
कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. कोरोना काल के दौरान बंद पड़े मकानों और दुकानों में नमी की एक बड़ी समस्या बनी रही तो बंद इमारत में ऑक्सीजन की भी कमी हो गई. लेकिन, इसका इलाज बीएचयू के महिला महाविद्यालय के भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर और उनकी शोध टीम ने खोज निकाला है.
टीम ने स्टार्च और नमक को घोलकर एक जेली तैयार किया है जो कि हवा में मौजूद नमी को सोखता है. भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत टेक्नोलॉजी इनफार्मेशन फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल ने बीएचयू को यह पेटेंट 22 जुलाई को दिया है, जबकि इसका आवेदन वर्ष 2012 में किया गया था.
शोध का दावा-
इस शोध का दावा है कि अब बंद मकानों में नमी की समस्या से न दीवार खराब होंगे और न ही दीवारों का डिस्टेम्पर ही बर्बाद होगा. इस एक जेली की मदद से मकान के दीवारों पर नमी हावी नहीं हो पाएगी और न ही एयरकंडीशनर पर निर्भरता ही बढ़ेगी. बीएचयू के महिला महाविद्यालय की भौतिक विज्ञानी प्रो. नीलम श्रीवास्तव ने अपने लैब में स्टार्च (बेस्वाद और गंध रहित सफेद पाउडर एक पॉली सैकेराइडकार्बोहाइड्रेट) और नमक (सोडियम आयोडाइड, परक्लोरेट, सोडियम क्लोराइड और मैग्निशियम क्लोराइड आदि) को घोलकर एक द्रव या जेली (इलेक्ट्रोलाइट) तैयार किया है. यह जेली हवा में मौजूद मॉइश्चर यानी नमी को सोखता है.
इसमें जब इलेक्ट्रोड और ऊर्जा प्रवाह के लिए 0.2 वोल्ट का एक उपकरण लगाया गया पाया गया कि यह जेली नम हवा या अवशोषित पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बदलकर वापस हवा में लौटा दे रही है. यदि इस जेली को कमरे की दीवारों पर पेंट की तरह लगा दें तो इससे कमरे में आक्सीजन की पर्याप्तता के साथ ही उमस का भी अंत हो जाएगा. हालांकि लैब स्तर पर हुए इस शोध को लोगों के बीच उपयोग में आने में एक से दो दशक तक लग सकता है. इसके इलेक्ट्रोड को तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों से बात चल रही है. यदि उपकरण बन जाता तो उमस से निजात में एयरकंडीशन से काफी किफायती तकनीक बाजार में आ सकती है.
इस बारे में प्रो. नीलम श्रीवास्तव ने बताया कि इस तकनीक का प्रयोग उन्होंने एक डेसीकेटर (शीशे का पात्र) में वाष्प को जुटाया और फिर इसके एक दिन बाद देखा कि उस पात्र की नमी खत्म हो गई. उन्होंने आगे बताया कि जेली जब तैयार होती है तो बेहद चिपचिपी रहती है, लेकिन हवा के संपर्क में सूखकर पपड़ी जैसी जम जाती है. फिर नमी या उमस बढ़ने पर यह दोबारा से गीली भी हो जाती है. उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रोड के जरिए ही लंबे समय तक इसे दीवारों या किसी अन्य सतह पर बनाए रखा जा सकता है.
उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत टेक्नोलॉजी इनफार्मेशन फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल ने बीएचयू को यह पेटेंट 22 जुलाई को दिया है, जबकि वर्ष 2012 में इसका आवेदन दिया था. उनकी शोध टीम में अभी तक चार रिसर्च स्कालरों डॉ. मानिंद्र कुमार, डाॅ . माधवी यादव, डॉ दीप्ति और डॉ. तुहिना तिवारी हैं.