
मां-बाप ने पढाया लिखाया काबिल बनाया. 5 साल पहले जूनियर इंजीनियर बनने का सपना देखा और अपने कमरे में पढ़ाई के लिए किताबे सजाई थीं. लेकिन पिछले 5 साल लंबे इंतजार और संघर्ष के बाद अभ्यर्थी अब खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हैं. यह कहानी है अपने खेत में छोटे से कमरे में बने रखे वाटर टैंकर को गर्मी से बचने के लिए कूलर में तब्दील करने वाले अभ्यर्थी आशीष वर्मा की.
ऐसा ही संघर्ष इनके साथ तमाम वो अभियार्थी भी कर रहे हैं. इनमे से कुछ ऐसे हैं जो सालों से लखनऊ के पिकअप भवन स्थित अधीनस्थ आयोग अपनी चप्पलें घिस रहे हैं, कुछ जिन्होंने लखनऊ के इको गार्डन लगभग 200 दिन धरना दिया तो कुछ ऐसे जो 5 साल के लंबे अंतराल के चलते सब्जी बेचने से लेकर किसानी और मजदूरी करने को विवश हैं. ये वही अभियार्थी हैं जिनके हाथों में किताबे होनी चाहिए लेकिन आज फावड़े के नाम पर लाचारी दस्तक दे रही है. कभी विज्ञापन के चार साल बाद भी परीक्षा की तारीख न आने का तो कभी सालों बाद परीक्षा हो जाने के बार नतीजा आने का संघर्ष.
क्या है मामला?
दरअसल, साल 2018 में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (UPSSSC) ने जूनियर इंजीनियर पद पर 1477 रिक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला था, जिसके एग्जाम की तारीख आते-आते 4 साल बीत गए. आखिरकार चार साल बाद 16 अप्रैल को यह परीक्षा आयोजित कराई जाती है लेकिन परीक्षा के एक साल बाद भी परिणाम घोषित नहीं किए जाते. इसके चलते अभियार्थी के सामने बेरोजगार होने के साथ साथ ओवरएज होने का भी खतरा है.
ऐसा नहीं है कि केवल JE की परीक्षा और नतीजे देरी से हैं बल्कि अन्य परीक्षाओं के भी यही हाल हैं जिनमे ग्राम पंचायत अधिकारी, वन दरोगा भर्ती, से लेकर राजस्व लेखपाल भर्ती जैसे परीक्षा भी हैं.
यूं तो आशीष वर्मा के छोटे से कमरे में किताबें सजी है लेकिन आशीष का दिन सुबह जानवरों को चारा देने उसके बाद खेती करने से ही शुरू होता है. फिर दोपहर में पढ़ाई और फिर शाम को एक बार फिर खेतों का रुख. इसी दिनचर्या के बीच जब चिलचिलाती गर्मी पड़ती है तब आशीष बिन पंखे के कमरे में वाटर टैंकर को एक कूलर में तब्दील कर लेते हैं जिसमें जाली भी है, पानी भी है और मोटर भी. इतना ही नहीं आर्टिफिशियल हल का भी निर्माण करते हैं जिससे रोपाई करने में कम समय लगे. इन दोनों को शायद किसी प्रदर्शनी में रखा जाए तो कोई भी इन्हें इंजीनियर बना दे लेकिन यह व्यवस्था के मारे मजबूरी का सितम झेल रहे हैं.
विकास कुमार की भी यही कहानी
यूपी के हाथरस जिले में एक पढ़ा लिखा युवक पांच साल बाद भी प्रतियोगी परीक्षा का रिजल्ट न आने से बेहद आहत है. यह नोजवान मजबूरी में मजदूरी कर रहा है.जी हां खेत मे मजदूरी कर रहा विकास कुमार नाम का नोजवान सादाबाद तहसील के गांव का रहने वाला है. उसकी मानें तो पढ़े-लिखे बेरोजगार इस नोजवान ने अक्टूबर 2018 में जेई के लिए फार्म भरा था. खास बात तो यह है कि यह परीक्षा तीन साल बाद 16 अप्रैल 2021 को हुई और पांच साल बाद भी इसका परिणाम आने का इंतजार है. इसी बजह से विकास परेशान है. उसका कहना है कि इस स्थिति में उसे घर चलाने, मां की दवा और बहन की शादी के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है. उसका कहना है कि इस मामले में लखनऊ में धरना दिया गया फिर भी रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है. अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव बार-बार उन्हें आश्वासन ही देते रहते हैं.
क्या कहता है आयोग?
उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) के अध्यक्ष प्रवीर कुमार ने इस पूरे मसले को लेकर आज तक को बताया कि कानपुर में एक एग्जाम सेंटर में कुछ गड़बड़ी हुई थी जिसकी वजह से 16 बच्चों को गलत पेपर बंट गया था. इसके बाद परीक्षा निरस्त कर दी गई थी. सेंटर के खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी. इस वजह से अभ्यर्थियों का रिजल्ट जारी होने में देरी हो रही है. क्योंकि इन 16 बच्चों की कॉपियां दोबारा चेक हुई और फिर इन्हें पुराने एग्जाम में शामिल हुए बच्चों के साथ जोड़ा गया और अब एक साथ सब का रिजल्ट आएगा. हमारा टारगेट है जुलाई आखिर तक शॉर्टलिस्ट कर दें और नतीजे अगस्त में घोषित कर दें.
विज्ञापन छपने के बाद परीक्षा होने में 4 साल की हुई देरी पर अधिकारी ने कहा कि क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस (economic weaker section) लागू कर दिया गया था जिसमें यह कहा गया था कि आप भले ही परीक्षा का विज्ञापन छाप गया हो लेकिन अगर एग्जाम नहीं हुआ है तो उन सभी परीक्षाओं में ईडब्ल्यूएस को सम्मिलित किया जाएगा जिसकी वजह से परीक्षा टली.