
दुनिया में अधिकांश लोग पैदा होते हैं और सामान्य जीवन जीते हुए खत्म हो जाते हैं. वहीं कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनकी जिंदगी किंवदंती हो जाती है.
जाने-माने सुधारक और दलित एवं महिला उत्थान के लिए जीवन न्योछावर करने वाले ज्योतिबा फुले भी एक ऐसी ही किंवदंती का
नाम है. वे साल 1827 में 11 अप्रैल को जन्मे
थे.
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ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था. उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था. इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे. ज्योतिबा ने कुछ समय तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढ़ाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की.
राह दिखाने वाली ज्योति थे ज्योतिबा फुले...
मराठी समाजसेवी ज्योतिबा फुले ने निचली जातियों के लिए 'दलित' शब्द को गढ़ने का काम किया था.
साल 1873 के सितंबर माह में उन्होंने 'सत्य शोधक समाज' नामक संगठन का गठन किया था.
वे बाल-विवाह के मुखर विरोधी और
विधवा-विवाह के पुरजोर समर्थक थे.
अनवरत योद्धा ज्योतिबा फुले के जन्म पर उन्हें याद करते हुए...
ज्योतिबा फुले ने ब्राम्हणवाद को धता बताते हुए बिना किसी ब्राम्हण-पुरोहित के विवाह-संस्कार शुरू कराया और बाद में इसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता भी दिलाई.
उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले भी एक
समाजसेविका थीं. उन्हें भारत की पहली महिला अध्यापिका और नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता कहा जाता है.
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अपनी पत्नी के साथ मिल कर उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए साल 1848 में एक स्कूल भी खोला था. यह भारत में अपने तरह का अलहदा और पहला मामला था.
सौजन्य: न्यूजफ्लिक्स