
कोरोना के चलते करीब डेढ़ साल से न पढ़ाई ढंग से हो पा रही है, न ही खुलकर नेतागीरी ही हो पा रही है. कैंपस में चुनावी चकल्लस के वो दौर मानो बीते समय की बात हो गई हो. बीते साल यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव भी नहीं हुए. इस साल भी उम्मीद कम ही है, लेकिन छात्र नेताओं के हौसले कोविड काल में भी जस के तस दिखे. चाहे दिल्ली यूनिवर्सिटी हो या छात्र राजनीति का गढ़ कहा जाने वाला जेएनयू कैंपस...
छात्रनेताओं ने कोरोना के कोविड-19 के बुरे दौर में भी आवाज उठाना नहीं छोड़ा. जब जैसा समय रहा, उन्होंने उस अंदाज में आंदोलन जारी रखे. इस दौरान देशभर के कैंपस चाहे वो डीयू जेएनयू हो या बीएचयू, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, बॉम्बे यूनिवर्सिटी या इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, हर कैंपस में छात्र नेता मदद के लिए आगे दिखे.
डीयू में प्रोटेस्ट भी, हेल्प भी
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव पूरे देश में मशहूर हैं. यहां की छात्र राजनीति में आने वाले चेहरे लंबे समय तक फील्ड वर्क के बाद पहचान बनाते हैं, फिर इसके बाद यहां चुनाव के दौरान भी जोर शोर से प्रचार होता है. लेकिन यहां कोविड 19 के प्रकोप के चलते 2020 के बाद से चुनाव नहीं हुए हैं.
साल 2019 के दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (DUSU) के प्रेसिडेंट अक्षित दहिया ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि वक्त के साथ छात्र राजनीति में भी डायवर्जन हुआ है. हम लोग ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही मोड से स्टूडेंट्स से जुड़ने की कोशिश में रहते हैं. अब स्टूडेंट यूनियन दो तरह से काम कर रही है, पहला है एकेडमिक विषय और दूसरा सेवा कार्य. इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन एक्टिविज्म के जरिये कर रहे हैं. वो कहते हैं कि सेवा कार्य की बात करें तो डूसू ने स्टूडेंट्स की मदद के लिए ऑनलाइन हेल्पलाइन जारी कर दी है. इसके अलावा देश भर में रह रहे डीयू के स्टूडेंट्स को जैसी भी प्रॉब्लम आती है, अगर वो ट्विटर या अन्य सोशल मीडिया या फोन से समस्या बताते हैं तो हम उसके समााधान में लग जाते हैं.
वहीं ऑफलाइन एक्टिविजम की बात करें तो एबीवीपी ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान फुटपाथ में रह रहे लोगों के लिए फ्री भोजन या कोरोना टेस्टिंग की व्यवस्था की थी. एबीवीपी ने इस दौरान मिशन आरोग्य चलाया जिसके जरिये देशभर में वालंटियर उपलब्ध कराए. इसके अलावा कॉलेज की समस्याओं पर एक डिमांड चार्टर बनाया. इसके लिए हमने छात्रों से गूगल फॉर्म भरवाए कि उन्हें क्या समस्या है. जैसे किसी का रिजल्ट नहीं आया या पेपर छूट गया या क्लासेज का सेंट्रलाइज नोट चाहिए तो संबंधित अधिकारी या टीचर से बात करके उनकी समस्या सुलझाई.
NSUI के राष्ट्रीय सचिव व मीडिया प्रवक्ता लोकेश चुग ने बताया कि अब चुनाव जीतने से ज्यादा हमारे छात्र संगठन सेवा भाव से ज्यादा पॉलिटिक्स कर रहे हैं. संगठन का मानना है कि सिर्फ कैंपस के चुनाव लड़ना ही पॉलिटिक्स नहीं है. हमें जमीनी स्तर पर स्टूडेंट्स की सेवा करनी है लोगों की जोकि हम लगातार डेढ़ साल से कर रहे हैं. फिर चाहे वो ऑफलाइन एग्जाम न लेकर प्रमोट करने की मांग हो या हॉस्टल फीस या अन्य मदों पर फीस जैसी समस्या, हमने सबके खिलाफ आवाज उठाना जारी रखा. एनएसयूआई भले ही कम पदों पर हो, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि हम उस हिसाब से काम करें. एनएसयूआई ने ही पहली बार मास प्रमोशन की मांग उठाई थी. इसके अलावा अंबेडकर यूनिवसिटी में प्रमोट करने की मांग हो या एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में फीस माफ कराने को लेकर हमने प्रोटेस्ट किया हो, हमारा उद्देश्य छात्र हित रहा. हमने कोरोना काल में लिए जा रहे हॉस्टल फंड, बिल्डिंग फंड के खिलाफ लड़ाईयां लड़ीं क्योंकि ये हमारा कर्त्तव्य था.
जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष व आइसा के सक्रिय कार्यकर्ता एन साईं बालाजी कहते हैं कि कोरोना काल में सरकार ने छात्रों के खिलाफ नाइंसाफी की, लेकिन बोलने के कमतर प्लेटफॉर्म होने के बावजूद हम आवाज उठाते रहे. कैंपस वक्त पर नहीं खोले गए. आईसा लगातार मांग करता रहा कि स्टूडेंट को वैक्सीनेशन की प्राथमिकता दी जाए. अब जब कोई छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए तो ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं था जहां सामूहिक तौर पर ये आवाज उठाई जा सकती.
बालाजी ने कहा कि मैं तो मानता हूं कि लोकतंत्र को खत्म करने के लिए कोरोना के बहाने सरकार छात्र राजनीति को एकदम खत्म कर रही है. अब छात्र के जो राजनीतिक और डेमोक्रेटिक सवाल है, वो कहां से उठाए जाएंगे. छात्र संघ लगातार छात्रों की मदद के लिए लगा रहा. हमारे ऑफलाइन और ऑनलाइन मोड पर प्रोटेस्ट भी जारी रहे. कभी रिलैक्शेसन होने पर कोविड प्रोटोकॉल को मानते हुए प्रोटेस्ट हुए हैं. छात्रों की मदद के लिए पूरे प्रयास किए गए हैं. अब लेकिन छात्र संघ चुनाव नहीं होने से छात्रसंघ बॉडी उस तरह फंक्शन नहीं कर रही है, इसलिए छात्रों को काफी दिक्कत हुई है. छात्रों के बीच जो लोकतंत्र है, उसे खत्म कर दिया गया है.