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चिंताजनक: कोटा में मंदिर की दीवारों पर बच्चों ने उकेरा दर्द, स्टूडेंट हेल्पलाइन में 45 छात्र बोले, जीने का मन नहीं करता

कोटा कोचिंग फैक्ट्री जहां हर साल लाखों युवा डॉक्टर इंजीनियर बनने के अपने सपने पूरे करने की आस में आते हैं. मगर बीते कुछ दिनों से यह शहर खुदकुशी के बढ़ते मामलों का दंश झेल रहा है. यहां मासूम सपने निराशा में अपना दम तोड़ रहे. इन परेशान बच्चों ने मंदिर की दीवारो से लेकर हेल्पलाइन तक अपना दर्द कहने की कोश‍िश की है, जरूरत है तो किसी के समझने की...

राधाकृष्ण मंदिर कोटा की दीवारों पर लिखी हैं मन्नतें (Photo:जयकिशन शर्मा) राधाकृष्ण मंदिर कोटा की दीवारों पर लिखी हैं मन्नतें (Photo:जयकिशन शर्मा)
जयकिशन शर्मा
  • कोटा ,
  • 31 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 2:31 PM IST

27 अगस्त के दिन कुछ ही घंटों में दो छात्रों ने जीवन से छुटकारा पाने के लिए सुसाइड का रास्ता अपना लिया. इन तमाम घटनाओं को देखते हुए कोटा के छात्र इन दिनों में गंभीर दबाव में हैं. उनका ये दबाव सिर्फ मीडिया की खबरों से ही नहीं बल्क‍ि यहां स्थित राधा कृष्ण मंदिर में मनोकामना की दीवार पर भी दिखता है. यही नहीं, स्टूडेंट हेल्पलाइन नंबर पर आई छात्रों की कॉल भी मानसिक कठिनाइयों की ओर इशारा करती हैं. हेल्पलाइन में 45 छात्रों ने कहा है कि उनका अब और जीने का मन नहीं करता. 

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कोचिंग शहर कोटा के तलवंडी इलाके में स्थित राधा कृष्ण मंदिर में हर शाम लगभग 5 बजे सैकड़ों की संख्या में युवा NEET अभ्यर्थी आते हैं. मंदिर के हॉल से बिल्कुल सटी हुई सफेद दीवारें अर्थात मनोकामना की दीवार छात्रों पर पड़ रहे उस अकल्पनीय दबाव की गवाह है जिसे किशोर अपने मन से लिख रहे हैं. एक छात्र द्वारा दीवार पर लिखी गई इन पंक्तियों को पढ़ें, "मेरे माता-पिता की रक्षा करना प्रभु और मेरी एक छोटी सी मनोकामना को पूरा करना और मेरी वजह से कोई दुखी ना रहे प्रभु" एक इच्छा है कि मेरी वजह से किसी को कष्ट न हो. 

वहीं एक में लिखा है कि, "प्लीज गॉड मुझसे ये हो नहीं सकता, मेरे लिए इसे पॉसिबल कर दीजिए." ये पंक्तियां किसी के भी दिल को झकझोर देने वाली हैं और कंपटीशन के कारण छात्रों पर पड़ने वाले मानसिक दबाव का स्पष्ट प्रतिबिंब हैं. ये दीवारें महत्वाकांक्षी बच्चों की तनावपूर्ण आकांक्षाओं और स्थितियों को बयान करती पंक्त‍ियों से पटी पड़ी हैं. 

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बच्चे ले रहे पेरेंट्स का प्रेशर 
बता दें कि इस साल कोटा में हर दसवें दिन आत्महत्या हुई. जहां दो दर्जन आत्महत्याएं सरकारी आंकड़ा है. वहीं, कई छात्रों का दावा है कि यह संख्या बहुत अधिक है, कम से कम आधा दर्जन से अधिक छात्रों ने अपने गृह राज्य जाकर ये कदम उठाया. जब इंडिया टुडे ने NEET की तैयारी कर रही बिहार की एक लड़की से पूछा कि छात्र इतने दबाव में क्यों हैं, तो उसने कहा कि सर, यह प्रेशर है, माता-पिता का प्रेशर. जब हम कोटा आते हैं तो हमें एहसास होता है कि प्रेशर होता क्या है. कम से कम हम दिन में 12 से 14 घंटे पढ़ते हैं. इसलिए हम हर चीज से कट जाते हैं. फिर भी जब हमारा स्कोर खराब होता है, तो हमें अपने माता-पिता के बारे में बुरा लगता है. वे गरीब हैं और हमारा भविष्य बनाने के लिए बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं. 

कुछ श‍िक्षक करते हैं ऐसी बातें
एक अन्य छात्र जो कैमरे पर नहीं आया, उसने कहा कि लगभग हर छात्र सुबह 7 बजे के आसपास उठता है, फिर हम दोपहर 12 बजे तक पढ़ाई करते हैं जिसमें क्लासेज, एक्स्ट्रा क्लासेज, रिवीजन, पेपर हल करना और डिस्कसंश शामिल हैं. कभी-कभी हमें ठीक से खाना खाने का भी समय नहीं मिलता है. इसके बाद ये वीकली टेस्ट आते हैं और इनमें जब कोई कम अंक प्राप्त करता है तो यह वास्तव में उसके कॉन्फीडेंस को हिला देता है. कुछ शिक्षक ऐसी बातें करते हैं कि दुनिया आईआईटी, एम्स या सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बिना अधूरी है. वो कहते हैं कि एनआईटी को निचली रैंक के संस्थान माना जाता है. 

