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Teacher's Day: कैसा लगता है पब्ल‍िक स्कूल में हिंदी टीचर बनकर, गर्व या अफसोस? टीचर्स से जानें

Teacher's Day 2021: अंग्रेजी मीडियम पर जोर देने वाले पब्ल‍िक स्कूलों के हिंदी टीचर्स के सामने बड़ी चुनौतियां होती हैं. आइए कुछ हिंदी श‍िक्षकों से जानते हैं कि पब्ल‍िक स्कूलों में हिंदी टीचर होने का क्या मतलब होता है.

प्रतीकात्मक फोटो (Getty) प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
मानसी मिश्रा/रविराज वर्मा
  • नई द‍िल्ली ,
  • 05 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

5 September Teacher's Day 2021: आज शिक्षक दिवस है. वो खास दिन जब श‍िक्षक को खास सम्मान दिया जाता है. आज जब वक्त बहुत बदल चुका है, लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी श‍िक्षा देने पर जोर दे रहे हैं, ऐसे में अंग्रेजी मीडियम पर जोर देने वाले पब्ल‍िक स्कूलों के हिंदी टीचर्स के सामने बड़ी चुनौतियां होती हैं. आइए कुछ हिंदी श‍िक्षकों से जानते हैं कि पब्ल‍िक स्कूलों में हिंदी टीचर होने का क्या मतलब होता है. उन्हें हिंदी पढ़कर टीचर बनने पर गर्व महसूस होता है या अफसोस.

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मदर्स मैरी स्कूल दिल्ली में हिंदी टीचर राकेश सिंह कहते हैं कि हिंदी टीचर होने पर अफसोस होता है, यह तो नहीं कह सकते. लेकिन जिस तरह पिछले कुछ सालों में समाज बदला है, लोगों के मन में हिंदी को लेकर अलग तरह के ही दुराग्रह हैं. यह बड़ा अजीब लगता है जब कोई इस बात को गर्व से कहता है कि उनका बच्चा इंग्ल‍िश में कंफर्टेबल है, हिंदी कम आती है. राकेश सिंह कहते हैं मैंने तो हमेशा पढ़ाते हुए महसूस किया है कि बच्चों को हिंदी क्लास में अच्छा लगता है. वहां उन्हें हिंदी बोलने का मौका मिलता है जोकि उन्हें आसान लगता है. 

श‍िक्षक राकेश सिंह कहते हैं कि हिंदी में बीएड करने के दौरान मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का एक कथन सुना था, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में हिंदी के बारे में बात बहुत होती है, लेकिन हिंदी में नहीं होती. आज यथार्थ में ऐसा लगता है कि लोग अपने बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना दिखाते हैं, उनके लिए हिंदी न आना असम्मान की बात नहीं होती है. लेकिन, अगर देखा जाए तो राजनीति से लेकर बहुत से क्षेत्रों में हिंदी का बोलबाला है. जितने भी जनप्रिय नेता हुए हैं वो हिंदी में निपुण रहे हैं.

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अपने श‍िक्षक होने के अनुभव के बारे में कहते हैं कि वैसे तो पीटीएम वगैरह में सभी श‍िक्षकों के समान ही ही इज्जत मिलती है. लेकिन जिस तरह अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है, उसे देखकर कई बार मन में यह जरूर आया कि हिंदी टॉपर होने की जगह अगर विज्ञान-गण‍ित में टॉपर होते तो शायद अलग बात होती.

नोएडा के एक स्‍कूल की हिंदी की टीचर ऊषा जोशी ने हमें बताया कि हिंदी का टीचर होना उनके लिए गर्व की बात है. उन्‍होंने कहा कि हाल के समय में मैथ्‍स और साइंस जैसे सब्‍जेक्‍ट्स की पढ़ाई अंग्रेजी में होने से बच्‍चों में हिंदी से कुछ दूरी बन गई है. हालांकि, इन सब्‍जेक्‍ट्स की पढ़ाई अंग्रेजी में होनी जरूरी है ताकि भविष्‍य में बच्‍चे खुद को पिछड़ा हुआ न समझें मगर यह टीचर्स की जिम्‍मेदारी है कि पढ़ाते समय वे उन्‍हें हिंदी और अंग्रेजी दोनो में ही जानकारी याद कराएं.

उन्‍होंने आगे कहा कि हिंदी का महत्‍व अब देश में बढ़ रहा है. गैरशिक्षित से भी संवाद करने के लिए हिंदी जरूरी है. वह अपने स्‍टूडेंट्स को हिंदी पढ़ाते समय यह हमेशा जोर देती हैं कि यह उनके रोजगार की भाषा भी बन सकती है. विज्ञापन लिखने या पत्रकारिता में करियर बनाने की इच्‍छा रखने वाले बच्‍चों को अपनी हिंदी पर अधिक ध्‍यान देना चाहिए.

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एल्कॉन पब्ल‍िक स्कूल की टीचर लक्ष्मी शर्मा बताती हैं कि वो 25 साल से हिंदी टीचर हैं जिस पर उन्हें बहुत गर्व है. उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों में हिंदी के प्रत‍ि सीबीएसई बोर्ड का भी रवैया बदला है. अब बोर्ड ने अपना परंपरागत ठेठ रवैया छोड़कर हिंदी को मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया है. अब बच्चों के सामने तृतीय भाषा के रूप में इसे ऑप्ट करने का विकल्प है. श‍िक्षकों के जरिये इंग्ल‍िश स्कूलों में भी हिंदी को बराबर ही महत्ता दी जाती है. हिंदी में भी कई तरह की प्रत‍ियोग‍िताएं होती हैं जो कि देखा जाए तो ये इंग्ल‍िश से ज्यादा होती हैं. 

उन्होंने कहा कि अब हिंदी अध्यापक अपने क्षेत्र में बहुत कुछ कर रहे हैं. इसलिए अब अभ‍िभावकों के रवैये में भी थोड़ा बदलाव देखा गया है. हिंदी की उपयोगिता इस पर भी है कि हिंदी श‍िक्षक किस तरह इसे नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करते हैं. मैं नौवीं दसवीं के बच्चों को पढ़ाती हूं. मैंने हमेशा उन्हें ये महसूस कराया कि प्रेमचंद जितने अपने समय में प्रासंगिक थे, उतना आज भी हैं. मैं बरसों बरस क्लास टीचर रही, हाउस मास्टर के तौर पर भी काम किया है. वर्तमान में भी दसवीं की क्लास टीचर हूं. लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि मैं द्व‍िभाषी हूं. पब्ल‍िक स्कूल में हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी जरूरी है. 

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मैं अपने बच्चे को समझाती हूं कि जब हमें अपने मन के भावों को दूसरे तक पहुंचाना होता है तो वहां हम अपनी भाषा में स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं. मन से बोलना शुरू करेंगे तो आप जिस भूमि और भाषा के हैं तो उससे आप इन्कार नहीं कर पाएंगे. हम उस भाषा में काम कर रहे हैं जिसको हमारी सख्त जरूरत है. मन की बात हिंदी में ही हो सकती है.

 

 

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