
कोरोना महामारी ने करीब डेढ़ साल पहले भारत में दस्तक दी थी. तब से स्कूल-कॉलेज बंद हैं, बच्चे घरों में रहकर ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मजबूर हैं. लेकिन इस दौर में सुविधाओं को लेकर दो वर्ग के बच्चों के बीच काफी गैप आ गया है. कई बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई भी मुहैया नहीं हो पा रही.
अगर आंकड़ों की बात करें तो बिहार में ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने लोकसभा में जवाब दिया कि देश में 2.69 करोड़ छात्रों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है. उन्होंने कहा कि इनमें से अकेले बिहार में 1.43 करोड़ छात्रों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है. हालांकि बिहार सरकार का कहना है कि हमसे इस मामले में केंद्र ने कोई आंकड़ा नही मांगा गया था. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने कहा कि पता नही ये आंकड़ा कहां से आया है.
उन्होंने कहा कि बिहार में लगभग 2 करोड़ बच्चे स्कूलों में है. ऐसे में ये 1.43 करोड़ बच्चों के पास डिवाइस का नहीं होना समझ से परे है. जेडीयू प्रवक्ता अजय आलोक ने माना कि दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार सरकार ने बीते 15 सालों में छात्रों के लिए मोबाइल या लैपटॉप बांटने की कोई योजना नहीं चलाई. सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर केंद्र नहीं हैं जबकि हर साल मैट्रिक में 20 लाख और इंटरमीडिएट में 20 लाख छात्र पास होते हैं. लेकिन कोरोना काल में पहली बार ऑनलाइन शिक्षा की जरूरत महसूस हुई और बहुत सारे बच्चे इससे वंचित रह गए. इससे बच्चों का नुकसान हुआ है, शिक्षा विभाग इस नुकसान की भरपाई करने के लिए योजना बना रहा है.
उधर, आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस न होने के मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि कोरोना काल में बिहार के बच्चों के साथ ऑनलाइन पढ़ाई में बेईमानी हुई है. तिवारी ने कहा कि बिहार के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है.