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जहां कोई नहीं जाता, वहां जाकर पढ़ाएंगे IIT के 1225 इंजीनियर

बात सुनने में हैरान करने वाली लगती है, लेकिन देश में सैकड़ों सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज ऐसे हैं, जहां टीचरों की बहुत सी पोस्ट कई सालों से खाली है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
बालकृष्ण
  • पटना,
  • 31 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 9:13 PM IST

किसी कॉलेज का स्तर क्या है इसकी सबसे बडी पहचान इस बात से होती है कि वहां पढ़ाने वाले टीचर कैसे हैं. लेकिन ऐसे कॉलेजों के बारे में आप क्या कहेंगे जहां टीचर हैं ही नहीं और पढ़ाई भगवान भरोसे हो. बात सुनने में हैरान करने वाली लगती है, लेकिन देश में सैकड़ों सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज ऐसे हैं, जहां टीचरों की बहुत सी पोस्ट कई सालों से खाली है.

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60 फीसदी तक पद हैं खाली

इसकी वजह यह है कि ये कॉलेज ऐसी जगहों पर हैं जहां जाकर पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक खोजने से भी नहीं मिलते. इन में ज्यादातर कॉलेज पिछड़े राज्यों जैसे झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर पूर्व के राज्यों में हैं. कुछ कॉलेज तो ऐसे हैं जहां शिक्षकों के 60 फीसदी तक पद कई सालों से खाली चल रहे हैं.

53 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की चमकेगी किस्मत

अब ऐसे 53 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले करीब एक लाख स्टूडेंट्स की किस्मत चमकने वाली है. अब गया, मुजफ्फरपुर, रामगढ़, हजारीबाग, कालाहांडी और दुमका के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों को आईआईटी और एनआईटी से पीएचडी करने वाले टीचर मिलेंगे.

दूर के इलाकों में पढ़ाने को तैयार 1225 लोग

ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उच्च तकनीकी शिक्षा के संस्थानों का स्तर सुधारने के लिए केन्द्र सरकार ने एक नई योजना लागू की है. इस योजना के तहत IITs, NITs, IISERs और IIITs से पास होकर निकलने वाले ऐसे 1225 लोगों को चुना गया है जो तीन साल के लिए ऐसे दूर-दराज के पिछडे इलाकों में जाकर सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में पढ़ाने के लिए तैयार हैं. इन्हें 70,000 रूपया प्रति महीना वेतन मिलेगा. ये सभी कॉलेज राज्य सरकारों के हैं, लेकिन इन टीचरों के पर केन्द्र सरकार तीन साल में 375 करोड रूपये खर्च करेगी.

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मंत्री ने बताया देश सेवा कर रहे लोग

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस बारे में बताते हुए कहा कि इन 1225 में से बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके पास आईआईटी से पीएचडी जैसी ऊंची डिग्री है. उन्होंने कहा कि इन लोगों को कहीं ज्यादा कमाई वाली नौकरी मिल सकती थी, लेकिन इन्होंने देश की सेवा करने के लिए ये जिम्मेदारी चुनी.

ये भी हो सकती है मजबूरी

हालांकि, उनके दावों में कितनी सच्चाई है, कहना मुश्किल है. कहीं ऐसा तो नहीं कि नौकरी का बाजार ठंडा होने से लोग मजबूरी में छोटी जगहों पर जाकर 70,000 रुपये महीने की नौकरी करने को तैयार हो गए हैं, वह भी तीन साल के कांट्रेक्ट पर. ये सवाल इसलिए उठता है क्योंकि खुद प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि 1225 टीचर के पदों के लिए इन उच्च शिक्षा संस्थानों से ही करीब 5000 लोगों ने आवेदन किया था.

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