
दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए आज से वोटिंग हैं, जिसके नतीजे 11 फरवरी यानी मंगलवार को आएंगे. इसके साथ ही देश की राजधानी दिल्ली के दिल पर कौन राज करता है, इसका फैसला भी हो जाएगा. लेकिन क्या आप दिल्ली का इतिहास जानते हैं? क्या आपको मालूम है दिल्ली देश की राजधानी कैसे बनी. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
ये है दिल्ली का इतिहास
महाकाव्य महाभारत में जिस इंद्रप्रस्थ का जिक्र है, माना जाता है कि वह दिल्ली के आसपास का ही इलाका था. माना जाता है कि यहां पर ताम्र पाषाण युग में बसावट शुरू हुई थी जिसके संकेत 600 ईस्वी पूर्व तक मिलते हैं. महाभारत में ही कौरवों और पांडवों के बीच 18 दिन के युद्ध का जिक्र है, जो कुरुक्षेत्र के मैदान पर लड़ा गया था.
दिल्ली का इतिहास बस-बस के उजड़ना और उजड़-उजड़कर बसना ही है. इंद्रप्रस्थ भी इसी किस्से का एक सिरा है. कहा जाता है कि पुराने किले के पास इंद्रपत नाम का एक गांव 19वीं सदी में भी था, जिसे सहज ही पांडवों के इंद्रप्रस्थ से जोड़ा जाता था.
यहां था सबसे पहले दिल्ली का जिक्र और ये था दिल्ली का पहला शहर
इतिहास की बात करें तो सबसे पहले दिल्ली का जिक्र 1180 में हुआ था, जब राजा पृथ्वीराज चौहान ने इस पर विजय प्राप्त की थी. राजा पृथ्वीराज तृतीय ने यहां तोमर राजा- अनंगपाल के बनवाए लालकोट को किला राय पिथौरा में बदल दिया था. आपको बता दें, ये दिल्ली का पहला शहर माना जाता है. पृथ्वीराज, अजमेर और दिल्ली के बीच के क्षेत्र पर शासन करते थे.
राजा पृथ्वीराज अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे. उन्होंने अफगानिस्तान के गौर से आए हमलावर मोहम्मद गौरी को बुरी तरह हराया था, 1192 में हुए तराइन के युद्ध में गौरी को आखिरकार जीत मिल गई. जिसके बाद पृथ्वीराज वीरगति को प्राप्त हुए.
राजा पृथ्वीराज के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने संभाली दिल्ली की गद्दी
गौरी की जीत के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने हिंदुस्तान में मिली जीत को संभालने की जिम्मेदारी अपने विश्वासपात्र गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपी थी, जिसने 1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना की. बता दें, उन्होंने कुतुब मीनार का निर्माण और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी बनवाई थी. इसी के साथ उन्होंने कुतुब महरौली बसाया जिसे दिल्ली का दूसरा शहर कहा जाता है. इसके निर्माण के चार साल बाद घोड़े से गिरकर 1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो गई थी. जब उनकी मौत हुई तो दिल्ली के अगले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश बने. उन्होंने 26 साल दिल्ली पर राज किया था.
इल्तुतमिश को नहीं था बेटों पर भरोसा, बेटी ने संभाली दिल्ली की गद्दी
इल्तुतमिश अपने बेटों का नालायक समझता था, ऐसे में उन्हें पूरा भरोसा अपनी बेटी रजिया पर था. जिसके बाद इल्तुतमिश ने अपनी बेटी को पूरा साम्राज्य सौंप देने का निर्णय लिया. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा था जब कोई महिला इतने बड़े साम्राज्य की कमान संभालने जा रही थी. जब इल्तुतमिश की मौत हुई तो उनकी बेटी ने दिल्ली की कमान संभाली.
एक लड़की ने किया था दिल्ली पर राज
इल्तुतमिश की ख्वाहिश के मुताबिक, उनकी बेटी रजिया ने महिलाओं के कपड़े पहनना छोड़ दिया, जिसके बाद चोगा-टोपी पहना और हाथी पर सवार हो गई. इस शुभ घड़ी पर दिल्ली झूम उठी थी. रजिया सुल्तान में वो सभी गुण थे जो उस वक्त के सुल्तानों में जरूरी माने जाते थे. उन्होंने दिल्ली पर साढ़े तीन साल राज किया. दरअसल तुर्क सरदारों के मुकाबले गैरतुर्क और हिंदुस्तानी सामंतों की एक वफादार टोली तैयार करने की कोशिश उस पर भारी पड़ी थी. तुर्क अमीरों ने खुली बगावत की, जिसमें उनकी जान लेकर थमी.
