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फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती की रिलीज के विरोध में कई राज्य सरकार भी मैदान में आ चुकी हैं. कई संगठन और राजघराने आरोप लगा रहे हैं कि फिल्म में इतिहास संबंधी तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है और रानी पद्मिनी कभी भी खिलजी के सामने नहीं आई इसलिए दोनों को एक साथ दिखाया जाना गलत है. हालांकि राजस्थान सरकार की किताब और वेबसाइट जानकारी दे रही हैं कि खिलजी ने पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा था.
किताब में क्या लिखा है?
राजस्थान शिक्षा बोर्ड की 12वीं क्लास की इतिहास की किताब में साफ लिखा हुआ है 'आठ वर्ष तक घेरा डालने के बाद भी जब सुल्तान चित्तौड़ को नहीं जीत पाया तो उसने प्रस्ताव रखा कि अगर उसे पद्मिनी का प्रतिबिंब ही दिखा दिया जाए तो वह दिल्ली लौट जाएगा. राणा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. दर्पण में पद्मिनी का प्रतिबिंब देखकर जब अलाउद्दीन वापस लौट रहा था उस समय उसने रत्नसिंह को कैद कर लिया और रिहाई के बदले पद्मिनी की मांग की.' 12वीं कक्षा की इस किताब के अध्याय मुगल आक्रमण: प्रकार और प्रभाव में इस बात का जिक्र है और इस पाठ में रतन सिंह के बारे में भी बताया गया है.
पद्मिनी के लिए गोरा-बादल ने दी थी जान, खिलजी पर किया था हमला
राजस्थान टूरिज्म की सरकारी वेबसाइट में इस बात का जिक्र है कि खिलजी ने रानी को देखा था. वेबसाइट पर लिखा है कि चित्तौड़गढ़ में कमल तालाब के पास एक पद्मिनी महल है, जोकि राजपरिवार की महिलाओं को प्राइवेसी प्रदान करता है. वहीं दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने तालाब में ही रानी पद्मिनी को देखा था, जिसके बाद खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला किया था.
किले में क्या लिखा?
वहीं पद्मिनी महल के बाहर लगे एक बोर्ड पर भी लिखा है कि खिलजी ने इस महल में ही रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा था.
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हालांकि करणी सेना इस बात का विरोध कर रही है कि खिलजी ने कभी रानी को देखा था. करणी सेना ने चित्तौड़गढ़ परिसर में बने पद्मिनी महल में भी तोड़फोड़ की थी और महल में लगा कांच तोड़ दिया था. बता दें कि महल में एक कांच लगा था, जिसके लिए कहा जाता है कि उसके जरिए खिलजी ने रानी को देखा था. करणी सेना का कहना था कि गाइड लोगों को गलत जानकारी देते हैं और इतिहास में कभी ऐसा हुआ ही नहीं था.खिलजी से मिलने गई थी रानी
वहीं किताब में ये भी लिखा है कि रानी को देखने के बाद खिलजी ने रतन सिंह को बंदी बना लिया था और रानी से मिलने की इच्छा जाहिर की थी. साथ ही प्रस्ताव रखा था कि रानी के मिलने पर राजा को छोड़ दिया जाएगा. प्रस्ताव स्वीकार होने पर पद्मिनी सहेलियों के स्थान पर पालकियों में राजपूत यौद्धाओं को बैठाकर रवाना हो गई.
दिल्ली के पास पहुंचकर शाही हरम में शामिल होने से पहले, उसने अंतिम बार अपने पति से मिलने की इच्छा प्रकट की, जिसे सुल्तान द्वारा स्वीकृति दे दी गई, जब दोनों पति-पत्नी मिल रहे थे, उसी समय राजपूत योद्धा सुल्तान की सेना पर टूट पड़े और उन्हें सुरक्षित निकाल चित्तौड़ ले गए.
इस शख्स के कहने पर पद्मिनी के मोह में पड़ा था खिलजी, फिर किया हमला!
राजस्थान सरकार की किताबों के अनुसार पद्मिनी की कहानी का ऐतिहासिक उल्लेख मलिक मुहम्मद जायसी की रचना 'पद्मावत' में किया गया है. इसके बाद अबुल फजल (अकबरनामा), फरिश्ता (गुलशन-ए-इब्राहिमी), हाजी उद्दवीर (जफरूलवली), कर्नल टॉड (एनल्स एण्ड एन्टिक्वीटिज ऑफ राजस्थान), फ्रांसीसी यात्री मनूची (स्टीरियो डी मेगोर) और मुहणौत नैणसी (नैणसी री ख्यात) ने भी इस कहानी का कुछ हेर-फेर के साथ उल्लेख किया है. बूंदी के प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मिश्र और कुछ आधुनिक इतिहासकारों ने पद्मिनी की कहानी की ऐतिहासिकता को स्वीकार नहीं किया है.