Advertisement

जब भारत ने शुरू की थी सियाचिन पर कब्जे की तैयारी...

आज के दिन भारत ने शुरू की थी सियाचिन पर कब्जे की तैयारी, जानिये बर्फ से ढका ये ग्लेशियर क्यों है भारत के लिए इतना खास और इस ग्लेश‍ियर पर रोजाना कितना खर्च करती है सरकार...

siachen india operation meghdoot siachen india operation meghdoot

इतिहास के पन्नों में 13 अप्रैल का दिन बेहद खास है. इस दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं. उसमें सियाचिन पर कब्जे की शुरुआत महत्वपूर्ण है. जानिये उस ऑपरेशन के बारे में, जिसके जरिये सियाचिन पर भारत ने अपना तिरंगा लहराया था.

दरअसल, आज ही के दिन साल 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए सशस्त्र बलों का अभियान छेड़ा गया था.

Advertisement

जानिये, किसने की थी मोहनजोदड़ो की खोज

13 अप्रैल को 300 भारतीय सुरक्षाबलों ने ग्लेशियर की अहम चोटियों और दर्रों पर अपनी पोजिशन संभाली थी.

भारत की रणनीति में यहां युद्ध कभी भी नहीं था, पर जुलाई, 1949 में कराची एग्रीमेंट में खींची गई सरहद को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं हुआ था. इसके बाद साल 1972 के शिमला समझौते के वक्त भी सियाचिन को बेजान और इंसानों के लायक नहीं समझा गया…लिहाजा समझौते के दस्तावेजों में सियाचिन में भारत-पाक के बीच सरहद कहां होगी, इसका जिक्र भी नहीं किया गया. लेकिन अस्सी के दशक की शुरुआत में जिया उल हक के फौजी शासन के दौरान पाकिस्तान ने सियाचिन का रणनीतिक व सामरिक महत्व समझा और इस पर कब्जा जमाने के लिए देश-विदेश के पर्वतारोही दलों को भेजना शुरू कर दिया.

पाकिस्तान की नजर 33 हजार वर्गकिलोमीटर में फैले इस इलाके पर थी. भारत सरकार की आंख तब खुली जब पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू की. पाकिस्तान ने यूरोप में बर्फीले क्षेत्र में पहने जाने वाले खास तरह के कपड़ों और हथियारों का बड़ा ऑर्डर दिया था. सेना इस सूचना से चौकन्ना हो गई और सियाचिन की तरफ कूच कर दिया. और इस तरह लॉन्च हुआ ऑपरेशन मेघदूत.

Advertisement

आसमां छूने वाले पहले शख्स के बारे में जानिये...

13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया. खास बात ये थी कि बर्फ में पहने जाने वाले कपड़े और साजो सामान सेना के पास 12 अप्रैल की रात को ही पहुंचे थे.

दुनिया के सबसे ऊंचे मैदान ए जंग में सीधे टकराव की यह एक तरह से पहली घटना थी. इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया और इसने भारत की सामरिक रणनीतिक जीत की नींव रखी.

सियाचिन की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि भारत की तरफ से सियाचिन की खड़ी चढ़ाई है और इसीलिए ऑपरेशन मेघदूत को काफी मुश्किल माना गया था. जबकि पाकिस्तान की तरफ से ये ऊंचाई काफी कम है. उसके बावजूद भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को मात दी. इसीलिए दुनियाभर की जो सफल लड़ाइयां हुई हैं उनमें ऑपरेशन मेघदूत का नाम भी आता है. ये अपनी तरह का एक अलग ही युद्ध था जिसमें भारतीय सैनिकों ने माइनस 60 से माइनस 70 डिग्री के तापमान में सबसे ऊंची पहाडियों पर जाकर फतह हासिल की थी. पाकिस्तान के लिए ये हार काफी शर्मनाक थी.

इस महिला ने पेड़ों को बचाने के लिए लगा दी थी जान की बाजी

ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानि पूरे 18 साल तक. भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं. जीत भारत की हुई. आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है. इस अभियान में भारत के करीब 1000 हजार जवान शहीद हो गए थे. हर रोज सरकार सियाचीन की हिफाजत पर करोड़ो रुपये खर्च करती है.

Advertisement

सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है. ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती. चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था. सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement