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झारखंड़ में 2020 से ही मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है और ज़रूरतमंद बच्चों को इसका लाभ नही मिल रहा है. मध्याह्न भोजन से बच्चों को न्यूट्रीशन तो मिलता ही था, उन्हें पढ़ाई में भी कंसन्ट्रेट करने में सहूलियत होती थी क्योंकि बेहद कमज़ोर आर्थिक वर्ग से आने वाले बच्चों को भर पेट एक शाम के भोजन की चिंता नही करनी होती थी. मिड डे मील को घर-घर पहुंचाने की कोशिश भी की गई लेकिन वो भी फ्लॉप साबित हुआ. अनाज और कैश की व्यवस्था भी सरकार ने की थी लेकिन वो भी जून से बंद है और बच्चे परेशान हैं.
राज्य में लगभग 40,000 सरकारी स्कूल हैं जहां बच्चों को मिड डे मील दी जाती थी. कोरोना के वजह से स्कूल बीते मार्च 2020 से ही बंद है और स्कूलों के रसोई भी वीरान पड़े हैं. सरकार ने कैश और राशन बच्चों को घर पे उपलब्ध करवाने की कोशिश की. ये प्रावधान कुछ दिनों तक चला लेकिन फिर बंद हो गया. राज्य के कई गरीब बच्चों का शाम का खाना स्कूल से चल जाता था और फ्री खाना मिलता था तो कहीं मेहनत मजदूरी भी बच्चों को नही करनी पड़ती थी. मिड डे मील बंद होने से बच्चे अब निराश हैं.
शिक्षक भी मानते हैं कि मिड डे मील ज़रूरी है. इस मुद्दे पर राज्य शिक्षा मंत्री का कहना है कि अनाज और कैश बांटने में परेशानी होती है, लिहाज़ा अब चावल के अलावा, दाल, मसाला, तेल वगैरह को पैक करके विद्यर्थियों के घर तक पहुंचा दिया जाएगा. इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. हालांकि, दो महीनों से मिड डे मील बंद होने और उसके चलते जो बच्चे को परेशानी हो रही है उसका ज़िम्मेदार कौन है, इस सवाल पर मंत्री ने चुप्पी साध ली है.
इस साल भी राज्य सरकार ने बच्चों के घरों तक मध्यान भोजन पहुंचाने के लिए योजना तैयार की है. अप्रैल महीने से ही इस योजना की शुरुआत करने की बात कही गई थी लेकिन अब तक यह योजना पूरी तरह धरातल पर नहीं उतारी गई है. जमीनी स्तर पर पात्र छात्र अभी भी इस योजना से वंचित हैं. 2020 के मार्च महीने से तमाम स्कूल कॉलेज और शिक्षण संस्थान बंद हैं. पठन-पाठन पूरी तरह बाधित है. ऑनलाइन पठन-पाठन के भरोसे स्कूल संचालित हो रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में यह व्यवस्था पूरी तरह फेल साबित हुई है.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कहर ने शिक्षण व्यवस्था को और ज्यादा प्रभावित कर दिया है. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील पर आश्रित है. पिछले साल योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई थी. 55 फीसदी विद्यार्थियों तक मिड डे मील में दी जाने वाली खाद्यान्न और कुकिंग कॉस्ट की राशी उनके अकाउंट में भेजी गई थी. बाकी विद्यार्थियों तक अनाज पहुंचा कि नहीं यह अभी भी सवाल बना हुआ है.
शिक्षा विभाग की ओर से उच्च स्तरीय निगरानी कमेटी बनाई गई थी लेकिन अब तक जांच रिपोर्ट और पिछले साल का ऑडिट MDM सरकार को नहीं मिला है. इस वर्ष भी राज्य सरकार के शिक्षा परियोजना परिषद और मध्यान भोजन प्राधिकरण ने यह निर्णय लिया है कि स्कूल बाधित होने की वजह से विद्यार्थियों के घर-घर तक मध्यान भोजन पहुंचाए जाएंगे. कुकिंग कॉस्ट की राशि उनके अकाउंट में भेजी जाएगी. अप्रैल 2021 से इस योजना को शुरुआत करने की बात कही गई है लेकिन इस योजना के तहत लाभुकों को लाभ नहीं मिल रहा है.
शत प्रतिशत बच्चों तक मिड डे मील का भोजन मुहैया नहीं हो रहा है. कारण बताया जा रहा है कि जिन शिक्षकों और प्रखंड पदाधिकारियों के भरोसे घर घर तक अनाज पहुंचाए जाने हैं, उन्हें भी कोविड ड्यूटी में लगाया गया था. हालांकि ऐसे शिक्षकों को ड्यूटी से अब हटा लिया गया है लेकिन इस योजना की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है. खानापूर्ति के नाम पर कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में यह योजना संचालित की जा रही है. इस योजना में किसी भी तरीके की निगरानी सही तरीके से नहीं है. आने वाले समय में यह एक बड़ा घोटाला साबित होगा.
पिछले साल कितने बच्चों तक मिड डे मील पहुंचा है ये अभी भी सवालों के घेरे में है. इसके बावजूद एक बार फिर राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस योजना न बनाते हुए घर-घर तक मिड डे मील पहुंचाने की बात कही जा रही है. अब तक यह योजना धरातल पर नहीं उतारी गई है. वहीं, दूसरी ओर लाभुक विद्यार्थियों ने भी कहा है कि अब तक उन्हें मिड डे मील का भोजन नहीं मिला है.
स्कूलों को 4 फेज में पिछले वर्ष राशि भेजी गई थी. पहले पेज में 17 मार्च से 14 अप्रैल में सर्वाधिक गड़बड़ियों की शिकायत मिली थी. पहले से पांचवी तक के बच्चों को 2 किलो चावल और 113 .7 रुपये कुकिंग कॉस्ट के देने थे, जबकि छठी से आठवीं तक के बच्चों को 3 किलो चावल और 158.20 रुपये देने थे. पहली से पांचवी तक के बच्चों के लिए 4 .48 कॉस्ट देना था. जबकि छठी से आठवीं तक के बच्चों को 6. 71 रुपये देने थे. बच्चों के अकाउंट में न तो कुकिंग कास्ट के रुपए पहुंचे और न ही नियमित रूप से उन्हें मिड डे मील में दिया जाने वाला अनाज मुहैया कराया गया. इस साल भी मध्यान भोजन वितरण को लेकर ऐसी स्थिति सामने आ रही है.