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उन्होंने कहा कि हाल ही में आत्महत्या करने वाले छात्रों में से एक ने वीकली टेस्ट में कम अंक प्राप्त किए हैं इसलिए उसने आत्महत्या कर ली.उन्होंने आगे बताया कि इसी प्रेशर के कारण बहुत से छात्र सिगरेट के भी आदी हो गए हैं और उनमें से कुछ गांजा भी पीते हैं.

स्टूडेंट हेल्पलाइन में बयां कर रहे दर्द
अपराध शाखा (कोटा) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ठाकुर चंद्रशील, जिनके पास चार महीने पहले पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) उमेश मिश्रा द्वारा गठित छात्र प्रकोष्ठ का अतिरिक्त प्रभार भी है, उन्होंने कहा कि हमें हमारे हेल्पलाइन नंबर पर बहुत सारे कॉल आते हैं. जब से सेल का गठन हुआ है, हमें लगभग 150 संकट संबंधी कॉल प्राप्त हो रही हैं, जहां छात्रों ने हमारे साथ अपना प्रेशर साझा किया है. 45 कॉलों में, छात्रों ने कहा कि वे अब जीना नहीं चाहते हैं. अन्य शिकायतें हमें क्षेत्र के दौरे के माध्यम से मिलीं. ऑपरेशन टीम को हमने स्थिति स्पष्ट कर दी है. जब हमें ड‍िप्रेशन की जानकारी मिलती है तो मेरी टीमें मुझे सूचित करती हैं. 

उन्होंने कहा कि एक काउंसलर के साथ एक टीम को मौके पर भेजा गया है. साथ ही कोचिंग की भी जानकारी दी गयी है. आगे के सत्र आयोजित किये जाते हैं. उनके माता-पिता को सूचित किया जाता है और अगर हमें लगता है कि छात्रों को उनके घर भेजने की आवश्यकता है, तो हम ऐसा करते हैं ताकि उनका पुनर्वास किया जा सके. 

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जो दिन में 12 घंटे पढ़ सकता है वह हमेशा सफल होगा
एक कोचिंग संस्थान के मालिक नितिन विजय सर, जिन पर टीवीएफ की प्रसिद्ध वेब श्रृंखला कोटा फैक्ट्री बनाई गई थी, ने कहा कि एक छात्र जो दिन में 12 घंटे पढ़ सकता है वह हमेशा सफल होगा. यह छात्रों और माता-पिता की आकांक्षा है जो आत्महत्या की ओर ले जा रही है. इसके अलावा, लॉकडाउन के बाद एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो गई है. जब एक छात्र कड़ी मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं होता है तो वह खुद पर बहुत प्रेशर ले लेता है. 

रविवार को दो आत्महत्याओं के बाद जिला प्रशासन भी सकते में है. आने वाले दो महीनों तक कोई भी साप्ताहिक टेस्ट आयोजित नहीं किया जाएगा. कोचिंग में हर एक दिन मज़ेदार दिन होगा. साथ ही संस्थानों से बच्चों पर काम का बोझ कम करने को भी कहा गया है. कोटा में बढ़ती आत्महत्याओं के कारणों की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा तीन नैदानिक मनोवैज्ञानिकों की एक टीम भी गठित की गई है. 

हॉस्टल में लगे मोटिवेशनल पोस्टर 
हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने कहा कि हमने जिला प्रशासन के साथ बैठक की और हमने महत्वपूर्ण कदम उठाने का फैसला किया. कोटा में लगभग 3,000 हॉस्टल हैं और हजारों की संख्या में पीजी हैं. सभी कमरों में मोट‍िवेशनल पोस्टर लगाना अनिवार्य किया गया है. उन्होंने कहा कि डिनर और लंच के दौरान अनिवार्य उपस्थिति ली जाएगी. साथ ही यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब कोई बच्चा भोजन से परहेज करना शुरू कर देता है तो इसका मतलब है कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. हम छात्रों को मेंटली फ्रेश रखने के लिए वाटर पार्क, सिनेमा और अन्य गतिविधियों में ले जा रहे हैं. 

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टाइमलाइन: कैसे-कब क्या बदला 
2021 में कोटा के कोचिंग संस्थानों में 1 लाख से अधिक छात्रों ने दाखिला लिया था. 
साल 2023 में यह संख्या बढ़कर दो लाख से अधिक हो गई. 
2021 से 2023 तक, कोटा में स्टूडेंट रजिस्ट्रेशन में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 
दूसरी ओर, पिछले कुछ वर्षों में छात्र आत्महत्याओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है. 
कोटा पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में 17 छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई थी. 
तब से यह आंकड़ा 2016 में 16, 2017 में सात, 2018 में 20 और 2019 में आठ है. 
साल 2020 और 2021 के महामारी वर्षों में आत्महत्या में गिरावट देखी गई
इस दौरान लॉकडाउन में छात्रों ने शहर छोड़ दिया था. 
साल 2022 में यह आंकड़ा फिर 15 पर पहुंच गया. 
इस साल अगस्त तक 25 छात्रों ने आत्महत्या की है. 

चौंकाने वाले हैं ये आंकड़े 
पिछले दिसंबर में पेश किए गए डेटा असेंबली के अनुसार, 87 प्रतिशत आत्महत्याएं पुरुष छात्रों द्वारा और 13 प्रतिशत महिला छात्रों द्वारा की गईं. छात्र ज्यादातर इन पांच राज्यों--बिहार, यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से हैं. पिछले साल, 2.74 मिलियन भारतीय इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में बैठे, और 64,610 स्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा की. 2.6 मिलियन से अधिक असफल रहे. 

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