्ट हैं, वे टीचर बन सकते हैं. निदेशालय ने 17 मार्च तक ऐसे टीचर्स को ऑनलाइन फॉर्म भरने को कहा है. ये टीचर्स ही दूसरे टीचर्स को ट्रेनिंग देंगे.
अब AI का दौर है, प्राचीन से ज्यादा आधुनिक तकनीकें जरूरी
डीयू के सत्यवती कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर प्रो धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को समझाने के लिए स्कूली बच्चों को पढ़ाने के कई तरीकों में ये एक तरीका भी हो सकता है. लेकिन अब जब आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है, बच्चों को कैलकुलेशन के लिए तमाम फार्मूले याद रखने की जरूरत नहीं.
मोबाइल एक ऐसा चलता फिरता उपकरण है जो गणित को काफी आसान कर देता है. इसके अलावा अब तो चैट जीपीटी जैसे प्लेटफार्म आ गए हैं, भविष्य में और भी फास्ट तकनीकें आने के इंतजार में हैं. ऐसे में बच्चों की मेमोरी में अनावश्यक दबाव डालना जरूरी नहीं. बच्चों को अब फार्मूला बताने के बजाय कॉन्सेप्ट सिखाना होगा. प्रो कुमार उदाहरण देते हुए बताते हैं कि अब कई फास्ट तकनीक आ गई हैं. पहले हम लोग मैथ में बच्चों को ग्राफ बताते थे. अब ऐसा सॉफ्टवेयर आ गया है कि ग्राफ बनकर तैयार हो जाता है. बस, उसमें लॉस क्या हो रहा है. उसके बनने की प्रक्रिया क्या है, यह बच्चों को पता जरूर होनी चाहिए.