
इन दिनों दिल्ली में स्वीडन से सटे उत्तरी यूरोपियन देश फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम की चर्चा जोरों पर है. बर्फ से घिरा ये छोटा सा देश फिनलैंड अपने बेहतर एजुकेशन सिस्टम के लिए पूरी दुनिया में पहचान बना चुका है. आइए जानते हैं कि क्यों यहां के एजुकेशन सिस्टम की चर्चा हो रही है, इसमें ऐसी क्या खास बात है कि दिल्ली के टीचर्स को यहां ट्रेनिंग पर भेजा जा रहा है.
सात साल की उम्र से शुरू होती है पढ़ाई
फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम में छात्रों के लिए कई तरह की सहूलियतें दी जाती हैं जो कि उनके लिए पढ़ाई को इंट्रेस्टिंग बनाती हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा विभाग की शिक्षिका प्रो हनीत गांधी कहती हैं कि करीब 10 साल पहले फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम पर पूरे दुनिया में चर्चा की जाने लगी. उनके सिस्टम में बच्चों को कॉन्सेप्ट समझाने पर पर बहुत काम किया है. वहां हर विषय को बच्चों को समझाने के लिए सबसे पहले उसका कॉन्सेप्ट समझाया जाता है कि उस विषय को समझने की जरूरत क्यों है. उन्हें सिर्फ सवाल-जवाब के कॉन्सेप्ट में नहीं समझाया जाता है.
प्रो गांधी कहती हैं कि अगर आप उदाहरण के तौर पर समझें तो मान लीजिए उन्हें इतिहास पढ़ाना है तो घटनाओं को समय-काल-परिस्थिति के हिसाब से रटने के बजाय वहां उसे क्रोनोलॉजी के आधार पर समझाया जाता है. बच्चे उसमें रुचि लेने लगते हैं, इस तरह वो खुद ही उस विषय को गहनता से समझ जाते हैं. पढ़ाने का जो यह अलग ढंग है इसी कारण वहां बच्चों को स्कूल में बोरियत नहीं होती. वहां बच्चे स्कूल होने वाली एक्टिविटीज जैसे पढ़ाई के अलावा खेलकूद आदि भी पसंद करते हैं. बच्चों की पर्सनैलिटी का विकास स्कूल के अंदर होती है.
वहां न बच्चों को होमवर्क की इतनी चिंता रहती है न इस बात की उन्हें फेल कर दिया जाएगा. वहां नो डिटेंशन यानी कि उन्हें पढ़ाई में सीखने के लिहाज से आंका नहीं जाता. उन्हें कॉन्सेप्ट के हिसाब से आंका जाता है. बच्चों का असेसमेंट टीचर्स करते हैं, इससे वहां एग्जाम लेने का तरीका छात्र केंद्रित होता है. वहां पढ़ाई के लिए सात साल की उम्र से शुरुआत होती है, और 16 साल की उम्र तक कोई एग्जाम बच्चों को फेस नहीं करना होता. शायद यही वजह है कि वहां ट्यूशन कल्चर भी नहीं है, न ही बच्चों में फेल होने का कोई फियर, या कोई स्ट्रेस या एंजाइटी. स्ट्रेस की बात करें तो वहां साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग भी पाठ्यक्रम का अहम हिस्सा है. बच्चों की समय-समय पर साइकलॉजिकल स्क्रीनिंग की जाती है.
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