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डमी स्कूलों पर लगाम लगाना कितना जरूरी? कैसे बढ़ा इनका चलन, एक्सपर्ट से समझिए

डमी स्कूलों पर प्रतिबंध बच्चों के मानस‍िक स्वास्थ्य की द‍िशा में भी एक बेहतर कदम है. टीनेजर्स के मानस‍िक स्वास्थ्य पर हाल ही में प्रकाश‍ित एक रिपोर्ट के अनुसार जो छात्र केवल कोचिंग पर निर्भर रहते हैं, वे सोशल स्किल्स और अन्य एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज से कट जाते हैं. इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. 

Representational Image (DALL·E द्वारा जेनरेट) Representational Image (DALL·E द्वारा जेनरेट)
मानसी मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 28 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 4:40 PM IST

देश में ‘डमी स्कूल’ का कल्चर तेजी से पैर पसार चुका है. खासकर कोटा, जयपुर, दिल्ली, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में यह ट्रेंड सालों से हावी है. जिन स्टूडेंट्स को मेडिकल या इंजीनियरिंग की कोचिंग करनी होती है, वे औपचारिक रूप से किसी स्कूल में नामांकन कराते हैं, लेकिन वहां कभी जाते नहीं. उनका पूरा समय कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में गुजरता है. अब CBSE ने ऐसे छात्रों पर लगाम कसने का फैसला किया है. कोच‍िंग सेंटर्स के बढ़ते वर्चस्व के साथ-साथ इन स्कूलों का चलन कैसे बढ़ा, आइए समझते हैं. 

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डमी स्कूल को लेकर CBSE ने स्पष्ट किया है कि जो स्टूडेंट्स रेगुलर स्कूल नहीं जाते हैं, वे 2025-26 से बोर्ड एग्जाम में नहीं बैठ पाएंगे. शिक्षा मंत्रालय ने भी चिंता जताई है कि यह सिस्टम छात्रों को स्कूलिंग से दूर कर रहा है और मानसिक दबाव बढ़ा रहा है. 

डमी स्कूल: कैसे बढ़ा चलन?

शिक्षाविद शशि प्रकाश सिंह कहते हैं कि यह कोचिंग सेंटर और स्कूलों की मिलीभगत का नतीजा है. नामांकन स्कूल में होता है, लेकिन छात्र वहां कभी नहीं जाते. उनकी उपस्थिति कागजों में दर्ज होती है. असल में, वे कोचिंग में पढ़ाई कर रहे होते हैं। दिल्ली में नजफगढ़, मुंडका, नांगलोई जैसे इलाकों में यह कारोबार बड़े पैमाने पर फैला हुआ है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, NEP-2020 और केंद्र सरकार की कोचिंग गाइडलाइन्स के बावजूद यह सिलसिला थमा नहीं है. 

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क्या है डमी स्कूल का असली मुद्दा 
ऐसा देखा गया है कि कई कोचिंग संस्थान बच्चों को सातवीं कक्षा से ही नीट या जेईई की तैयारी कराने लगते हैं. इसमें 'डमी स्कूल' बड़ा रोल निभाते हैं. वो आम स्कूलों की तरह होते हैं बस यहां ऐसे छात्रों को रेगुलर कक्षाओं में न आने की सहूलियत मिलती है. ऐसे में बच्चा जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट परीक्षा आदि की तैयारी में जुट जाता है, उधर बोर्ड की तैयारी खुद पढ़कर या कोचिंग की मदद से करता है. इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट भी कह चुकी है कि डमी स्कूलों की तादाद में तेजी से हो रही वृद्धि उन छात्रों के करियर पर बुरा असर डाल रही है जो वास्तव में स्थानीय शिक्षा मानदंड को पूरा करते हैं.

CBSE का बड़ा फैसला, क्या होगा असर?

CBSE के इस नए नियम के बाद हजारों स्टूडेंट्स और कोचिंग सेंटर प्रभावित होंगे. शिक्षा विशेषज्ञ अमित निरंजन का कहना है कि इसका असर दूरगामी होगा. अब स्टूडेंट्स को नियमित स्कूलिंग करनी होगी. इससे उनकी समग्र शिक्षा पर जोर दिया जाएगा, जो केवल कोचिंग पर निर्भर रहने से संभव नहीं था. शिक्षक राजीव झा के मुताबिकबोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए स्कूल में उपस्थिति जरूरी होगी, यह फैसला उन बच्चों को फायदा पहुंचाएगा जो असल में स्कूलिंग से वंचित हो जाते थे. 

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छात्रों पर मानसिक दबाव बढ़ा रहे डमी स्कूल
कोटा जैसे शहरों में डमी स्कूल का कल्चर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है. हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा था कि कोचिंग हब में आत्महत्या के बढ़ते मामलों की एक बड़ी वजह असंतुलित जीवनशैली है. टीनेजर्स के मानस‍िक स्वास्थ्य पर हाल ही में प्रकाश‍ित एक रिपोर्ट के अनुसार जो छात्र केवल कोचिंग पर निर्भर रहते हैं, वे सोशल स्किल्स और अन्य एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज से कट जाते हैं. इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. 

अब CBSE के इस फैसले को लागू करना स्कूलों की जिम्मेदारी होगी. सवाल यह है कि क्या स्कूल और कोचिंग सेंटर इस नियम का पालन करेंगे. अब CBSE अधिकारियों को भी इस पर सख्ती दिखानी होगी. 

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