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भोपाल गैस कांड: एक ही घटना से मरे 3000 लोगों की आवाज बना था ये शख्स

2 दिसंबर 1984 की वो काली रात जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. इसी हादसे के पीड़ित अब्दुल जब्बार घटना में मारे गए 3000 लोगों की आवाज थे. आइए जानें- उनके बारे में.

फाइल फोटो: अब्दुल जब्बार फाइल फोटो: अब्दुल जब्बार
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST

भोपाल गैस त्रासदी, भारतीय इतिहास में दर्ज वो त्रासदी जिसने चंद मिनटों में हजारों जिंदगियां लील लीं. आज भी लोगों के दिलों में इस त्रासदी के जख्म ताजे हैं. 2-3 दिसंबर 1984 की वो काली रात जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. इसी हादसे के पीड़ित अब्दुल जब्बार घटना में मारे गए 3000 लोगों की आवाज थे. आइए जानें- उनके बारे में.

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अब्दुल जब्बार ने इस घटना में अपने माता पिता को खो दिया था. इस हादसे ने उनके फेफड़ों और आंखों पर भी गंभीर असर डाला था. अपनी बची जिन्दगी को उन्होंने इस घटना में मरे लोगों को न्याय और एक बेहतर जिंदगी दिलाने के आंदोलन में बदल दिया था. उन्होंने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन बनाया जिसके वो संयोजक थे. ये गैर सरकारी संगठन बीते तीन दशक से भोपाल गैस कांड के जीवित बचे लोगों के हित में काम कर रहा है.  

ऐसे हुआ था भोपाल गैस कांड

2 दिसंबर 1984 की वो काली रात, जब भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक होने लगी. देखते ही देखते हजारों लोग इसका शिकार हो गए. ये ऐसी तबाही थी जो हवा के साथ घुलकर लोगों की सांसों में घुल रही थी. जिस तरफ हवा ने रुख किया लोगों की मौतें होने लगीं. कुछ ही घंटों में वहां 3000 लोगों की मौत हो गई. लोगों का मानना है कि वहां 10 हजार के करीब लोग मारे गए थे. इस त्रासदी का प्रभाव अब भी देखा जा सकता है.

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अब्दुल जब्बार बने 3000 मृतकों की आवाज

इस दर्दनाक हादसे के बाद अब्दुल जब्बार आगे आए और पीड़ितों की आवाज बन गए. वो इस दर्द को बेहद करीब से महसूस करते थे, इसीलिए अपने गैर सरकारी संगठन से पीड़ितों के परिवार की मदद में जुट गए. वो पीड़ितों की बात को सरकार तक पहुंचाने का भी काम कर रहे थे.

दूसरों को इंसाफ दिलाने के लिए वो अपनी ज़िंदगी का सुख-चैन भूलकर इसी काम में लग गए थे. उन्होंने कभी अपनी सेहत की भी परवाह नहीं की. इसी संघर्ष के दौरान उनके बाएं पैर में चोट लग गई. धीरे-धीरे ये चोट नासूर बन गई और गैंगरीन का रूप ले लिया. अपने सीमित साधनों के कारण वो इसका इलाज कराते-कराते आर्थिक तंगी में पहुंच गए. कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और मित्रों ने उनके इलाज के लिए फंड जुटाने की सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू की.

उसके बाद सरकार जागी और अब्दुल जब्बार के इलाज की घोषणा की लेकिन उनकी जान बचाने के लिए शायद काफी देर हो गई थी. इसी साल 2019 में 14 नवंबर के दिन उनका निधन हो गया. बता दें कि निधन से एक दिन पहले ही मध्य प्रदेश सरकार ने उनके इलाज का खर्च उठाने का ऐलान किया था. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी ट्वीट कर अब्दुल जब्बार के इलाज का खर्च उठाने की बात कही थी.

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