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UPSC Interview कैसा होता है और कैसे करें तैयारी? एक्सपर्ट से जानें सबकुछ

Tanu Jain: आर्म्ड फोर्सेज हेडक्वार्टर में असिस्टेंट डायरेक्टर तनु जैन को आपने रील्स और मॉक इंटरव्यू से काफी प्रसिद्ध‍ि मिल चुकी है. सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के बीच वो जाना-पहचाना चेहरा बन चुकी हैं. यूपीएससी इंटरव्यू की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के लिए उनके अनुभव और टिप्स काफी काम के हैं.

IAS Tanu Jain (Lallantop) IAS Tanu Jain (Lallantop)
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 12:55 PM IST

आर्म्ड फोर्सेज हेडक्वार्टर में असिस्टेंट डायरेक्टर तनु जैन को आपने रील्स और मॉक इंटरव्यू से काफी प्रसिद्ध‍ि मिल चुकी है. सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के बीच वो जाना-पहचाना चेहरा बन चुकी हैं. यूपीएससी इंटरव्यू की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के लिए उनके अनुभव और टिप्स काफी काम के हैं. 

कैसे होता है इंटरव्यू 

2015 बैच की अध‍िकारी तनु जैन आर्म्ड फोर्सेज हेडक्वार्टर में असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर हैं. द्रष्ट‍ि IAS कोचिंग संस्थान में मॉक इंटरव्यू पैनल का पहचाना चेहरा बन चुकीं तनु जैन को आपने रील्स में भी देखा होगा. वो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के बीच अलग पहचान रखती हैं. यूपीएससी इंटरव्यू की तैयारी कर रहे अभ्यर्थ‍ियों के लिए उनके अनुभव और टिप्स काफी काम के हैं. लल्लनटॉप के शो बैठकी में तनु जैन ने अपनी जर्नी शेयर करते हुए बताया कि कैसे आईएएस इंटरव्यू एकदम अलग होते हैं. उन्होंने चार बार इंटरव्यू फेस किया और तीन बार उसमें क्या कमी रह गई. 

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मेरा पहला इंटरव्यू, कैसे एक हॉल में बैठे थे अभ्यर्थी 

तनु बताती हैं कि उन्होंने 2014 में पहला इंटरव्यू दिया था. वो डीके दीवान सर का बोर्ड था. धौलपुर हाउस के गोलाकार रूम में अभ्यर्थी अपनी बारी का इं‍तजार कर रहे थे. वो बताती हैं कि एक पैनल के अंदर छह अभ्यर्थ‍ियों को एक टेबल के आसपास बिठा दिया जाता है. फिर एक एक करके कैंडीडेट को बुलाया जाता है. 

उसके बाद अभ्यर्थी मेन रूम में जाता है तो अस‍िस्टेंट खोलता है. यहां अभ्यर्थी अंदर आने की इजाजत मांगता है, इजाजत मिलने के बाद वो अंदर प्रवेश करके अपनी सीट में बैठता है. वहां पांच लोग बैठे होते हैं पैनल में. ये सभी अलग-अलग क्षेत्र से होते हैं. अभ्यर्थी को उनके बारे में पता नहीं होता. अभ्यर्थी को सिर्फ पैनल के चेयरमैन के बारे में पता होता है. यहां भीतर पैनल में साइकोलॉजिस्ट, ब्यूरोक्रेट या यूपीएससी मेंबर कोई भी हो सकता है. 

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तनु कहती हैं कि मेरा फिलॉसफी सब्जेक्ट था,साथ में जीएस तो होता ही है. इसके बाद सिलसिला शुरू होता है. एक मेंबर छह से सात सवाल पूछता है. इंटरव्यू चेयरमैन शुरू करते हैं, फिर सभी पैनलिस्ट सवाल करते हैं फिर अंत में चेयरमैन सवाल पूछता है.

इन हालातों में पूछे जाते हैं अटपटे सवाल
 
पैनल द्वारा अटपटे सवाल वैसे तो पूछे नहीं जाते. लेकिन यदि सभी सवालों के जवाब मिल गए हैं तो एक प्रजेंस ऑफ माइंड चेक करने के लिए हो सकता है कि कुछ पूछ लिया जाए.  जैसे मान लीजिए पूछ लिया कि अंडा पहले आया या मुर्गी. वैसे तो यहां सुलझे हुए और गहरे सवाल पूछे जाते हैं, ताकि जज किया जा सके कि अभ्यर्थी इतनी प्रत‍िष्ठ‍ित सेवाओं के लायक है या नहीं. 

