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झारखंड: सैलरी कम, छोटे-मोटे काम करने को मजबूर पैरा टीचर, छेड़ेंगे आंदोलन

सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों की वैकेंसी को भरने के लिए 2002 और 2003 में पैरा शिक्षकों की बहाली की गई थी. मैदान में जमा कोई शिक्षक 20 वर्षों से सेवा दे रहा है तो कोई 15 साल से ज़्यादा से लेकिन सभी की सैलरी 12 से 15 हज़ार के बीच है.

आंदोलनरत पैरा टीचर्स आंदोलनरत पैरा टीचर्स
सत्यजीत कुमार
  • रांची,
  • 15 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 6:59 PM IST

झारखंड में पैरा शिक्षकों को प्राइमरी एजुकेशन की रीढ़ माना जाता है. बावजूद इसके दशकों से सुदूरवर्ती और दुरूह ग्रामीण इलाकों में शिक्षण का कार्य कर रहे शिक्षकों को मामूली मानदेय से ही अपना घर चलाना पड़ रहा है. लिहाजा वे अब आंदोलन पर हैं. 15 से 19 मार्च तक पैरा शिक्षक अपनी नौकरी के नियमतीकरण और वेतनमान दिए जाने की मांग को लेकर विधानसभा के सामने धरना और प्रदर्शन करेंगे.

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बता दें कि‍ सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों की वैकेंसी को भरने के लिए 2002 और 2003 में पैरा शिक्षकों की बहाली की गई थी. यहां मैदान में जमा कोई शिक्षक 20 वर्षो से सेवा दे रहे हैं तो कोई 15 साल से ज़्यादा से लेकिन सभी की सैलरी 12 से 15 हज़ार के बीच है. 

राज्य में 38000 से 40,000 प्राइमरी स्कूल हैं जहां ये शिक्षक अपनी सेवा देते हैं. इनमे से 13 हज़ार TET यानी teachers eligiblity test पास हैं और 48 हज़ार टीचर ट्रेनिंग कर चुके हैं यानी प्रशिक्षित हैं. इनके पढ़ाने का अनुभव भी 17 से 18 साल है. यानी यहां 40 से कोई नीचे नही और 50 की दहलीज़ को पार कर चुके कई शिक्षक हैं जो सिर्फ इसी उम्मीद में हैं कि पड़ोसी राज्य बिहार, UP और छत्तीसगढ़ की तरह ही कभी तो सरकार उनके लिए भी सोचेगी और उनका नियमतीकरण हो जाएगा.

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इस प्रर्दशन में दुमका से रांची पहुंचे मोहन मंडल का कहना है कि कभी वो मां-बाप पर आश्रित थे. यहां उन्‍हें कम पैसे भी मिलते थे तो मां बाप ज़रूरतें पूरी कर देते थे. अब तो मां-बाप उन पर आश्रित हैं और बच्चों का पालन पोषण भी उनकी जिम्‍मेदारी है. 20 साल की उम्र में वो नौकरी में आए थे और अब 40 के हो गए हैं. वो कहते हैं क‍ि बताइए इस उम्र में अब क्या करें कहां जाएं.

आंदोलनरत पैरा श‍िक्षक

वहीं गिरिडीह से आये नारायण महतो और दूसरों की भी कहानी मिलती-जुलती है. नारायण अपनी जरूरतों के लिए सब्जियां उपजाकर बोगोदर बाज़ार में बेचते हैं. सुनीता साहू लोहरदग्गा से आई हैं, उनका कहना है कि कभी अपनी तो कभी अपने परिजनों की खुशियों को मारना पड़ता है. कभी किसी के त्योहारों पर कपड़ों की मांग पूरी नहीं होती तो कभी दूसरी जरूरत.

पैरा शिक्षकों की नियमावली के लिए कई बार कमेटी बनी. तत्‍कालीन सरकार के दौरान उस कमेटी ने कुछ राज्यों का दौरा कर रिपोर्ट भी सौंपी थी लेकिन कोई फायदा नही हुआ. साल 2019 में जब बीजेपी की सरकार थी तब कमेटी तत्‍कालीन शिक्षा मंत्री ने बनाई थी जो 13 राज्यों का दौरा कर रिपोर्ट सौंप चुकी है लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में है. सरकार के बदलने के बाद तमाम पड़ोसी राज्यों जैसे बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़ और एमपी में पैरा शिक्षकों को वेतनमान दिया गया है.

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यहां झारखंड में इस वर्ष नियोजन का वर्ष घोषित किया गया है हालांकि शिक्षकों की बहाली 2016 से नहीं हुई है. सरकार ने सदन में बेरोजगारी भत्ता 5 हज़ार देने का ऐलान किया है और 75% आरक्षण प्राइवेट नौकरी में स्थानीय को ऐसे में पारा शिक्षकों पे सरकार का क्या रुख तय करती है, ये देखना होगा.

 

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