
Padma Award 2023: साल 2023 के पद्म पुरस्कारों की लिस्ट जारी कर दी गई है. यूपी के उमा शंकर पांडे का नाम भी सोशल वर्क कैटेगरी के तहत पद्म सम्मान के लिए चुना गया है. 'खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़'... पिछले 30 साल से यूपी के बुंदेलखंड में इस मंत्र से गांव-गांव में लोग परिचित हो चुके हैं. उमा शंकर पांडे के इस अभिनव प्रयोग को जल संचयन के लिए देश विदेश में मान्यता मिल चुकी है. 'पानी के पहरेदार' नाम से क्षेत्र में पहचाने जाने वाले उमा शंकर पांडे सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह दिव्यांग हैं लेकिन उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी अपने सामाजिक कार्यों में आड़े नहीं आने दिया.
'बुंदेलखंड की प्यास' को उन्होंने बचपन से ही महसूस किया. सबसे पहले अपने गांव जखनी में उन्होंने लोगों को जल संचय के लिए जागरूक करना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने वर्षा के जल को खेत पर संचय करने की परम्परागत तकनीक को लोगों को समझाना शुरू किया. 'खेत कर मेड़ और मेड़ पर पेड़' का नारा देकर उन्होंने आस-पास के सभी गांवों में बदलाव की बयार ला दी. वर्षों तक काम करते रहने पर भी उन्होंने कोई सरकारी सहायता नहीं ली. उनका जल मॉडल यूपी के बुंदेलखंड के 470 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में लागू किया गया.
धीरे-धीरे उमा शंकर पांडे का जल संचयन का मॉडल लोगों के बीच अपनी जगह बनाता गया. उनको 'जल योद्धा' के तौर पर न सिर्फ़ पहचान मिली बल्कि प्रधानमंत्री ने उनके जल मॉडल को लेकर देश भर के प्रधानों को पत्र भी लिखा. 60 वर्ष के उमा शंकर पांडे ने बुंदेलखंड के क्षेत्र में भू जल संरक्षण के लिए गांव के लोगों को जोड़कर जनसहभागिता का उदाहरण पेश किया. उनके योगदान को देखते हुए जहां उनको कई पुरस्कार सम्मान मिल चुके हैं, वहीं नीति आयोग ने उन्हें जल संरक्षण समिति का सदस्य भी नामित किया है.