
एग्जाम प्रेशर... कहने में ये शब्द जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है इससे पार पाना. ये एक ऐसा दबाव है जो कई बार छात्रों के मस्तिष्क की नसों को जकड़-सा लेता है. ऐसे ही प्रेशर को बयां करता है, कोटा में फांसी का फंदा लगाकर जान देने वाली छात्रा निहारिका का सुसाइड लेटर. ये लेटर न सिर्फ प्रेशर को कहता है बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ये भी स्पष्ट करता है कि बच्चा अपने चुने गए विषय के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नहीं था.
क्या है सुसाइड लेटर में?
Mummy, papa I can't do JEE, I suicide, I am a loser, I am worst daughter, sorry mummy papa, yahi last option hai..........अब इस लेटर के एक एक शब्द पर गौर कीजिए तो पता चल जाएगा कि कैसे छात्रा के मन में लूजर यानी हार का भय छिपा था. उसने लिखा कि आई कैंट डू जेईई....इसके पीछे कहीं वो यह तो नहीं कहना चाहती थी कि मैं जेईई नहीं कर सकती, लेकिन मुझे अगर दूसरा रास्ता दिखाया जाता तो मैं उसमें कुछ कर सकती थी. लेकिन उसने मौत को ही अपना लास्ट ऑप्शन बना लिया.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि आज भी कहीं ना कहीं बच्चों पर यह प्रेशर डाला जाता है कि वह इंजीनियर या डॉक्टर बनें. आज जब दुनिया पूरी तरह बदल रही है. करियर के विकल्प भी बढ़ गए हैं, लेकिन फिर भी समाज तय ढर्रे से अलग सोच ही नहीं पा रहा. यहां मैं वही उदाहरण देना चाहूंगा कि अगर एआर रहमान पर इंजीनियर बनने का दबाव होता या लता मंगेशकर को सिर्फ डॉक्टर बनने का विकल्प मिलता तो क्या हमारे देश को इतनी महान विभूतियां मिल पातीं.
क्या है पूरा मामला?
राजस्थान के कोटा में आईआईटी जेईई की तैयारी कर रही छात्रा निहारिका ने खुदकुशी कर ली है. यह इस हफ्ते कोटा में छात्र आत्महत्या का दूसरा मामला है. बीते साल भी 29 स्टूडेंट्स ने सुसाइड का रास्ता अपनाया था. आज जिस छात्रा ने अपनी जान दी है उसका 2 दिनों बाद ही JEE का एग्जाम था लेकिन वह परीक्षा के प्रेशर में इतना ज्यादा आ गई कि उसने पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली.
सुसाइड नोट में लिखी मन की बात!
उसके सुसाइड नोट को देखकर लगता है कि वो जीते जी अपने मन की बात कहने का हौंसला नहीं जुटा पाई और मरते वक्त सुसाइड नोट में उसने लिख दिया मैं यह नहीं कर पाऊंगी. मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि माता-पिता का बच्चों के साथ संवाद होना बहुत जरूरी है. इससे वो अपने मन की बात कह सकते हैं. इसमें शिक्षकों का भी बड़ा रोल है, उन्हें भी छात्रों के साथ संवाद कायम करके यह जानना चाहिए कि आखिर उनका इंट्रेस्ट इस पढ़ाई में है भी या नहीं.
बच्चों को फ्री छोड़ें
JEE की तैयारी कर रहे एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम अपने माता-पिता से कभी ये सवाल नहीं करते कि आपने अपने जीवन में क्या किया, कैसे किया, हम उनसे अनकंडीशनल प्रेम करते हैं. लेकिन कई बार माता-पिता बच्चों से अपनी सभी अपेक्षाएं लगा लेते हैं. वो उन पर इनवेस्ट करते हैं तो ये सोचकर कि उन्हें इसका भविष्य में बड़ा फायदा मिलेगा. हर कदम पर बच्चों से वो सबसे 'बेस्ट' प्रदर्शन की उम्मीद रखते हैं. उन्हें भी यह समझना चाहिए कि हमें अनकंडीशनल प्रेम की जरूरत है, जरूरी नहीं कि हर बच्चा इंटेलिजेंट या सुपर कॉन्फीडेंट हो.