
भले ही विज्ञान ये सिद्ध कर चुका है कि बेटा-बेटी होने का स्त्री से कोई लेना-देना नहीं है. यह पूरी तरह पुरुष के क्रोमोसोम्स पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें गलती किसी की नहीं. लेकिन दुखद यह है कि आज भी बेटी की पैदाइश को किसी शाप की तरह तमाम औरतें ही झेल रही हैं. इसी की एक नजीर हैं उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले की रहने वाली यास्मीन, जिसे चार बेटी होने पर पति ने तलाक दे दिया. लेकिन आखिर में यास्मीन ही अपनी बेटियों को अभिशाप न मानते हुए उन्हें बेहतर परवरिश दे रही हैं. आइए जानें क्या है यास्मीन की कहानी....
गोंडा जिले के कटरा बाजार ब्लॉक के सर्वांगपुर गांव वह इलाका है, जहां सिलाई मशीनों के चलने की एक मोहक धुन वातावरण में तैर रही है. यहां ये महिलाएं और उनकी बच्चियां हसनी हुसैनी नारी कल्याण स्वयं सहायता समूह की मेंबर हैं, जिनकी मेहनत और लगन से यह सहायता समूह आज ऊंचाइयों की पेंग भर रहा है. समूह की अध्यक्ष यास्मीन एक ट्रिपल तलाक पीड़िता हैं. यास्मीन की मानें तो 16 साल पहले उसकी शादी इस गांव में हुई थी और वह राजी खुशी अपने पति के साथ महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहती थी. जहां एक-एक कर उसने तीन बेटियों को जन्म दिया.
बाद में जब वो गोंडा वहां से आती-जाती रही तो उसने यहां पर चौथी बेटी को भी जन्म दिया. लगातार चार बेटियों के पैदा होने से यास्मीन के पति ने कुपित होकर उसे तलाक दे दिया. इस मामले में मुकदमा भी चल रहा है. यास्मीन के पति और ससुराली जन उसको छोड़कर महाराष्ट्र चले गए. अब 4 बच्चियों को लेकर तलाकशुदा यास्मीन गोंडा में ही रहने को मजबूर हो गई. उनके सामने अपने बच्चों को पालने का गंभीर संकट पैदा हो गया था.
कुछ दिन तक तो यास्मीन ने खेतों में मजदूरी की. बाद में यास्मीन ने सरकारी मदद से स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव की ही 10 महिलाओं को जोड़ा और सिलाई करने लगी. पहले तो इधर उधर से काम करके गुजारा चल जाता था. यहीं पर यास्मीन समूह से जुड़ी महिलाओं की बच्चियों को सिलाई सिखाने लगी. इसी बीच मुख्य विकास अधिकारी के आदेश पर यास्मीन के समूह को बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों की ड्रेस सिलने का काम दिया गया.
करीब 3000 स्कूली ड्रेस सिलकर जब इस समूह ने विभाग को सौंपा तो इस समूह को ₹300000 सिलाई के मिले जिससे समूह की बांछें खिल गईं. यास्मीन ने बताया कि उसने बैंक से लोन लिया था और सिलाई मशीन खरीदी थीं. पेमेंट मिलने के बाद उसने बैंक लोन चुका दिया और बाकी जो बचा वह समूह की सदस्य महिलाओं में बराबर-बराबर बांट दिया गया. महिला सशक्तिकरण के लिए यास्मीन एक मिसाल बनकर उभरी हैं.
सीडीओ शशांक त्रिपाठी ने यास्मीन के समूह की सराहना करते हुए बताया कि तलाक पीड़िता होने के बाद यास्मीन का हमारी टीम ने समूह बनवाया और बेसिक स्कूलों के ड्रेस सिलाई का काम देकर उनको 3 लाख का लाभ मिला. कटरा बाजार ब्लॉक के सर्वांगपुर गांव की हसनी हुसैनी नारी कल्याण स्वयं सहायता समूह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यास्मीन और उनके समूह की महिलाओं को सलाम.