
सरकार की ओर से बड़ा कदम उठाते हुए नो डिटेंशन पॉलिसी हटा दी गई है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत साल 2010 में ये पॉलिसी लागू की गई थी. इस पॉलिसी के आने के बाद इसे तारीफों के साथ ही आलोचना का भी शिकार होना पड़ा था. तब यह बात कही गई थी कि अगर आठवीं तक के बच्चों को बिना शर्त प्रमोट किया जाता है तो इससे उच्च शिक्षा का स्तर गिरेगा.
बता दें कि इस पॉलिसी में मूल्यांकन के ट्रेडिशनल तरीके के बजाय Continuous and Comprehensive Evaluation (CCE) की बात की गई थी. लेकिन यह पॉलिसी शायद बहुत सफल नहीं मानी जा रही थी. उदाहरण के लिए बीते साल दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिए नो डिटेंशन पॉलिसी हटाने के बाद परीक्षा परिणामों में भारी गिरावट देखी गई थी. शैक्षणिक सत्र 2023-24 रिजल्ट बताते हैं कि सिर्फ आठवीं में ही 46622 विद्यार्थी फेल हो गए थे.आइए जानते हैं कि इस पॉलिसी के हटने के बाद स्कूली शिक्षा पर क्या असर देखने को मिलेगा.
यह सराहनीय कदम
सीबीएसई की गवर्निंग बॉडी की सदस्य व शिक्षाविद डॉ ज्योति अरोड़ा कहती हैं कि जब यह नीति दिल्ली सरकार द्वारा बनाई गई थी, तो मैं इस समिति का हिस्सा थी. मेरे नजरिये से सरकार का यह संशोधन अत्यंत सराहनीय है. डिटेंशन को बच्चे की अक्षमता के प्रतिबिंब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. इसके बजाय, इसे रचनात्मक मूल्यांकन और फीडबैक के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, जो बच्चे को उनकी अद्वितीय क्षमताओं के अनुरूप अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए सशक्त बनाता है.
अब पढ़ाई का स्तर पहले से सुधरेगा
वहीं दिल्ली पेरेंट्स एसोशिएशन की प्रेसिडेंट अपराजिता गौतम भी इस फैसले की तारीफ करते हुए कहती हैं कि धरातल पर देखा जाए तो यह अच्छा फैसला आया है.वो कहती हैं कि सरकारी स्कूलों की बात करें तो वहां के पेरेंट्स आठवीं की पढ़ाई तक सीरियस नहीं थे.अब पढ़ाई का स्तर वाकई सुधरेगा. इससे बच्चे लर्निंग और इवैल्यूएशन को लेकर सीरियस होंगे. पहले उन्हें लगता था कि बच्चा पास तो हो ही जाएगा. अपराजिता लेकिन आगे चिंता जताते हुए कहती हैं कि इस पॉलिसी के खत्म होने के बाद स्कूलों को अपनी जिम्मेदारी समझना जरूरी है. कहीं ऐसा न हो कि अगर बच्चा सही परफॉर्म नहीं कर रहा तो वो उठाकर फेल कर दें. इसके बजाय स्कूलों को पहली क्लास से बच्चों की प्रगति पर ध्यान देना चाहिए ताकि बच्चा पांचवीं या आठवीं में फेल होने की स्थिति में ही न पहुंचे.
बच्चों या अभिभावकों पर बढ़ सकती है जिम्मेदारी
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल मयूर विहार दिल्ली के पूर्व प्रिंसिपल और शिक्षाविद डॉ अशोक पांडेय कहते हैं कि आरटीई 2009 में नो डिटेंशन पॉलिसी का प्राविधान था. फिर साल 2016-17 तक ये बात आने लगी कि बच्चे पढ़ नहीं रहे. वहीं कुछ स्टेट ने कह दिया कि वो इसे हटाना चाहते हैं, लेकिन सभी खुलकर सामने आने को तैयार नहीं थे. फाइनली अब सरकार ने जब इस पॉलिसी को खत्म कर दिया है तो इसका असर ये न माना जाए कि केवल नो डिटेंशन पॉलिसी हटाने से शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा.
ऐसा कोई एविडेंस नहीं है कि इस पॉलिसी के रहते हुए शिक्षा का स्तर गिर गया है. केवल पॉलिसी को हटाने या लाने से शिक्षा का उत्थान या पतन हो जाएगा, यह पूर्ण रूपेण सत्य नहीं है. मुझे लगता है कि जब यह पॉलिसी थी तो पहले आठवें तक फेल होने पर दोबारा एग्जाम देकर या बच्चे को कोचिंग देकर एक मौका मिलता था अपने आपको सुधारने का.उन्हें अब ये मौका नहीं मिलेगा. अब मेरा जो डर है कि पास या फेल होने की पूरी जिम्मेदारी बच्चों और अभिभावकों पर न आ जाए.स्कूलों को इसके लिए जवाबदेह होना होगा.
दिल्ली में दिखा था पॉलिसी हटाने का असर
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बीते वर्ष आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिए नो डिटेंशन पॉलिसी हटाई गई थी. इसके बाद सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत आंकड़े मांगे गए जो चौंकाने वाले थे. इन आंकड़ों के अनुसार नौवीं में पढ़ने वाले एक लाख से अधिक और 11वीं में 50 हजार से अधिक विद्यार्थी वार्षिक परीक्षा में फेल हो गए थ. दिल्ली में 1,050 सरकारी स्कूल और 37 डा. बीआर अंबेडकर स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस स्कूल हैं.
क्या था इस पॉलिसी में
नो डिटेंशन पॉलिसी के अनुसार 6 से 14 साल तक अनिवार्य शिक्षा के तहत किसी भी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चे को आठवीं तक प्रारंभिक शिक्षा होने तक किसी भी कक्षा में दोबारा नहीं पढ़ाया जाएगा. अब इसे हटाते हुए फेल होने वाले बच्चों को दो माह के अंदर फिर से परीक्षा देकर अपने प्रदर्शन में सुधार करने का एक और मौका मिलेगा.