
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मेडिसिन में असिस्टेंट प्रोफेसर व कैंसर चिकित्सक और शोधकर्ता डॉ सिद्धार्थ मुखर्जी ने इंडिया टुडे ई कॉनक्लेव के जरिये कोविड-19 को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. बता दें कि डॉ सिद्धार्थ को खासतौर पर 'द एम्परर ऑफ ऑल मैलोडीज: ए बायोग्राफी ऑफ कैंसर' जैसी लोकप्रिय किताब के लेखक के तौर पर खास पहचान मिली है. उन्हें अपनी किताब के लिए साल 2011 में नॉनफिक्शन कैटेगरी में पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. जानें कोविड 19 महामारी पर इंडिया टुडे से खास बातचीत में क्या कहा.
कोविड -19 इतना अलग क्यों हैं ?
इसके दो फीचर्स हैं. पहला एसिम्प्टोमेटिक करियर्स जो वायरस को ले जाकर फैलाते हैं. कोरोना अपने ही फैमिली के SARS और MARS जैसा पूरी तरह नहीं है. दूसरी बात यह है कि अगर आप सुरक्षा नहीं बरतते तो ये बढ़ता जाता है.
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हम कोविड -19 के बारे में कितना जानते हैं ?
अभी भी कोविड 19 के बारे में बहुत सी चीजें अज्ञात हैं. मसलन अभी तक 20 और 30 के दशक के बहुत सारे लोग हैं जो इस बीमारी से मर चुके हैं. पहले से किसी बीमारी से ग्रसित ऐसे वृद्धों की भी मौत हुई हैं. हम वायरस, जीन के अनुक्रम को जानते हैं. फिलहाल हम वायरस पर हमला करने के संभावित स्थानों को भी जानते हैं. वैक्सीन में अभी समय लगेगा.
कोरोना महामारी में भारत अमेरिका से क्या सीख सकता है?
भारत अमेरिका से तैयारियों के बारे में जान सकता है. वाशिंगटन में 21 जनवरी को पहला मामला दर्ज किया गया था, लेकिन पहली प्रॉपर किट मार्च के पहले सप्ताह तक उपलब्ध नहीं थीं. जबकि हम 40 दिनों की बात कर रहे हैं.
बता दें कि हर वायरस में आरओ नंबर यानी रीप्रोडक्शन नंबर जुड़ा होता है, इसका मतलब है कि एक संक्रमित कितनी संख्या में लोगों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए इसका निदान तैयारियों पर निर्भर है.
हम कोविड -19 की दवाओं के स्तर पर कहां हैं?
जब आप वायरस के खिलाफ एक नई दवा विकसित करते हैं, तो यह प्रक्रिया कुछ चरणों से गुजरती है. इसका पहला चरण होता है जब किसी मौजूदा दवा को फिर से शुद्ध किया जाता है. उस श्रेणी में दो दवाएं हैं जो अभी मौजूद हैं उनमें से एक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और गिलियड की रेमेडिसविर है.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
देखिए इसका कोई एक समाधान नहीं है. एक साथ कई समाधान इसमें काम कर रहे हैं. इसमें से एक ये भी हैं कि देश इतने लंबे समय तक लॉकडाउन में रह सकते हैं. यदि आप लॉकडाउन नहीं करते हैं, तो मामले तेजी से बढ़ते हैं. यदि वायरस को अनियंत्रित फैलने दिया जाता है, तो 40 दिनों में दुनिया की तकरीबन पूरी आबादी प्रभावित हो जाएगी.
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लॉकडाउन करके हम हेल्थकेयर सिस्टम को प्रभावित नहीं करने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा इससे संक्रमण के प्रसार की गति को भी कम करते हैं.
क्या हम एक कोरोनावायरस के बाद एक बदली हुई दुनिया देखेंगे ?
जी हां, यह एक बदली हुई दुनिया होगी. इसके अलावा हम आने वाली अगली महामारी के लिए बेहतर तरीके से तैयार होंगे. कोरोना के मामले में कई देश काफी देर से सक्रिय हुए.