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India Today Conclave: एल्कोहल-ड्रग-फर्स्ट सेक्सुअल रिलेशन की तरह सुसाइड-डिप्रेशन की भी औसत उम्र घटी

India Today Conclave 2023: देश में युवाओं की आत्महत्या चिंताजनक स्तर पर बढ़ी है. 18 से 35 साल के युवाओं में ऐसी क्या मायूसी या नाउम्मीदी है कि वो आत्महत्या की तरफ झुक रहे. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में एक्सपर्ट ने इस पर चर्चा की, जिसमें कई जरूरी तथ्य सामने आए जो आपको भी समझने चाहिए.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में डॉ हरीश शेट्टी (बीच में), कोचिंग संचालक रामकृष्ण वर्मा (L), चरित जग्गी (R) इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में डॉ हरीश शेट्टी (बीच में), कोचिंग संचालक रामकृष्ण वर्मा (L), चरित जग्गी (R)
aajtak.in
  • मुंबई ,
  • 05 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 6:50 PM IST

गुरुवार को मुंबई में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव-2023 (India Today Conclave-2023) में 'यूथ होपलेसनेस एंड हेल्पलेसनेस अंडरस्टैंड‍िंग व्हाट लीड्स टू सुसाइड' सेशन में युवाओं के मा‍नसिक स्वस्थ्य पर चर्चा हुई. 

आज ज‍िस तरह बड़ी संख्या में स्टूडेंट डिप्रेशन का श‍िकार हैं. एक साल में स्टूडेंट सुसाइड बढ़ा है, इसमें युवा महिलाओं की संख्या 8 पर्सेंट ज्यादा है. कोचिंग हब कोटा से नौ महीने में 27 सुसाइड हो चुके हैं ऐसे में युवाओं की मेंटल हेल्थ पर इस चर्चा ने सभी को सोच का एक नया आयाम दिया. 

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इस चर्चा में मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी ने सबसे पहले अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि हम रैपिड सोशल चेंज के मिड में है. आज हाल ये हैं कि लोग बिना जाने उस फेसबुक फ्रेंड को भी शुभकामना दे रहे हैं जो मर चुका है. इसका सीधा अर्थ यह है कि अब लोगों में भावनात्मक जुड़ाव कम हुआ है. आपसी रिश्तों में संवाद कम हुआ है. उन्होंने इसमें सरकार की नीति पर भी निशाना साधा. 

NEP में भी नहीं है मेंटल हेल्थ 
डॉ शेट्टी ने कहा कि अभी हाल ही में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी लाई गई. ये फाउंडेशन फॉर बिल्ड‍िंग न्यू इंडिया के उद्देश्य से लाई गई. लेकिन इसमें कुछ भी मेंटल हेल्थ के लिए नहीं है. नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क में भी कुछ नहीं है. आज जब मेंटल हेल्थ एपेड‍ेमिक का दौर है. युवा बोलने को तैयार हैं, पर कोई सुनने वाला नहीं है. स्वच्छ भारत अभ‍ियान, और कोविड अभ‍ियान की तरह मेंटल हेल्थ कैंपेन चलाना होगा. यह एक बहुत बड़ा क्राइसिस है, ऐसे में हम सबको जिम्मेदार होना होगा. 

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आज एज डाउन हुई है- डॉ शेट्टी
युवाओं में मानसिक समस्याओं पर डॉ शेट्टी ने कहा कि इसमें सबसे पहले हमें एज को किनारे रखना होगा. अब एज का दायरा नीचे हो गया है. सुसाइड करने की निम्नतम आयु कम हो गई है. डिप्रेशन के फर्स्ट एपिसोड की एज कम हो गई है. फर्स्ट सेक्सुअल इंटरकोर्स की एज कम हो गई है. पहली बार ड्रग या एल्कोहल लेने की एज का दायरा घटा है. इसी तरह पहली बार जुवनाइल ऑफेंस की एज भी घटी है. एक एज को नहीं कह सकते. बच्चे से लेकर बुजुर्ग से लेकर युवा बच्चे सभी मेंटल हेल्थ एपिडेमिक से जूझ रहे. 

अगर ये हालात नहीं सुधरे तो देश में उत्पादन से लेकर आर्थ‍िक स्थिति, शारीरिक रोगों की वृद्ध‍ि हर तरह इसका असर दिखेगा. 
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को समझने के लिए सिर्फ आत्महत्या के आंकड़े ही अकेला जरिया नहीं हैं. आज सड़क पर होने वाले झगड़े, मर्डर, फैमिली इश्यूज को देख‍िए. इन सबके पीछे के कारणों को समझ‍िए. आज हर तरफ जागरूकता और मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग के लिए अभ‍ियान चलाना जरूरी है. 

