
देश में निजी विश्वविद्यालयों के नाम पर नकली डिग्री और प्रमाण पत्र बनाने का एक बड़ा रैकेट तेजी से फल-फूल रहा है. राजस्थान में हाल ही में हुई पुलिस कार्रवाई से यह बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसमें बेरोजगार और अनपढ़ युवाओं को नकली डिग्रियां देकर मोटी रकम वसूलने वाले ठगों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. जयपुर में पुलिस ने पहले ई-मित्र कियोस्क के जरिए चल रहे कंसल्टेंसी सेंटर्स पर छापा मारा, जिसमें तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. इनके कब्जे से 750 से अधिक फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट जब्त की गईं. छापेमारी के दौरान बड़ी संख्या में युवक-युवतियां नकली डिग्रियां बनवा रहे थे, लेकिन पुलिस की दस्तक होते ही वहां हड़कंप मच गया.
इतने करोड़ की हो चुकी ठगी
जांच में पता चला है कि एक-एक नकली डिग्री 50 हजार से 2.5 लाख रुपये तक में बेची जाती थी. अनुमान है कि दो साल में ही यह गिरोह 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की ठगी कर चुका है. आरोपियों ने यह भी खुलासा किया है कि डिग्रियों के लिए वसूला गया पैसा सीधे संबंधित विश्वविद्यालयों के खातों में जमा कराया जाता था, जिससे कई निजी विश्वविद्यालयों की मिलीभगत उजागर हुई है.
कई यूनिवर्सिटी भी शामिल
अब तक की जांच में कई निजी विश्वविद्यालयों के नाम सामने आ चुके हैं. पुलिस ने छापेमारी में 16 विश्वविद्यालयों से जुड़े 3 हजार से ज्यादा दस्तावेज बरामद किए हैं, जिनमें बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान की निजी विश्वविद्यालयों शामिल हैं. इनमें से 700 से अधिक डिग्रियों को फर्जी तरीके से जारी करने का पता चला है, जिनका मिलान यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड से करवाया जा रहा है.
तीन आरोपी गिरफ्तार
17 अक्टूबर को जयपुर पुलिस ने एक विशेष टीम बनाकर आरोपियों विकास मिश्रा, सत्यनारायण शर्मा और विकास अग्रवाल को गिरफ्तार किया. सात दिन की पूछताछ के बाद तीनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस ने इनके पास से सीपीयू, मॉनिटर, प्रिंटर, दो लैपटॉप और दो पेन ड्राइव बरामद किए, जिनकी जांच की जा रही है. इन पेन ड्राइव्स में डिग्री प्राप्त करने वालों के नाम दर्ज हैं. पूछताछ में सामने आया कि आरोपी आवेदकों से मार्कशीट, डिग्री, माइग्रेशन सर्टिफिकेट के लिए पैसे सीधे यूनिवर्सिटी के बैंक खातों में ऑनलाइन जमा करवाते थे, और बदले में विश्वविद्यालय इन्हें कमीशन देते थे.
जयपुर पूर्व पुलिस उपायुक्त तेजस्वनी गौतम ने बताया कि ई-मित्र संचालकों द्वारा फर्जी अंकतालिकाएं, प्रमाण पत्र, डिग्रियां और माइग्रेशन सर्टिफिकेट बनाए और बेचे जा रहे थे. इस सूचना के आधार पर प्रतापनगर के सेक्टर 8 में यूनिक एजुकेशन कंसल्टेंसी और एसएसआईटी सेंटर पर छापेमारी की गई. वहां से भारी मात्रा में फर्जी डिग्रियां, अंकतालिकाएं, प्रवजन प्रमाण पत्र, किरायेनामे, चेकबुक, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड जब्त किए गए. पुलिस ने दो मामले दर्ज किए और चार आरोपियों को गिरफ्तार किया.
जांच में यह भी सामने आया कि ई-मित्र और कोचिंग संस्थानों की आड़ में बेरोजगार युवाओं को बिना परीक्षा और कक्षा में शामिल हुए फर्जी डिग्रियां दी जा रही थीं. इसके लिए विश्वविद्यालयों के प्रशासन के साथ सांठगांठ करके मोटी रकम ली जाती थी. स्थानीय निवास का प्रमाण देने के लिए भी फर्जी किरायेनामे बनाए जा रहे थे.
स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) को अब तक 700 से अधिक फर्जी डिग्री देने का पता चला है. इन डिग्रियों में दर्ज एनरोलमेंट नंबर को विश्वविद्यालयों के रिकॉर्ड से मिलाया जा रहा है. जांच में 29 फर्जी किरायेनामे, 12 चेकबुक, 97 शपथ पत्र, 14 बैंकों की पासबुक, 13 डेबिट कार्ड, 7 मोबाइल फोन, एक पेटीएम मशीन और 2 डीवीआर बरामद किए गए हैं। इसमें यूनिवर्सिटियों से जुड़े बड़े लेन-देन का भी खुलासा हुआ है।