पैनल से कैसे डिसएग्री कर सकते हैं 

तनु कहती हैं कि पैनल से डिसएग्री करने का एक तरीका होता है. उनसे आप रीजन या तर्क के आधार पर डिसएग्री कर रहे हैं तो पैनलिस्ट इसे पॉजिट‍िवली लेते हैं. लेकिन किसी प्वाइंट पर बहस करना डिसएडवांटेज की तरफ ले जाता है. 

मैंने पहले इंटरव्यू से बहुत कुछ सीखा 

तनु कहती हैं कि मेरा यूपीएससी के इंटरव्यू को लेकर तर्जुबा धीरे धीरे बना. मैं जब सेलेक्ट नहीं हुई तो विश्लेषण किया कि पहले इंटरव्यू में क्या गल‍त‍ियां की. मुझे समझ आया कि मैं शुरुआत से ही डिबेटिंग में भाग लेती थी. मुझे लगता था कि आउट स्पोकेन होना बहुत मददगार रहेगा. लेकिन पहले इंटरव्यू के बाद समझ आया कि इंटरव्यू कनर्वसेशन से ज्यादा फॉर्मल कनवर्सेशन है. इसके नियम मुझे बाद में समझ आए. 

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आपको कैसे बोलना है, किस प्रायोरिटी में कितना बोलना है, ये मैटर करता है. 

तनु कहती हैं कि आप एक उदाहरण से स‍मझिए. जैसे मैं पूछूं कि रामायण में राम कैसे योद्धा थे. इसका एक जवाब है कि अयोध्या के राजा दशरथ थे, उनके चार पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र राम थे, उन्होंने बचपन से ही ट्रेनिंग की. सीता माता उनकी पत्नी थी, जिनका रावण ने अपहरण कर लिया. उन्होंने रावण को युद्ध में हरा दिया. 

फिर दूसरे रूप में इसे ऐसे कहा जाए कि राम दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे, उन्होंने बचपन से रण कौशल सीखा. फिर कई जगह प्रमाण दिए. उन्होंने ब्राह्मणों को राक्षसों से बचाया, सुग्रीव की म‍ित्रता के लिए बालि को हराया. अंत में रावण की सेना को हरा दिया. 

देखने में दोनों एक जैसे जवाब हैं, लेकिन अंतर ये है कि दूसरे में आपने उनकी योद्धा होने के बारे में बताया. इसलिए मैं अभ्यर्थ‍ियों को कहती हूं कि इं‍टरव्यू सिर्फ बोलना नहीं है इसमें आपको कैसे बोलना है, किस प्रायोरिटी में कितना बोलना है. ये मैटर करता है. अगर कम्यूनिकेशन क्ल‍ियर नहीं है तो मिस अंडरस्टुड रहते हैं. 

मैंने भी यही गलती कि जो दिमाग में आया पट पट बोल दिया, मेरा भी आर्ट‍िकुलेशन ठीक नहीं था. बाद में समझ आया कि बोलना और क्वालिटी बोलना दोनों में अंतर है. 

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दोबारा इंटरव्यू ने भी सिखाया 

तनु का साल 2015 में दोबारा इंटरव्यू हुआ. वो बताती हैं कि यह डेविड सर के पैनल में था. तब तक मुझे समझ आ गया था कि इंप्रूवमेंट की जरूरत है. लेकिन, मुझे कमियां समझ नहीं आ रही थी. दूसरे इंटरव्यू का मुझे एक सवाल याद है ज‍िसमें मुझसे पूछा गया कि नॉर्थ ईस्ट के अंदर कौन कौन सी स्टेट हैं, उनकी कैपिटल बता दीजिए. अचानक से एक नाम स्ल‍िप कर दिया. बहुत सी चीजें बैक ऑफ माइंड चल रही थीं. बस, वो नाम स्ल‍िप हो गया. ऐसा लगा कि गले में कहीं जवाब फंसा था. मुझे अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर याद नहीं आया. हुआ यूं कि डेव‍िड सर अरुणाचल प्रदेश के ही थे, और बस वहीं का नाम नहीं याद रहा था. 

फिर उसी पैनल ने लिया इंटरव्यू 

अब तीसरी बार में फिर डेविड सर का पैनल था. मैं पूरी तैयारी करके गई. यहां पैनल की एक खास बात होती है कि वो आपके जवाब पर सकारात्मक या नकारात्मक किसी तरह का रिएक्शन नहीं देते. वो लोग उस भूमिका को बहुत गरिमामयी रखते हैं. अब हम लोग हमेशा से पढ़ाई के दौरान अपने सामने वाले से आशा करते हैं कि कुछ अच्छा कहे या कुछ बुरा कहें तो रिऐक्शन मिले. लेकिन जब आप ऐसे पैनल से मिलें जो कोई इमोशन न दें तो ये एंजाइटी और डिप्रेशन बढ़ता है. लेकिन तीसरे इंटरव्यू में मेरे नंबर अच्छे आए. थर्ड अच्छा गया, लेकिन रिफाइनमेंट इतना अच्छा नहीं था. 

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बिना गाइडेंस के लंबा सफर करना पड़ता है. 

इंटरव्यू के मामले में मैंने महसूस किया है कि बिना गाइडेंस के लंबा सफर करना पड़ता है. मुझसे हमेशा ही बहुत स्पेसिफिक सवाल पूछे गए. मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई कर रखी थी तो उससे रिलेटेड सवाल भी पूछे जाते थे, जैसे कि अब सिविल सर्विस करने क्यों आए हैं, जब डॉक्टरी कर ली है. एक पैनलिस्ट ने तो ये भी पूछा कि अगर मेरा टीथ खराब है, रूट कैनल होना है तो कैसे होगा प्रोसेस बताइए. मैंने हर सवाल का स्पेसिफिक जवाब दिया. 

कौन हैं तनु जैन 

तनु ने बताया कि मैं दिल्ली 6 की रहने वाली हूं. मिड‍िल क्लास जैन फैमिली में मेरा जन्म हुआ. मैं बचपन से बहुत ज्यादा पढ़ाकू नहीं थी, खेल कूद में ज्यादा मन लगता था. पढ़ाई में बुरीभी नहीं थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि 99 पर्सेंट लाना है, सोचकर तैयारी करूं. खैर मैंने स्कूली पढ़ाई पूरी करके सुभारती मेडिकल कॉलेज से बीडीएस किया. अपनी इंटर्नशिप के दौरान पता चला कि सिव‍िल सर्विस जैसा कोई एग्जाम होता है. उन्हें बहुत इज्जत की नजर से देखा जाता है. मेरा पर्सनल एक एक्सपीरियंस भी याद आया. मेरे कोई रिश्तेदार हैं जो सिविल सर्वेंट हैं. एक बार स्कॉलरश‍िप फॉर्म पर कुछ राय लेनी थी तो पापा ने कहा कि उनसे पूछ लेते हैं. मुझे तब लगा कि सिविल सर्वेंट को कितना समझदार माना जाता है. 

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मुझे तब कोई गाइड करने वाला नहीं था. मैं अपनी मां के साथ गई कुछ किताबें ले आईं, दोस्त मिल गए और तैयारी शुरू हो गईं. इस परीक्षा को लेकर मैं बस यही टिप्स दे सकती हूं कि आप तैयारी के दौरान खुद को बहुत फोकस रखें. 


डिस्ट्रैक्शन से कैसे दूर रहें अभ्यर्थी 

तनु कहती हैं कि यह सबके लिए बड़ा सवाल है. आज बहुत सारी इनफार्मेशन का फ्लो है, ये सभी हमारा वक्त मांग रही हैं. मोबाइल चलाते कब दो घंटे हो जाते हैं पता नहीं चलता. यह सबके साथ हो रहा है. अभ्यर्थ‍ियों को इससे दूर रहना जरूरी है, क्योंकि उन्हें अभी करियर सेट करना है. बच्चों की भाषा में बोला जाए तो  यही वो वक्त है जब आपको तय करना है कि आप लंबोर्गिनी चलाओगे, इनोवा या ऑल्टो चलाओगे, करियर में क्या करना है. आप देश चलाओगे, कंपनी चलाओगे, या जॉब करोगे या जॉब ढूंढ़ रहे होगे, ये सब इसी एज में तय होता है. टेक्नोलॉजी को मारने के लिए टेक्नोलॉजी चाह‍िए. आप ऐसी ऐप यूज करें जो स्क्रीन टाइम कम कर देती है. फोन के लिए बच्चे समय तय कर लें, कॉलिंग के लिए पुराना फोन यूज कर लें. 

 

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