कोटा पर भी हुई बात
Resonance कोचिंग कोटा के सीएमडी रामकृष्ण वर्मा ने कोटा के हालातों पर अपनी बात रखी. साथ ही कोचिंग संस्थानों के प्रयासों पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि मैंने खुद 1995 में कोटा में करियर स्टार्ट किया था. ये 29वां साल चल रहा. पहले मैं यहां टीचर था अब छह साल से रेजोंनेस को हेड कर रहा हूं. मैंने यहां अलग-अलग बैकग्राउंड से आकर बच्चों को पढ़ाई करते देखा है. कई तरह की चीजें बच्चों में देखी हैं. उनमें बिहैवियरल और एस्प‍िरेशनल चीजें देखी हैं. 

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बच्चे डी-फोकस हुए हैं- कोचिंग संचालक 
रामकृष्ण वर्मा ने उदाहरण देते हुए बताया कि कई बच्चे गांवों से आते हैं, उनके साथ कई तरह की समस्याएं होती हैं, लेकिन उनके साथ एक ड्राइविंग फोर्स होता है. कोविड के कारण यह हुआ है कि बच्चों में डिस्ट्रैक्शंस हुए हैं. वो डी फोकस हुए हैं. सोशल मीडि‍या के दौर में पढ़ाई के साथ साथ बच्चों का टाइम और भी कहीं खर्च होता है. फिर उसे बाद में लगता है कि ये चीज छूट गई वो चीज छूट गई. 

उन्होंने कहा कि आज इनफॉर्मेशंस का ओवरफ्लो है. आज इजिली ड‍िस्ट्रैक्शन होता है. ऐसे भी बच्चे रहकर गए हैं जिनके पेरेंट्स खाने का लाते थे, खुद बनाते थे. कई बच्चों के पेरेंट्स ने खेत बेचकर पढ़ने भेजा है, किसी ने पर्सनल लोन लिया है. इससे भी बच्चों में अपराधबोध होता है. कोचिंग ऐसे बच्चों की अपनी तरह से मदद भी करती हैं. कई बच्चों को कोचिंग अपनी तरह से डिस्काउंट और स्कॅालरश‍िप देते हैं. फिर भी कुछ तो बरडेन रहता है, वो प्रेशर डिस्टर्ब करता है. 

पत्रकार और सोशल एंटरप्रेन्योर (Founder and Director, We The Young)चरित जग्गी ने कहा कि आज सोशल मीडिया की तड़क-भड़क के बीच भी बड़ी संख्या में यूथ मेंटल हेल्थ क्राइसिस से जूझ रहा है. युवा पीढ़ी की मेंटल हेल्थ स्टोरीज हैं पर कोई सुनने वाला नहीं है. उन्हें नहीं लगता कि कोई उन्हें सुन रहा है. वो चाहते हैं कि काश कोई उन्हें सुने और समझें. मुझे भी  लोग लिखते हैं कि कैसे हम अपनी बात कह पाएं. लेकिन मेंटल हेल्थ अवेयरनेस की भारी कमी है. उदाहरण के लिए किसी को भी नेशनल मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन नंबर नहीं याद होगा, जबकि एमरजेंसी के नंबर जैसे पुलिस-एबुलेंस का नंबर सब जानते होंगे. 

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काउंसलर का रोल 
चरित ने बताया कि मैं दिल्ली के अच्छे स्कूल गया. वहां काउंसलर्स थे, लेकिन लंबे समय तक पता नहीं चला कि काउंसलर कौन हैं, क्यों हैं, उनसे बात क्या करनी है. मुझे तो यही पता था कि जब टीचर नहीं आते तो ये क्लास लेते हैं. इसकी वजह अवेयरनेस नहीं है. बहुत से यंग लोग सोशल मीडिया में खोजते हैं कि उन्हें ये प्रॉब्लम है तो कहां जाएं. पीपल आर टाकिंग, लेकिन हम उन्हें नहीं सुन पा रहे हैं. 

इस पर डॉ शेट्टी ने कहा कि हमें सरकार का इंतजार नहीं करना चाहिए. यह स्ट‍िग्मा ब्रेक होने चाहिए. मसलन आईआईटीज में मेंटल हेल्थ कैंप लगे तो वहां  डायरेक्टर को मेंटल हेल्थ कैंप में जाकर स्क्रीनिंग कराना चाहिए. कार्पोरेट में मेंटल हेल्थ पॉलिसी नहीं है. इस पर भी सवाल उठना चाहिए. 

काउंसलर्स के रोल पर डॉ शेट्टी ने कहा कि उनको रूम में बैठने के बजाय लोगों के बीच जाकर टॉपिक पर बात करना चाहिए. लव और एंगर पर बात करनी चाहिए. जब वो बात करेंगे तभी तो स्टूडेंट आकर बताएगा. जब तक आप सिंप्टम नहीं बताएंगे, कैसे छात्र सामने आएंगे.  उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए; हमें अपने बच्चों के बिजी शेड्यूल से समय चुराकर उनसे बात करनी चाहिए. उनके हावभाव से उन्हें समझना होगा तभी ये समस्या कम हो सकती है.

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