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पढ़िए अटल की वो कविता... जिसमें PAK के खिलाफ भरी थी हुंकार

पढ़ें- अटल बिहारी जी की वो कविता जिसने पाकिस्तान को चुनौती दी थी...

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो) पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
प्रियंका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे. लंबी बीमारी के बाद दिल्ली स्थित एम्स में 93 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है. उन्होंने एक शानदार कवि थे. उन्होंने कई बेहतरीन कविताएं लिखी. कविताओं को लेकर उन्होंने  कहा था कि 'मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं'. उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं' खूब चर्चित रही. जिसमें..हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा.. खास चर्चा में रही.

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वहीं उनकी ऐसी कविता भी है जिसने पूरे पाकिस्तान को हिला कर रख दिया था. पाकिस्तान पर लिखी गई उनकी ये कविता काफी प्रसिद्ध है जिसे खूब सुना जाता है.

''शीश नहीं झुकेगा''

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा

अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता

त्याग, तेज, तप, बल से ‍रक्षित यह स्वतंत्रता

प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता..

इसे मिटाने की ‍साजिश करने वालों से

कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है

औरों के घर आग लगाने का जो सपना

वह अपने ही घर में सदा खरा होता है.

'ठन गई, मौत से ठन गई...', पढ़ें अटल की 5 कविताएं

 

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो

अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ

ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो

आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ.

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पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है

तुम्हें मुफ्‍त में मिली न कीमत गई चुकाई

अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं

मां को खंडित करते तुमको लाज न आई.

अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को

दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो

दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली

बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो.

कवि, पत्रकार, फिर राजनेता: हर रोल में वाजपेयी ने जमाई धाक

धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से

कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो

हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से

भारत का शीश झुका लोगे, यह मत समझो.

जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार

अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष

स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे

अगणित जीवन, यौवन अशेष.

अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध

काश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा.

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