अलाउद्दीन खिलजी का राज
दिल्ली का सीरी फोर्ट स्टेडियम सल्तनत काल में बसाए गए तीसरे शहर की याद है. इसे अलाउद्दीन खिलजी ने बसाया था. 1296 में अपने चाचा और खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी की कड़ा मानिकपुर में हत्या करके उसने सत्ता हथिया ली थी. उसके कारनामों से डरी हुई दिल्ली उसका इंतजार कर रही थी. फिर एक बरसाती रात सोना लुटाते हुए अलाउद्दीन दिल्ली में दाखिल हुआ था.
उन दिनों दिल्ली के बाजारों में ज्यादा दाम वसूलने वालों की खैर नहीं थी. यही नहीं, वो पहला सुल्तान था, जिसने स्थायी सेना का बंदोबस्त किया. तब की दिल्ली पर मंगोलों के हमले का साया मंडराता रहता. लेकिन सीरी के मैदान में अलाउद्दीन ने मंगोलों को इस बुरी तरह हराया कि उनका आतंक खत्म हो गया. बाद में इसी मैदान को दीवार से घेरकर उसने सीरी शहर बसाया ताकि दुश्मनों का हमला हो तो सिर्फ शासकवर्ग की नहीं, पूरी जनता की हिफाजत हो सके. सीरी स्टेडियम के पास दीवारों के खंडहर अब भी देखे जा सकते है. वैसे, लोगों की याद में अलाउद्दीन से जुड़ा सबसे अहम किस्सा है चित्तौड़ की रानी पद्मावती की पाने की उसकी कोशिश का है. हालांकि ये किस्सा इतिहास नहीं, अवधी महाकाव्य पद्मावत की वजह से आम हुआ, जिसे मलिक मोहम्मद जायसी ने अलाउद्दीन की मौत के काफी बाद लिखा था.
(पुराना किला)
तुगलकाबाद किले की विशाल दीवार 1320 ई. में दिल्ली के तख्त पर तुगलक वंश की स्थापना करने वाले गयासुद्दीन तुगलक के इरादों की गवाह हैं. इसे दिल्ली का चौथा शहर कहा जाता है. इस समय तक तुर्कों के भारत आगमन के लगभग सवा सौ साल बीत चुके थे. इसी समय दिल्ली सूफी संतों का केंद्र भी बन रही थी. मशहूर सूफी संत निजामुद्दीन औलिया, इस दौरान ऐसे मशहूर हुए कि सुल्तान की चमक भी फीकी पड़ गई. तुगलकाबाद आज वक्त की धूल में खो गया, लेकिन ख्वाजा के दर पर सुकून का चश्मा बदस्तूर बह रहा है. ख्वाजा का दर दिल्ली की तहजीब का मरकज आज भी है. यहां के हर जर्रे में देहली की खुशबू बसी हुई है. गयासुद्दीन तुगलक के बाद उसका बेटा मोहम्मद बिन तुगलक सुल्तान बना। उसने सल्तनत की राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद ले जाने का अजब फैसला किया.
कुछ विद्वान इसे उसकी दूरंदेशी बताते हैं तो कुछ के मुताबिक ये उसकी सनक भर थी. बहरहाल जल्द ही उसे गलती का अहसास हुआ और राजधानी वापस दिल्ली ले आई गई. बता दें, दिल्ली की सूरत में चार चांद उस समय लगा जब मुहम्मद बिन तुगलक के बाद उसके चाचा सुल्तान फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठे थे. आज फिरोजशाह कोटला का नाम आते ही लोगों के जेहन में क्रिकेट मैच घूमने लगता है, लेकिन कोटला के खंडहर बताते हैं कि दिल्ली का पांचवां शहर यानी फिरोजाबाद किस शान का नमूना था. 1388 में फिरोजशाह की मौत के साथ ही इस शान-शौकत पर बुरी नजर लग गई थी.
