
लखनऊ में एक दस साल के बच्चे ने सिर्फ इसलिए फांसी लगा ली, क्योंकि उसकी मां ने उससे मोबाइल छीन लिया था. यह घटना भले ही चौंकाने वाली है, लेकिन मोबाइल एडिक्शन आज समाज की बड़ी समस्या बनकर उभरा है. वहीं कोरोना काल में जब पूरा एजुकेशन सिस्टम ऑनलाइन मोड में आ गया था, इसी दौर में मोबाइल बच्चों के हाथों में अपनी पुख्ता जगह बना बैठे हैं.
मोबाइल गेमिंग या मोबाइल पर घंटों बैठकर कुछ न कुछ सर्च करते रहना, या यूं कहें कि मोबाइल पर लगातार वक्त बिताने से बच्चों की नींद, भूख, पढ़ाई, संवाद क्षमता, एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी सब कम हो गई हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मोबाइल की लत बच्चों को कहीं न कहीं मानसिक रूप से भी परेशान कर देती है.
जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि आज मोबाइल फोन बहुत ज्यादा एडवांस हो गए हैं. टेक्नोलॉजी की पहुंच निम्न आय वर्ग तक हो गई है. फोन में बसी दुनिया इतनी आकर्षक है कि बच्चे तो बच्चे, बड़े भी इसके तिलिस्म से नहीं बच पाते. इसी तिलिस्म में उलझकर उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं लग पाता है कि उन्हें कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहिए. इसका यूज नॉर्मलाइज करना ही सही विकल्प हो सकता है.
एडिक्शन से बचने के लिए एक्सपर्ट के बताए ये पेरेंटिंग टिप्स अपनाएं
1. 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल यूज को लेकर एक समय निर्धारित करें.
2. छोटे और टीन एज बच्चों को बताकर उनके फोन पर पेरेंटल कंट्रोल ऐप इस्तेमाल करें.
3. बच्चे कौन-सी ऐप कितनी देर इस्तेमाल करें, यह आप तय कर सकते हैं.
4. बच्चों को मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर जागरूक करें, कि कैसे ये आंखों और त्वचा को नुकसान पहुंचाता है.
5. मोबाइल गेमिंग में अगर आपका बच्चा इनवॉल्व हो रहा है तो उसके मोबाइल यूज पर धीरे धीरे पाबंदी लगाएं.
पेरेंटिंग: ऐसे बच्चों को भावनात्मक रूप से पालें
सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि बच्चों के भीतर चाइल्ड लाइक एनर्जी होती है. यानी बच्चों में अपने भीतर अथाह ऊर्जा होती है. इस ऊर्जा का अगर सही इस्तेमाल किया जाए तो बच्चे पढ़ाई से ज्यादा एक्टिविटी के जरिये सीखते हैं. इस उम्र में अगर बच्चे के हाथ मोबाइल लग जाता है तो वो अपनी सारी ऊर्जा इसी में लगा देता है. अब यहां एक पेरेंट्स के तौर पर आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप बच्चे की जिंदगी में मोबाइल से ज्यादा खुद की इंपॉर्टेंस बनाकर रखें.
डॉ मेहता कहते हैं कि अगर मां हाउस वाइफ है तो वो बच्चे के साथ कई तरह की एक्टिविटी और बातचीत व पढ़ाई में वक्त बिता सकती है. लेकिन उसके लिए जरूरी है कि वो खुद भी इस दौरान मोबाइल यूज न करें. अगर माता-पिता दोनों ही वर्किंग हैं तो घर पहुंचकर नो मोबाइल यूज इन होम का रूल बनाएं. घर में आप दोनों कम से कम मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें. घर में बच्चे के साथ वक्त बिताएं.