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भारत में वकीलों की पारंपरिक छवि घर में एक छोटे से दफ्तर या कोर्ट के नजदीक बड़े से हॉल के अंदर भीड़ भरे क्यूबिकल्स में बैठकर प्रैक्टिस करने वाले पेशेवरों की रही है. बीते एक दशक में खासकर कॉरपोरेट लॉ के मामले वकालत के पेशे में जबरदस्त बदलाव आया है.
क्या होता है इनका काम:
कॉरपोरेट्स लॉयर, कॉरपोरेशंस को उनके कानूनी अधिकारों और सीमाओं के बारे में सलाह देते हैं. करोड़ों के मामलों के चलते पूरा गेम ही बदल गया है और कॉरपोरेट लॉ एक व्यापक व आकर्षक करियर बन गया है. कॉरपोरेट लॉयर अपने क्लाइंट्स को कानूनी तरीके से कारोबार करने में मदद करता है. उसकी जिम्मेदारी नई फर्म के लिए शुरुआती दस्तावेज तैयार करने से लेकर कॉरपोरेट रीऑर्गनाइजेशन करने तक की रहती है.
योग्यता:
कॉरपोरेट लॉयर को किसी भी सरकारी संस्था या विभागों की ओर से समय-समय पर बनाए या संशोधित किए जाने वाले कानूनों की पूरी जानकारी होनी चाहिए.
स्कोप:
चूंकि कंपनियां लीगल को अपने कारोबार के कोर स्ट्रेटेजिक फैक्टर के रूप में हैं, इसलिए स्वतंत्र वकीलों और इन-हाउस लीगल टीम की मांग लगातार बढ़ी है. रोजगार के बाजार में वकीलों की मांग अचानक बहुत तेजी से बढ़ी है. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय फर्म पिछले साल से दोगुनी संख्या में वकीलों को नौकरी पर रखेंगी. मांग न केवल सीनियर पोजीशन पर बढ़ी है, बल्कि एंट्री लेवल पर भी बढ़ी है.
सैलरी :
विदेशी कानूनी फर्मों के भारत में आने से सैलरी का ग्राफ भी काफी ऊपर चला गया है. कैंपस रिक्रूटमेंट में ऑफर की जाने वाली सैलरी भी 10 से 15 फीसदी बढ़ी है. जिनके पास 3 से 8 साल का अनुभव है, उनके मामलों में तो यह बढ़ोत्तरी 35 से 100 फीसदी के बीच हुई है. लीगल सेल के प्रमुखों की औसत सालाना सैलरी इस साल 1.8-2.3 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है जो पिछले साल 90 लाख से 1.3 करोड़ हुआ करती थी.