
लक्षद्वीप के स्कूलों में मिड डे मील में मांस-मछली और डेयरी फार्म उत्पाद न देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इंकार किया है. कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए एसएलपी खारिज कर दी. लक्षद्वीप प्रशासन को राहत देते हुए जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि सरकार के नीति संबधित मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. कोर्ट ये कैसे तय कर सकता है कि स्कूल में बच्चों को क्या खिलाना चाहिए!
पीठ ने कहा कि इस याचिका में नीति को लेकर किसी कानून के उल्लंघन का कोई संकेत नहीं दिख रहा. लिहाजा इस पर सुनवाई करने या न्यायिक दखल देने का कोई औचित्य नहीं है. नीति संबंधित मामले सरकार यानी कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आते हैं न कि न्यायपालिका के. सुनवाई के दौरान जस्टिस बोस ने पूछा कि नॉन वेज खाना किसी का कोई निहित अधिकार तो नहीं है? किसका हो सकता है? कौन सा कानून है जिसमें सिर्फ नॉन वेज यानी मांसाहार ही करने की बात हो.
जस्टिस ने पूछा कि क्या मेवे पसंद नहीं हैं?
केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का प्रशासन आपको सिर्फ शाकाहार करने पर मजबूर तो नहीं कर रहा न? वो आपकी भोजन संबधित आदतें बदलने को कह रहा है क्या? वो तो सिर्फ स्कूलों में छात्रों को दोपहर का भोजन दे रहे हैं. फूड सिक्योरिटी कानून में भी भोजन यानी खाद्य सुरक्षा का अधिकार है मेन्यू तय करने का अधिकार नहीं. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि स्कूलों में दिया जाने वाला मिड डे मील सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य भोजन होना चाहिए जिसे बच्चे चाव से खाएं. इस पर जस्टिस त्रिवेदी ने पूछा कि क्या मेवे पसंद नहीं हैं?
इस पर वकील तो कुछ नहीं बोले लेकिन जस्टिस बोस ने कहा कि हम सरकार के इस मिड डे मील नीति में किए गए बदलाव पर कुछ नहीं करेंगे क्योंकि ये किसी के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के सितंबर 2021 में दिए फैसले को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी.