
सेव द चिल्ड्रन एनजीओ और सीबीजीए (सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी) ने मंगलवार को अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (ECE) की भारत की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक, 03 से 06 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा पर सरकार द्वारा GDP का केवल 0.1 फीसदी ही खर्च किया जाता है, जो सही नहीं है. सेव द चिल्डर्न ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि देश में छोटे बच्चों की शुरुआती शिक्षा पर देश के जीडीपी का 1.2 से 2.2 पर्सेंट तक खर्च किया जाना चाहिए.
रिपोर्ट में इस बात पर भी सवाल किया है कि इस तरह भारत नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के आधार पर 2030 तक कैसे बच्चों को जरूरी प्राथमिक शिक्षा दी जा सकती है, फाइनेंसिंग तौर पर ऐसा होना मुमकिन नहीं लग रहा. ईसीई रिपोर्ट में 3 से 6 साल की उम्र के देश के सभी बच्चों को देश की जीडीपी के कुल फीसद लागत को खर्च करने का विश्लेषण करते हुए मॉडल पेश किया गया है.
GDP का कहां-कितना खर्च होना जरूरी है?
सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के सीईओ सुदर्शन सुची ने कहा, 'यह रिपोर्ट, टद राइट स्टार्टट 2018 के अध्ययन पर हमारे पहले के काम से बनी है, जो सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण ईसीई सेवाएं देने के लिए एस्टिमेट फाइनेंशियल रिसोर्स पर जरूरी सबूत पेश करती है.' रिपोर्ट के मुताबिक, क्वालिटी ईसीई सर्विसेज के लिए प्रति बच्चा प्रति वर्ष औसत अनुमानित लागत 32,531 रुपये (जो किया जा सकता है) - 56,327 रुपये (ओप्टिमल कॉस्ट) की सीमा में है. इस मॉडल में बताया गया कि देश की जीडीपी का 1.6 से 2.5 परसेंट प्री स्कूलों और डे केयर सेंटर में खर्च किया जा सकता है. वहीं, आंगनबाड़ी केंद्रों में 1.5 से 2 पर्सेंट तक खर्च किया जा सकता है. जबकि प्राइमरी स्कूलों में प्री प्राइमरी सेक्शन में जीडीपी कुल का 2.1 से 2.2 पर्सेंट तक खर्च किया जा सकता है.
बच्चों की शिक्षा के खर्च को कॉस्ट नहीं, इंवेस्टमेंट समझें
बता दें कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर चर्चा के पैनल डिस्कशन में कहा गया कि इन बच्चों की एजुकेशन के खर्च पर कॉस्ट के बजाय इंवेस्टमेंट के तौर पर देखना चाहिए. बच्चों की शिक्षा पर तीन साल या इसेस ज्यादा समय तक खर्च करें. एंट्री लेवल की एजुकेशन पर जरूरी शिक्षा पर जौर देना चाहिए. इसके लिए राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की जरूरत है.