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इस व्यक्त‍ि ने सच कर दिखाई 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की कहानी...

चेन्नई के गरीब दलित परिवार में जन्मे सरथ बाबू की कहानी स्लमडॉग मिलियनेयर फिल्म से काफी मिलती जुलती है. सरथ ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर वो पा लिया, जो सम्पन्न परिवार के लोग भी अक्सर नहीं पा पाते.

सरथ बाबू सरथ बाबू
मेधा चावला
  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 7:05 PM IST

स्लमडॉग मिलियनेयर फिल्म तो आपको याद ही होगी. फिल्म में कैसे एक झुग्गी में रहने वाला लड़का करोड़पति बन जाता है. हालांकि यह फिल्म काल्पनिक थी. एक उपन्यास से इसकी कहानी ली गई थी. लेकिन फिल्म से हटकर ऐसी ही एक सच्ची कहानी भी है.

यह कहानी है चेन्नई के झुग्गी बस्ती में पले-बढ़े सरथ बाबू की.सरथ ने अपनी काबिलियत से पहले बिट्स-पिलानी और फिर आईआईएम-अहमदाबाद में एडमिशन पाया. इतना ही नहीं उन्होंने लाखों की नौकरी ठुकरा कर अपना कारोबार शुरू करने का रिस्क भी लिया.

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गरीब दलित परिवार में जन्मे सरथ
अपनी कामयाबी की वजह से कई सम्मान और पुरस्कार पाने वाले सरथ बाबू का जन्म चेन्नई के मडिपक्कम इलाके की झुग्गी में एक दलित परिवार में हुआ था. सरथ का परिवार बहुत गरीब था. परिवार में इनके दो बड़े भाई और दो छोटी बहनें थीं. घर चलाने की सारी जिम्मेदारी मां के कंधों पर थी. उनकी मां को एक स्कूल में मिड मील बनाने की नौकरी मिल गई, जिसके लिए उन्हें 30 रुपये हर महीने मिलते थे लेकिन पांच बच्चों का परिवार महज 30 रुपये में नहीं पाला जा सकता था. मां चाहती थीं कि सभी बच्चे खूब पढ़ें इसलिए उन्होंने सुबह इडली बेचना शुरू कर दिया.

बड़ी मुशिकलों से पढ़ाई पूरी की सरथ ने
सरथ ने भी अपनी मां को कभी निराश नहीं किया. कक्षा 10 तक वे हमेशा फर्स्ट आते थे. कक्षा 11 की एडमिशन फीस ने उन्हें उलझन में डाल दिया. सरथ ने फीस के पैसे इकट्ठा करने की एक तरकीब निकाली. गर्मी की छुट्टियों में उन्होंने दूसरे बच्चों के साथ मिलकर बुक-बाइंडिंग का काम शुरू कर दिया. इससे मिले पैसे उनकी फीस के लिए काफी थे.

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कक्षा 12 के बाद लिए साहस भरे फैसले
कक्षा 12 के बाद की पढ़ाई के बारे में सरथ ज्यादा नहीं जानते थे. सरथ के एक साथी ने उन्हें बिट्स पिलानी के बारे में बताया और यह भी बताया कि अगर इसमें एडमिशन मिल गया तो अच्छी नौकरी मिलेगी, जिससे उनकी सारी गरीबी दूर हो जाएगी. यह बात सरथ के दिमाग में बैठ गई और उन्होंने परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी.
कड़ी मेहनत से सरथ को वहां एडमिशन तो मिल गई लेकिन वहां की फीस ने उनके होश उड़ा दिए. उनके पहले सेमेस्टर की फीस उनकी शादीशुदा बहन ने अपने गहने गिरवी रख कर दिए और दूसरे सेमेस्टर में उन्हें कोई सरकारी स्कॉलरशिप मिल गई. बिट्स, पिलानी में हर दिन उनके लिए सबक रहा. वहां से डिग्री लेने के बाद उन्होंने कैट परीक्षा की तैयारी शुरू की. दो बार फेल होने के बाद तीसरी बार उन्होंने आईआईएम में दाखिले के लिए जरूरी रैंक हासिल किया.

लाखों की नौकरी छोड़ किया कारोबार करने का फैसला
आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें कई नौकरियों के प्रस्ताव आए. तनख्वाह भी लाखों में थी लेकिन उन्होंने नौकरी ना कर के कारोबार करने का बड़ा फैसला लिया. सरथ ने 2006 में फूड किंग केटरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी खोली. पहले यह कंपनी दूसरी कंपनियों में चाय, कॉफी, स्नैक्स सप्लाई करती थी. बाद में सरथ की कंपनी ने बिट्स पिलानी और आईआईएम अहमदाबाद में भी अपनी सर्विस प्रोवाइड की. सफल कारोबारी बनने के बाद सरथ ने 2010 मे हंगर फ्री इंडिया फाउंडेशन की स्थापना की. इस फाउंडेशन का मकसद अगले बास सालों में भारत को भुखमरी मुक्त बनाना है.

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मां से लेते हैं प्रेरणा
सरथ आज भी अपनी मां से प्रेरणा लेते हैं. वे जब भी परेशान होते हैं या किसी समस्या से दो चार होते हैं तो अपनी मां को ही याद करते हैं. मां की संघर्ष और त्याग की कहानी याद कर सरथ की सारी निराशा दूर हो जाती है.

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