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इस राज्य में लगातार सुसाइड क्यों कर रहे हैं छात्र? मनोचिकित्सक से जानें वजह

इंडिया टुडे ने जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. अभिजीत सोनी से बात की, जिन्होंने ऐसे मामलों के संभावित कारणों पर प्रकाश डाला. डॉ. सोनी ने कहा कि इस तरह की घटनाओं के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. वर्तमान में तो यह इसके पीछे एकेडम‍िक प्रेशर की वजह ज्यादा लगती है. स्टूडेंट्स में एकेडमिक प्रेशर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. 

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
तेजश्री पुरंदरे
  • नई दिल्ली ,
  • 29 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

बीते दो हफ्तों में तमिलनाडु में पांच स्टूडेंट्स ने सुसाइड कर लिया. ये पूरे राज्य के लिए ही नहीं बल्क‍ि अभ‍िभावक समुदाय को हिला देने वाली घटनाएं हैं. ऐसा क्या प्रेशर है जिसे बच्चे झेल नहीं पा रहे और मौत को गले लगाना उन्हें ज्यादा आसान लग रहा है. तमिलनाडु के लोग इन घटनाओं से सदमे में हैं. 

ये दिल को झकझोरने वाले मामले हैं. इनकी शुरुआत बीती 13 जुलाई से हुई. इस दिन कल्लाकुरिची में 12वीं कक्षा के एक छात्र की मौत ने काफी लोगों को परेशान कर दिया. इन घटनाओं के पीछे राज्य के शिक्षाविद कई कारकों की ओर इशारा करते हैं जो छात्र को इस तरह के स्ट्रीम स्टेप उठाने के लिए प्रेरित करते हैं. लेकिन कहीं न कहीं इन छात्रों पर मनोवैज्ञानिक दबाव को भी नहीं नकारा जा सकता है. उन्हें समाज और अपने आसपास के लोगों से बहुत दबाव झेलना पड़ता है. 

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इंडिया टुडे ने जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. अभिजीत सोनी से बात की, जिन्होंने ऐसे मामलों के संभावित कारणों पर प्रकाश डाला. डॉ. सोनी ने कहा कि इस तरह की घटनाओं के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. वर्तमान में तो यह इसके पीछे एकेडम‍िक प्रेशर की वजह ज्यादा लगती है. स्टूडेंट्स में एकेडमिक प्रेशर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. 

क्या कोविड फोबिया भी है कारण 

दो साल पहले की बात करें तो महामारी के कारण पढ़ाई के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया था. अब कोविड के बाद चीजें बदल गई हैं. कोविड से पहले उनके पास बातचीत का समय था, वे एक्सप्रेसिव थे लेकिन कोविड के दौरान छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से दोनों तरह से एकदम जैसे जेल में बंद कर दिया गया. वे भी कोविड फोबिया से गुजरे होंगे. इस दौरान मोबाइल फोन और इंटरनेट का बढ़ता उपयोग एक निश्चित सीमा तक अच्छा रहा है लेकिन कहीं कहीं इसका उपयोग लिमिट से ज्यादा हो गया जो कि हानिकारक था.  जो छात्र ऑनलाइन पढ़ाई करते थे वे अब कक्षाओं में जा रहे हैं और दबाव का भी सामना कर रहे हैं. उनका स्क्रीन टाइम घटा है, लेकिन अचानक एक्सपोजर और प्रेशर भी सामने है. 

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एग्जाम प्रेशर बहुत ज्यादा 

इसके पीछे डॉ सोनी परीक्षा का दबाव भी एक मुख्य कारण मानते हैं. उन्होंने कहा कि इस सप्ताह कक्षा 10वीं और 12वीं के परिणाम घोषित किए गए थे. जिस तरह का अकादमिक दबाव छात्रों ने झेला है, वो बहुत ज्यादा था. परिणाम घोषित होते ही छात्रों के बीच काफी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है. लेकिन चिंता की बात यह है कि यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का दबाव नहीं है. प्रतिस्पर्धा अच्छी है लेकिन यह स्वस्थ होनी चाहिए और हम एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा की ओर जा रहे हैं. हम बच्चों के लिए जिस तरह का प्रतिस्पर्धी माहौल बना रहे हैं, वह अच्छा नहीं है. 

इसके अलावा कुछ वजहें जैसे कि बच्चा शराबी होना या किसी भी तरह की नशीली दवाओं का सेवन करना भी उन्हें ऐसे मामलों की ओर ले जाता है. डॉ सोनी ने कहा कि छात्र क्या चाहते हैं और उन्हें क्या मिला है, इसके बीच एक बहुत बारीक लाइन है. जब छात्रों को वह नहीं मिल पाता है जो वे चाहते हैं जिसके कारण वे चिंतित और चिड़चिड़े हो जाते हैं. 

बच्चों को खुलकर बोलने दें

हम उन्हें उस तरह की देखभाल प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई पहलू है, हमें बच्चों को खुलकर बात करने के लिए एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करने की जरूरत है. छात्र इसके बारे में बात करने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें अपमानित किया जा सकता है या उनका मज़ाक उड़ाया जा सकता है. वहीं स्कूल को भी छात्रों के लिए काउंसलर नियुक्त करना चाहिए. उनकी बात सुनी जानी जरूरी है. समस्या यह है कि हमें उम्मीदें हैं, लेकिन हम उनकी सुनते नहीं हैं. उनकी बात सुनने से आधी समस्या का समाधान हो जाता है. 

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