Advertisement

'पहली महिला फोटो पत्रकार' को समर्पित गूगल डूडल, जानें इनके बारे में

होमी के एक दोस्त ने उन्हें फोटोग्राफी सिखाई. फोटोग्राफी सीखने के बाद उन्होंने अपने कैमरे से मुंबई के जन -जीवन की तस्वीरें लेना शुरू कर दिया.

Google Doodle Homai Vyarawalla Google Doodle Homai Vyarawalla
अनुज कुमार शुक्ला
  • ,
  • 09 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:07 PM IST

सर्च इंजन गूगल ने गुजरात के पारसी परिवार में जन्मीं और पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित भारत की पहली महिला फोटो जनर्लिस्ट होमी व्याराल्ला को उनके 104वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी है. होमी व्याराल्ला का जन्म गुजरात में 9 दिसंबर 1913 को हुआ था.

उनके पिता की एक थिएटर कंपनी थी, जिसके साथ बचपन में उन्हें यात्रा करने के काफी मौके मिले. फिर उनके पिता मुंबई में आकर बस गए. जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय और सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाई की.

Advertisement

... शुरू की फोटाग्राफी

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनके एक दोस्त ने उन्हें फोटोग्राफी सिखाई थी. फोटोग्राफी सीखने के बाद उन्होंने अपने कैमरे से मुंबई के जन-जीवन की तस्वीरें लेना शुरू किया था. कुछ समय बाद उन्हें कम उम्र में ही नौकरी मिल गई.

बता दें कि उन्होंने 1930 के दशक में अपना करियर शुरू किया था. दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने पर उन्होंने बॉम्बे स्थित 'The Illustrated Weekly of India' पत्रिका के लिए काम पर काम करना शुरू कर दिया. अपने करियर के शुरुआती सालों में उन्हें कोई नहीं जानता था. उनकी तस्वीरों को उनके पति के नाम के तहत प्रकाशित की जाती थी. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक फोटोग्राफर और अकाउंटेंट से शादी की थी.

...जब मिली पहचान

होमी व्याराल्ला की फोटोग्राफी को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली और 1942 में वह अपने परिवार के साथ ब्रिटिश सूचना सेवा में काम करने के लिए दिल्ली चली आई. दिल्ली में होमी ने हो ची मिन्ह, अमेरिकी राष्ट्रपतियों आइजनहॉवर और जॉन एफ कैनेडी जैसे नेताओं की फोटो के साथ साथ मैमी आइजनहॉवर और जैकलिन केनेडी की भी शानदार तस्वीरें खींची. उन्हें महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की भारत यात्रा और दलाई लामा के तिब्बत से बच निकलने के फोटो लेने का अवसर भी मिला.

Advertisement

आजाद भारत में जब बिना संविधान के 29 महीने तक चला देश

साल 1970 में उनके पति की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद साल 1982 में वह अपने बेटे फारूक के साथ वडोदरा में बस गईं. साल 1989 में कैंसर की बीमारी के कारण 15 जनवरी 2012 में उनका देहांत हो गया और दुनिया की एक बेहतरीन फोटो जर्नलिस्ट ने अलविदा कह दिया. लेकिन उनके द्वारा खिचीं गई तस्वीरें आज भी उनकी याद दिलाती है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement