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मुंबई का एक एक्शन ग्रुप ऐसा भी, गरीब बच्चों को मुहैया कराता है साइकिलें...

समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जरूरी नहीं कि आप किसी बड़े संगठन से जुड़ें. यदि इच्छा हो तो निजी स्तर पर भी बहुत कुछ अच्छा किया जा सकता है. पढ़ें बदलाव लाने वाली ऐसी ही एक कहानी...

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विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2016,
  • अपडेटेड 4:41 PM IST

ऐसा हम सभी के साथ होता है कि हम अपने समाज और आसपास के इलाके में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते है. उसके लिए कई बार प्रयास भी करते हैं लेकिन जल्द ही प्लान को तिलांजलि दे देते हैं. इसके अलावा यदि हम कभी अपने पुराने स्कूली व कॉलेज के दोस्तों के साथ बैठते हैं तो हम हमेशा कुछ ऐसा डिस्कस करते हैं जो हमारी दबी इच्छा होती है.
कैसे आपने स्कूल के दिनों में नजदीक की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को बिना पैसे लिए पढ़ाने का काम किया था. कैसे आपने अपनी पुरानी साइकिल किसी और को दे दी. तो यह कहानी भी मुंबई के एक ऐसे ही स्कूली दोस्तों की है जो आज अपने परिवार के साथ सुकून के पल बिता रहे हैं.

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यह कहानी मुंबई के चुन्नीलाल दामोदरदास बर्फीवाला हाई स्कूल के स्टूडेंट्स की है...
इस कहानी के तार इस स्कूल में साल 1980 में पढ़ाई करके निकलने वाले स्टूडेंट्स से जुड़ते हैं. वे सभी अपने-अपने परिवार के साथ आरामदेह जिंदगी बिता रहे थे लेकिन उनके भीतर अपने आसपास के वंचित तबके और समाज के लिए काम करने की इच्छा थी.
उनके भीतर इस बात की कुलबुलाहट थी कि वे कुछ सकारात्मक कर सकें. एक दिन यूं ही आपस में बात करते-करते किसी एक ने बाकी दोस्तों को मुंबई के दूर-दराज और दूसरे आदिवासी इलाकों में रहने वाले स्कूल के बच्चों की मुश्किलों के बारे में बताया. ये बच्चे किसी साधन के अभाव में रोजाना करीबन 5-8 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे.
नतीजा ये हुआ कि बहुत से बच्चे खासतौर से लड़कियां बीच में ही पढाई छोड़ देती थीं. दोस्तों के ग्रुप ने इन बातों को बहुत गहराई से लिया और इन स्कूली बच्चों की मदद के लिए कुछ करने का मन बना लिया. चूंकि समस्या ट्रांसपोर्ट की थी इसलिए जरूरी था कुछ ऐसा साधन मुहैया करवाना जिससे वो स्कूल तक का सफर आसानी से तय कर सकें.

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लोगों से लगाई आस, मगर लगी निराशा हाथ...
वे इस बात को तो समझ गए थे कि साइकिल ही इन सारे वंचित व गरीब बच्चों की सबसे अहम साथी हो सकती है. इसके लिए उन्होंने अपने आसपास के लोगों को अप्रोच भी किया, लेकिन अफसोस. लोग पुरानी साइकिलों के नाम पर कबाड़ देने लगे. फिर उन्होंने डोनेशन कलेक्ट करना शुरू किया.
अब वे इस डोनेशन की मदद से लगभग 200 ऐसे जरूरतमंद बच्चों की मदद कर चुके हैं. इस मुहिम के तहत जहां वे वंचित तबके को सशक्त कर रहे हैं वहीं पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में भी महती भूमिका अदा कर रहे हैं. गौरतलब है कि बर्फीस एक्शन ग्रुप औपचारिक तौर पर कोई गैर सरकारी संस्था नहीं है. ये ग्रुप व्हाट्स एप और दूसरे माध्यमों के जरियए लोगों से अनुदान की अपील करता है. है न अच्छी वाली बात...

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