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भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी रॉ पूरी दुनिया में अपने जबर्दस्त कामों के कारण जानी जाती है. रॉ आज जिस मुकाम पर है, इसे यहां तक लाने में रामनाथ काओ की बड़ी भूमिका है.
जानिए RAW और NSG की स्थापना करने वाले आर.एन. काओ के बारे में...
1962 में आईपीएस ऑफिसर, रामजी (आर.एन. काओ, को प्यार से लोग रामजी बुलाते थे) भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो से भारतीय-चीन युद्ध पर समहत नहीं थे. युद्ध में हुए नुकसान की जानकारियां नहीं देने के कारण सरकार से भी नाराज थे. उनका कहना था कि सरकार इतने बड़े नुकसान को छिपाने की कोशिश क्यों कर रही है?
यही नहीं, भारत-चीन युद्ध के तीन साल बाद भारत 1965 में पाकिस्तान से हारने के कगार पर था. एक हद तक कश्मीर भारत के हाथों से निकल जाने वाला था. इस घटना के बाद ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) की स्थापना की गई. इंदिरा गांधी ने रॉ के पहले चीफ के तौर पर आर एन आर.एन. काओ को नियुक्त करना बेहतर समझा. काओ के नेतृत्व ने जल्द ही रॉ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया. इसकी स्थापना के तीन साल बाद ही बांग्लादेश की आजादी में रॉ ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.
स्वभाव से काफी शांत रहने वाले काओ दुनिया भर के नेताओं में काफी प्रसिद्ध थे. ये काओ ही थे जिन्होंने इजरायल की इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद के साथ बेहतर संबंध बनाए. भारत में उस समय इजरायल के साथ किसी भी तरह का संबंध रखना एक टैबू ही था. यही नहीं, इसके अलावा काओ नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (NSG) के आर्किटेक्ट भी हैं. यह भारत की एलीट सिक्योरिटी फॉर्स यूनिट है. अपने काम में काफी प्रोफेशनल रहने वाले काओ हमेशा ही भारत के हितों की रक्षा के लिए काम करते आए.
उनके कॉन्टेक्ट्स दुनिया के हर देशों में थे, खासकर एशिया के अफगानिस्तान, इरान, चीन जैसी जगहों में तो वह एक फोन कॉल से काफी चीजें बदल सकते थे. उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वो एक अच्छे नेतृत्वकर्ता थे. उनकी टीम को पूरी दुनिया में काओबॉयज के नाम से जाना जाता है.
काओ बनारस के निवासी थे, इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था. इनका जन्म 10 मई 1918 में हुआ था और 20 जनवरी 2002 को दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई थी.