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मोहम्मद गौरी ने इसलिए चलाया था मां लक्ष्मी की तस्वीर वाला सोने का सिक्का

इतिहास में मोहम्मद गौरी द्वारा चलाए गए मां लक्ष्मी की तस्वीर वाले सिक्के भी हैं तो अकबर के चलाए सिया राम की तस्वीर वाले सिक्के भी हैं आइए जानें- क्या है इन सिक्कों के पीछे की दास्तां.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 11:06 AM IST

भारत में सिक्कों का अपना एक लंबा-चौड़ा इतिहास है. यहां के मुस्ल‍िम शासकों से लेकर अंग्रेजों तक ने अपने अपने सिक्के चलाए हैं, लेकिन साथ ही चलन में अपने अपने ढंग से मुद्राएं (सिक्के) भी चलाए हैं. इस इतिहास में मोहम्मद गौरी द्वारा चलाए गए मां लक्ष्मी की तस्वीर वाले सिक्के भी हैं तो अकबर के चलाए सिया राम की तस्वीर वाले सिक्के भी हैं आइए जानें- क्या है इन सिक्कों के पीछे की दास्तां.

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दिल्ली के इतिहासकार नलिन चौहान अपने कॉलम दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी में लिखते हैं कि गोरी का एक सिक्का जिसके चित में बैठी हुई लक्ष्मी का अंकन है तो पट में देवनागरी में मुहम्मद बिन साम उत्कीर्ण है. ये सिक्का दिल्ली में भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित है, सिक्के का वजन 4.2 ग्राम है.

हिन्दू शासकों ने शुरू किया चलन

उन्होंने लिखा है कि दिल्ली में गौरी काल के सिक्कों पर पृथ्वीराज के शासन वाले हिंदू देवी-देवताओं के प्रतीक चिह्नों और देवनागरी को यथावत रखा. गोरी ने दिल्ली में पांव जमने तक पृथ्वीराज चौहान के समय में प्रचलित प्रशासकीय मान्यताओं में भी विशेष परिवर्तन नहीं किया. यही कारण है कि हिंदू सिक्कों में प्रचलित चित्र अंकन परंपरा के अनुरूप, इन सिक्कों में लक्ष्मी और वृषभ-घुड़सवार अंकित थे.

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इसके पीछे की वजह बताते हुए वो लिखते हैं कि गौरी ने हिन्दू जनता को नई मुद्रा के चलन को स्वीकार न करने के रणनीतिक उपाय के रूप में हिन्दू शासकों, चौहान और तोमर वंशों के सिक्कों के प्रचलन को जारी रखा. उस समय भी हिन्दी भाषा, जनता की भाषा थी और गोरी अपने शासन की सफलता के लिये भाषा का आश्रय लेना चाहता था. वो हिन्दू जनता को यह भरोसा दिलाना चाहता था कि यह केवल व्यवस्था का स्थानान्तरण मात्र है. हालांकि बाद में बहुत कुछ उसके शासन काल में बदलता चला गया.

सांप्रदायिक सौहार्द की पहल

बताते हैं कि कभी अकबर ने भी ऐसी ही कोश‍िश की थी, अकबर ने अपने शासनकाल में राम सिया के नाम पर एक सिक्का जारी किया था.चांदी के इस सिक्के पर राम और सीता की तस्वीरें उकेरी गई थीं , इसके दूसरी तरफ कलमा खुदा हुआ था.  इतिहासकार इरफान हबीब इस सिक्के जैसी कुछ बातों के आधार पर अकबर को सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाला शासक बताते हैं.

इतिहासकार बताते हैं कि भारतीय जनता से रिश्ते मजबूत करने के लिए ऐसी शुरुआत इंडो यूनानी शासकों के समय से होने लगी थी, उन्होंने बुद्ध, शिव और कृष्ण की आकृति वाले कई सिक्के चलाए थे, जिनको हेराक्लीज जैसे यूनानी नामों से वो लोग संबोधित करते थे. जिनमें कुषाण वंश के शासक कनिष्क के सोने के सिक्के काफी चर्चा में रहे हैं.

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