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भाषा विवाद: तमिलनाडु में माता-पिता चाहते हैं, उनके बच्चे सीखें हिंदी

तमिलनाडु में माता- पिता चाहते हैं उनके बच्चे सीखें हिंदी... जानें- क्या कहती है ये रिपोर्ट

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
aajtak.in/प्रियंका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 09 जून 2019,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST

तमिलनाडु में राजनीतिक पार्टियां भले ही स्कूलों में हिंदी के साथ त्रिभाषा फार्मूले को लागू किए जाने का विरोध कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर जो रुख है, वह इसके विपरीत संकेत देता है. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (डीबीएचपीएस) द्वारा आयोजित हिंदी परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थियोंकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. 

आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार डीबीएचपीएस के महासचिव एस. जयराज ने कहा, "बीते पांच सालों के दौरान हमारी परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या लाखों में पहुंच गई है और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. 2014 में हमारी परीक्षाओं में लगभग 4.90 लाख विद्यार्थी शामिल हुए थे."

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उन्होंने कहा, "2015 में हिंदी विद्यार्थियों की संख्या 5.23 लाख हो गई, 2016 में 5.53 लाख, 2017 में 5.74 लाख, 2018 में 5.80 लाख और 2019 में 6 लाख हो जाने की उम्मीद है." जयराज ने कहा, "हम परीक्षाएं फरवरी और अगस्त में आयोजित करते हैं. इस साल फरवरी में 3.90 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी. अगस्त में भी अच्छी-खासी संख्या की अपेक्षा की जाती है. इस साल हिंदी विद्यार्थियों की संख्या के 6 लाख का आंकड़ा छू लेने की संभावना है."

डीबीएचपीएस एक राष्ट्रीय महत्व रखने वाला संस्थान है. इसकी स्थापना सन् 1918 में महात्मा गांधी ने दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रचार के उद्देश्य से की थी. यहां हिंदी की पहली कक्षा गांधी के बेटे देवदास ने ली थी.

सन् 1927 में डीबीएचपीएस की पहचान महात्मा गांधी से जुड़े एक स्वतंत्र संगठन के रूप में बनी. गांधी, नाथूराम गोडसे की गोलियों से छलनी होने तक इस संस्थान के अध्यक्ष रहे.

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