...जब तैमूर लंग ने किया दिल्ली पर हमला, चारों तरफ था सिर्फ खून ही खून
1398 में तैमूर लंग ने दिल्ली पर हमला कर दिया था. जाहिर है, इरादा लूटपाट था, जिसे हमेशा की तरह एक धार्मिक जामा पहनाया गया. उसका आरोप था कि दिल्ली का सुल्तान हिंदुओं के साथ उदारता का व्यवहार करता है, जो इस्लाम के खिलाफ है. दिलचस्प बात ये है कि लगभग डेढ़ सौ साल बाद उसके वंशजों यानी मुगलों ने भारत में अपने राज की मजबूती के लिए ठीक यही नीति अपनाई थी.
आपको बता दें, तैमूर के सैनिकों ने 3 दिन- 3 रात तक लगातार दिल्ली में लूटपाट की. फिरोजशाह के शानदार शहर को खंडहर बना दिया गया था. हजारों लोगों की गर्दनें उड़ा दी गईं. दिल्ली का हर कूचा, हर गली इंसानी खून से लथपथ थी. तैमूर के लौटने के बाद थोड़े समय के लिए सैयद वंश के हाथ में सत्ता रही और फिर लोदियों का वक्त आया. अफगानी नेतृत्व वाले इस पहले शासक परिवार के बहलोल, सिकंदर और इब्राहिम लोदी दिल्ली का गौरव ना लौटा सके. इब्राहिम लोदी पहला सुल्तान था, जो युद्धक्षेत्र में मारा गया था. उसने पानीपत के मैदान में अंतिम सांस ली थी.
ये स्वाभाविक था कि बाबर भी दिल्ली को अपनी राजधानी बनाता, लेकिन वो दिल्ली सुल्तान नहीं, हिंदुस्तान का पहला मुगल बादशाह बनना चाहता था. इसलिए उसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया. लेकिन चार साल बाद 1930 में बाबर की मौत हो गई.
इब्राहिम लोदी की हार से बौखलाए अफगान बिहार के फरीद खां उर्फ शेर खां के नेतृत्व में एकजुट हो रहे थे. उसने 1539 में हुमायूं को चौसा के मैदान में बुरी तरह पराजित किया.शेरशाह ने दिल्ली में हुमायूं के दीन पनाह में कुछ तरमीम करके उसे शेरगढ़ बना दिया. इसे दिल्ली का छठा शहर माना गया. 1540 में कन्नौज के पास उसने मुगलों को निर्णायक शिकस्त दी और शेरशाह बनकर दिल्ली के तख्त पर जा बैठा. शेरशाह ने दिल्ली में हुमायूं के दीन पनाह में कुछ तरमीम करके उसे शेरगढ़ बना दिया, शेरशाह बेहद कुशल शासक साबित हुए. उसने बंगाल को पेशावर से जोड़ने वाली ऐसी सड़क बनवाई जो आज भी जीटी रोड के नाम से जानी जाती है. उसका चलाया रुपया आज भी भारत की मुद्रा है. किस्मत ने शेरशाह का भी साथ नहीं दिया. 1545 में एक दुर्घटना में उसकी मौत हो गई. शेरशाह की मौत के दस साल बाद 1555 में हुमायूं को फिर से दिल्ली पर कब्जा करने का मौका मिल गया. शेरगढ़ फिर दीनपनाह हो गया. लेकिन महज सात महीने बाद पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मौत हो गई थी.
मुगलों को रास नहीं आई दिल्ली
दिल्ली मुगलों को रास नहीं आ रही थी. हुमायूं के बेटे और मुगल वंश के सबसे मशहूर शासक साबित हुए. अकबर ने अपनी राजधानी आगरा बनाई. उसके बेटे जहांगीर और पोते शाहजहां के समय भी आगरा ही शासन का केंद्र रहा था. शाहजहां खासतौर पर शानदार इमारतें बनवाने के लिए मशहूर था. आगरा में ताजमहल जैसी बेमिसाल इमारत की वजह से उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है. शाहजहां ने दिल्ली का रुख किया और यमुना किनारे शाहजहांनाबाद की नींव रखी जो दिल्ली का सातवां शहर कहा जाता है. जिसके बाद उन्होंने लाल किला और जामा मस्जिद का निर्माण करवाया गया.
शाहजहां का बेटा औरंगजेब यूं तो काबिल शासक साबित हुआ, लेकिन उसके दौर में ही मुगल साम्राज्य अपने बोझ से चरमराने लगा था. 1707 में उसकी मौत के बाद तख्त पर बैठने वाले दिल्ली की शान को बरकरार नहीं रख पाए. सिर्फ 32 साल बाद ईरान के शासक नादिरशाह ने दिल्ली की शान को खून में डुबो दिया. 1739 में बादशाह मुहम्मदशाह के वक्त हुए इस हमले में दिल्ली के 30000 नागरिक मारे गए. नादिर शाह अकूत दौलत के साथ तख्त-ए-ताऊस और कोहिनूर हीरा भी अपने साथ ले गया. दिल्ली की हर आंख में आंसू था और हर गली में खून की चादर बिछी थी.
नादिरशाह के जाने के बाद दिल्ली और मुगल वंश का नूर उतरने लगा. बादशाह सामंतों के हाथ की कठपुतली साबित होने लगे.सात समंदर पार से आए गोरे व्यापारियों की काली नजर अब तक हिंदुस्तान पर बुरी तरह गड़ चुकी थी. वे व्यापार नहीं, खुली लूट चाहते थे.
जिसके बाद ये व्यापारी ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ल में हिंदुस्तान में आए थे. 1615 में इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम की ओर से सर टामस रो बतौर राजदूत जहांगीर के दरबार में हाजिर हुआ था. उसने घुटनों के बल बैठकर अंग्रेजी कंपनी को सूरत में फैक्ट्री खोलने की इजाजत मांगी थी. तब उस दरबार में किसी ने कल्पना नहीं की थी कि उसके वंशज, एक दिन जहांगीर के वंशजों को ना सिर्फ घुटनों पर झुकाएंगे बल्कि उनका गला भी काटेंगे.
दुनिया के कुल व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 30 फीसदी था. अंग्रेज व्यापारी लार्ड क्लाइव के षडयंत्रों और विश्वासघात की नीति ने उन्हें कामयाबी दिलाई. बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेरिक 1757 में प्लासी के मैदान में अंग्रेजी सेना ने नवाब सिराजुद्दौला को हरा दिया. 1764 की इस लड़ाई ने भारत में अंग्रेजी राज की बुनियाद रख दी, जिसके बाद कलकत्ता (अब कोलकाता) उनके इरादों की राजधानी बनी थी. इसके बाद धीरे-धीरे वे देश के तमाम दूसरे इलाकों में भी दखल करते चले गए.
1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली को भी दखल कर लिया. 28 सितंबर 1837 को बादशाह अकबरशाह की मौत के बाद उनके बेटे बहादुर शाह जफर को बादशाह बनाया गया. लेकिन इस बादशाहत का असर लाल किले की दीवारों के अंदर तक ही था. पूरी दिल्ली पर अंग्रेज रेजीडेंट की हुकूमत चलती थी. वहीं दूसरी ओर बादशाह अपने खर्च के लिए कंपनी का मोहताज था.
1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज उठा और एक क्रांति आई. जिसके बाद अंग्रेजी राज कांप उठा था. वहीं अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को हुमायूं के मकबरे से गिरफ्तार कर लिया. उनके दो बेटों का कत्ल कर दिया गया और उनके कटे सिर तोहफे बतौर उन्हें पेश किए गए. उस समय चारों तरफ दिल्ली में सिर्फ जुल्म ही जुल्म थे. मशहूर शायर मिर्जा गालिब, इस कहर के भुक्तभोगी थे. 1857 ने बता दिया कि देश की अवाम के दिल में दिल्ली के बादशाह की क्या जगह है। लिहाजा बहादुरशाह जफर और उनकी बेगम जीनत महल को रंगून भेज दिया गया था.
कब दिल्ली बनी थी राजधानी
12 दिसंबर 1911 को दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने का ऐलान किया गया था. दिल्ली से पहले कलकत्ता (अब कोलकाता) को भारत की राजधानी बनाया गया था. जिसके बाद 13 फरवरी 1931 को दिल्ली को आधिकारिक तौर पर राजधानी घोषित किया गया था. बता दें, समय के साथ दिल्ली के सात शहरों के नाम से मशहूर 1) लालकोट, 2) महरौली, 3) सीरी, 4) तुगलकाबाद, 5) फिरोजाबाद, 6) दीन पनाह और 7) शाहजहानाबाद आज खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, आज उनके अवशेष दिल्ली के बसने और उजड़ने की कहानियां बयां करते हैं.