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सरकार उर्दू को अनिवार्य विषय बनाने के मूड में नहीं: प्रकाश जावड़ेकर

संसद में प्रश्न काल के दौरान पूछे गए सवालों के जवाब में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्पष्ट किया कि उर्दू को स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाने का कोई प्लान नहीं है. सरकार इसकी बेहतरी के लिए प्रयासरत है.

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विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि वह उर्दू को स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाएगी, हालांकि सरकार उर्दू को एक भाषा के तौर पर प्रमोट करने के लिए तमाम प्रयास कर रही है.
प्रश्न काल में एक सवाल के जवाब में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि सरकार उर्दू को बढ़ावा देने के तमाम प्रयास कर रही है. इसके अलावा वह दूसरी भाषाओं को भी बढ़ावा देने के प्रयास में लगी है.

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आखिर मानव संसाधन मंत्री ने क्या कहा?
लिखित जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि उर्दू को अनिवार्य बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
उन्होंने कहा कि थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला का मुख्य उद्देश्य स्कूलों में इन भाषाओं को बढ़ावा देना और इन भाषाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना है.

नई शिक्षा नीति के अनुसार क्लास 1 से 10 के बीच उर्दू की किताबें मुहैय्या कराई जाएंगी और उर्दू के शिक्षकों को भी ट्रेनिंग दी जाएगी.

उन्होंने यह किसी समुदाय विशेष के बजाय भाषा की बेहतरी का मामला है. इसके लिए सरकार प्रयासरत है. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षकों की वैकेंसी भरने के लिए भी प्रयासरत है.
उन्होंने कहा कि शिक्षा समवर्ती लिस्ट में आती है और इसकी बेहतरी का भार राज्य पर भी आता है. केंद्र ने उर्दू भाषा की बेहतरी के लिए पिछले दो वर्षों में 62 करोड़ रुपये नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेजेस को जारी किया है.

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जावड़ेकर ने कहा कि उर्दू भाषा की बेहतरी और उस भाषा से जुड़े लोगों को बेहतर रोजगार देने के लिए कई स्कीम शुरू किए गए हैं. उन्होंने कहा कि उर्दू कैलिग्राफी, उर्दू करेस्पॉन्डेंस कोर्स और डीटीपी कोर्स भी शुरू होंगे.

 

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