
आज एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने खून-पसीना एक कर कोलकाता के पुनरी गांव में अपनी बहन के नाम पर एक अस्पताल बनवा दिया. सैदुल लश्कर कोलकाता में पेशे से एक कैब ड्राइवर हैं. वह कैब चलाकर ही अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. सैदुल के परिवार पर उस दिन दुखों का पहाड़ टूटा जब उनकी बहन का देहांत हो गया. सैदुल के पास अपनी बहन का इलाज कराने के पैसे नहीं थे जिसके कारण उनकी बहन उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई.
इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था. वह खुद को एक लाचार भाई समझने लगे जो अपनी बहन का इलाज भी नहीं करवा पाया. बहन के दुनिया से चले जाने के बाद सैदुल ने ठान लिया था कि अब उनके गांव में पैसों के अभाव में चलते कोई इलाज से वंचित नहीं रहेगा. जैसा उनके परिवार के साथ हुआ है वैसा गांव के किसी भी घर में नहीं होगा.
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शुरू हुआ अस्तपाल बनाने का काम
सैदुल ने अस्पताल बनाने के बारे में सोच तो लिया था पर ये इतना आसान नहीं था. उनका ये सफर कठिनाइयों से भरा था. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंन बताया कि अस्पताल बनवाने के लिए दो बीघा जमीन खरीदना था, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे. पैसे न होने की बात उन्होंने अपनी पत्नी से कही.
जिसके बाद पत्नी अपने सभी गहने सैदुल को दे दिए. गहने देते समय उनकी पत्नी ने कहा कि वे इसे बेचकर जमीन खरीद लें. वहीं सैदुल इस बात को बखूबी जानते थे कि टैक्सी चलाने से कभी भी इतनी कमाई नहीं हो सकती जिससे आसानी से एक अस्पताल खड़ा किया जा सके.
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शुरू किया दान मांगना
अस्पताल बनाने के लिए पैसे पूरे नहीं हो पा रहे थे. जिसके बाद सैदुल ने अपनी टैक्सी पर बैठने वाले यात्रियों से दान मांगना शुरू कर दिया. दान मांगते समय कई बार उन्हें निराशा हाथ लगी. लेकिन कहते हैं कोई काम सच्चे दिल से किया जाए तो उसका परिणाम देर से आता है लेकिन अच्छा आता है. धीरे-धीरे लोगों ने उन्हें दान देना शुरू किया.
सैदुल ने बताया 23 साल की एक लड़की उनकी कैब में बैठी थी जो मकैनिकल इंजीनियर हैं. जब उन्होंने उस लड़की से दान मांगा था तब उसके पास 100 रुपये एक्स्ट्रा थे. लड़की ने सैदुल को 100 पकड़ाए और उनका नंबर ले लिया. सैदुल ने बताया कि पिछले साल जून में वह लड़की अस्पताल में आईं और उन्हें 25,000 रुपये दिए जो उसकी पहली सैलरी थी.
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रंग लाई 12 साल की मेहनत
बीते 12 सालों के संघर्ष के बाद सैदुल का सपना सच हो गया. जहां कोलकाता के बाहरी इलाके, पुनरी गांव में उन्होंने एक अस्पताल बनवा दिया. अस्पताल का नाम 'मारुफा स्मृति वेलफेयर फाउंडेशन' है. सैदुल की बहन का नाम मारूफा था जिनके नाम से उन्होंने अस्पताल बनाया. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस अस्पताल से लगभग 100 गांव को लाभ होगा. अस्पताल की ओपीडी है. लेकिन बाकी की सुविधाओं के लिए अभी कुछ समय और लगेगा. फिलहास अभी अस्पताल में 30 बेडों की सुविधा की गई है.
NGO ने की मदद
अभी अस्पताल में काफी सुविाधाओं का आना बाकी है. जिसमें कम से कम 2 से 3 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. अभी तक इस अस्पताल को बनने में 36 लाख रुपये का खर्चा हुआ है. अभी की योजना के अनुसार अस्पताल का पहला फ्लोर बाहर के मरीजों के लिए होगा और दूसरे फ्लोर पर पैथोलॉजी की लैब होगी. वहीं जहां सैदुल अस्पताल बनाने के सफर में अकेले थे अब उन्हें कई संगठनों से भी मदद मिली है. जहां संगठन ने उनके अस्पताल को एक्स-रे मशीन और एक ईसीजी मशीन दी है.
अब खोलना चाहते हैं नर्सिगं स्कूल
अस्पताल बन गया लेकिन मरीजों के देखभाल के लिए नर्स की जरूरत होगी. इसके लिए सैदुल नर्सिगं स्कूल खोलना चाहते हैं जिससे स्थानीय लड़कियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार दिया जा सके.